नेपाल के उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद केपी शर्मा ओली प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने को मजबूर हो गए। उन्होंने मंगलवार को न्यायालय पर विपक्षी दलों के पक्ष में 'जानबूझकर' निर्णय सुनाने का आरोप लगाया। ओली ने कहा कि इसका देश की बहुदलीय संसदीय प्रणाली पर 'दीर्घकालिक प्रभाव' पड़ेगा।
नेपालवासियों को संबोधित करते हुए, 69 वर्षीय ओली ने यह भी कहा कि 'लोगों की पसंद' होने के बावजूद, वह पद से इस्तीफा दे रहे हैं क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने उनकी जगह नेपाली कांग्रेस प्रमुख और विपक्ष के नेता शेर बहादुर देउबा को प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त करने का आदेश दिया है।
रेफरी एक टीम को जीत दिलाने के लिए नहीं होता
ओली ने नेपाली भाषा में कहा, 'खेल खेलना खिलाड़ियों का कर्तव्य है। रेफरी निष्पक्ष खेल बनाए रखने के लिए होता है, न कि किसी एक टीम को जीतने में मदद करने के लिए।' उन्होंने शीर्ष अदालत पर विपक्षी दलों के पक्ष में फैसला 'जानबूझकर' सुनाने का आरोप लगाया।
नेपाल के सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी को निर्देश दिया था कि नेपाली कांग्रेस के प्रमुख शेर बहादुर देउबा को मंगलवार तक प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाए। शीर्ष कोर्ट ने पांच महीनों में दूसरी बार भंग प्रतिनिधि सभा को बहाल कर दिया।
राष्ट्रपति ने की थी मध्यावधि चुनाव की घोषणा
राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने प्रधानमंत्री ओली की अनुशंसा पर 275 सदस्यीय निचले सदन को 22 मई को पांच महीने में दूसरी बार भंग कर दिया था और 12 और 19 नवंबर को मध्यावधि चुनाव की घोषणा की थी। 'माई रिपब्लिका' अखबार द्वारा ओली के हवाले से एक खबर में कहा गया है कि फैसले में इस्तेमाल की गई शर्तों और भाषा ने उन सभी को चिंतित कर दिया है, जो एक बहुदलीय प्रणाली में विश्वास करते हैं। इस आदेश का इस प्रणाली पर 'दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा।' उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी शीर्ष अदालत के फैसले को लागू करेगी। हालांकि, ओली ने कहा कि पार्टी प्रणाली और बहुदलीय लोकतंत्र को नष्ट किया जाना निश्चित है।
अत्यधिक न्यायिक सक्रियता का आरोप
उन्होंने न्यायालय पर 'अत्यधिक न्यायिक सक्रियता' का भी आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि इससे न्यायालय की विश्वसनीयता में गिरावट आ सकती है। उन्होंने कहा, 'मुझे लोगों के जनादेश के कारण नहीं बल्कि न्यायालय के आदेश के कारण बाहर किया गया है।'