माना जाता है शीशा कभी झूठ नहीं बोलता. शीशा यानी आईना हमेशा सच ही दिखाता है. शायद इसीलिए तो लोग आईने को देखे बिना अपने दिन की शुरुआत नहीं करते. लोग घर से बाहर निकलने से पहले एक झलक अपने आप को शीशे में देखते हैं. चाहे नई तरह के बाल कटवाए हों या कुछ नए कपड़े पहन कर देखने हों. ऐसे हर काम में आईना हमारे साथी के तौर पर काम करता है. लेकिन क्या कभी शीशे का इस्तेमाल करते समय आपने सोचा है कि आखिर इसका आविष्कार किसने किया और पहली बार शीशे में अपना चेहरा किसने देखा होगा?
पहले होता था पानी का इस्तेमाल
प्राचीन कहानियों की मानें तो तब शीशा नहीं हुआ करता था और लोग अपने आप को देखने के लिए ठहरे हुए पानी का इस्तेमाल करते थे. आपको बता दें कि पॉलिशिंग तांबे के जरिए बनाए गए शीशे मेसोपोटामिया (अब इराक) के साथ-साथ मिस्र में 4000 से 3000 ईसा पूर्व के आसपास बनाए गए थे. इसके बाद लगभग 1,000 साल बाद दक्षिण अमेरिका में पॉलिश किए गए शीशे पत्थर से बनाए गए.
साफ चेहरा देखने के लिए करना पड़ा इंतजार
IFL Science की एक रिपोर्ट के मुताबिक पहली शताब्दी ईस्वी में रोमन लेखक प्लिनी द एल्डर द्वारा कांच के शीशों का संदर्भ दिया गया था. हालांकि वे आधुनिक-दिनों के शीशों के रूप में प्रतिबिंबित नहीं थे. उस दौर के शीशे काफी छोटे भी हुआ करते थे. जिस तरह आज हम शीशे में साफ चेहरा देख पाते हैं. ऐसा साफ चेहरा देख पाने के लिए लोगों को 1835 तक का इंतजार करना पड़ा. हालांकि, लोग इससे भी बेहद खुश नहीं थे.
पहली बार शीशे में अपना चेहरा किसने देखा?
गौरतलब है कि तेबिली (Tebele) नाक के शख्स पहले वो व्यक्ति थे, जिन्होंने आईने में सबसे पहले अपना साफ चेहरा देखा. इसके बाद उसके कबीले के सरदार- पुया (Puya) ने इसे खुद देखना चाहा. पुया ने शीशे में अपने चेहरे को खूब मन से निहारा और इस आविष्कार को देखकर काफी खुशी मिली.