सम्पादकीय

कोविड-19 : अमीर देशों के दोहरेपन की कीमत

Neha Dani
14 Dec 2021 1:53 AM GMT
कोविड-19 : अमीर देशों के दोहरेपन की कीमत
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तब तक कोई भी सुरक्षित नहीं रह सकता।

पिछले एक सप्ताह में ब्रिटेन में कोविड-19 के दैनिक औसतन 50,000 से ज्यादा नए मामले दर्ज किए गए। जनवरी के बाद संक्रमण के दैनिक मामलों में यह सबसे बड़ी उछाल है। एक विशेषज्ञ समिति ने अनुमान लगाया है कि मरने वालों की संख्या बढ़ सकती है, इसलिए उसने सख्त प्रतिबंध लगाने का आग्रह किया। अमेरिका में न्यूयॉर्क के गवर्नर ने राज्यव्यापी मास्क लगाने का आदेश लागू किया। न्यूयॉर्क और लंदन में बैंकों ने अपने कर्मचारियों को घर से काम करने के लिए कहा है।

जर्मनी में निवर्तमान चांसलर एंजेला मर्केल और उनके उत्तराधिकारी ओलाफ स्कोल्ज ने टीका न लगवाने वाले लोगों पर सबसे आवश्यक सुविधाओं को छोड़कर बाकी सभी सुविधाओं तक पहुंच पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की। ऑस्ट्रिया अनिवार्य टीकाकरण लागू करने के लिए कानून लाने वाला है। लॉकडाउन शब्द फिर से चलन में है। पिछले महीने ओमिक्रॉन वैरिएंट की खोज ने पवित्र शब्दों के प्रवाह को प्रेरित किया है। जैसी कि अपेक्षा थी, अमीर देशों के नेताओं ने टीकों की पहुंच में सुधार का मंत्र जपना शुरू कर दिया।
हालांकि शब्द ही काफी नहीं हैं। फ्रेंच उपन्यासकार बाल्जाक ने, जो समाज पर अपनी सख्त टिप्पणियों के लिए जाने जाते हैं, कहा था कि जो ज्यादा बातें करता है, वह धोखा देना चाहता है। भाषणबाजी और काम के बीच की खाई पाखंड को दर्शाती है। अक्तूबर, 2020 की शुरुआत में, भारत और दक्षिण अफ्रीका ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) से कोविड-19 के नियंत्रण, रोकथाम और उपचार के लिए ट्रिप्स समझौते (पेटेंट, व्यापार रहस्य, कॉपीराइट और औद्योगिक डिजाइन) के कुछ प्रावधानों से अस्थायी छूट की मांग की थी।
डब्ल्यूटीओ के नियम सर्वसम्मति से निर्णय लेने का आह्वान करते हैं। लेकिन सौ से ज्यादा देशों के समर्थन वाला यह प्रस्ताव मुश्किल से ही आगे बढ़ा है। इस बीच वायरस ने 27 करोड़ से अधिक लोगों को संक्रमित किया है, जिससे 52 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। डब्ल्यूटीओ के महानिदेशक ने वैक्सीन निष्पक्षता पर कहा है, 'टीकों, निदान और चिकित्सा विज्ञान तक समान पहुंच का मुद्दा हमारे समय का नैतिक और आर्थिक मुद्दा है।' वायरस के प्रसार और जीवन व जीविका के नुकसान का टीके की पहुंच से सीधा संबंध है।
लेकिन समृद्ध देश इससे सहमत नहीं हैं। वैक्सीन छूट का सबसे सख्त विरोध यूरोपीय संघ, स्विट्जरलैंड और ब्रिटेन कर रहे हैं, जो दुनिया की सबसे बड़ी फार्मा कंपनियों के केंद्र हैं। यूरोपीय संसद के 388 सदस्यों, राष्ट्रीय संसदों अथवा 375 ट्रेड यूनियनों द्वारा अपील के बावजूद यूरोपीय संघ अपने रुख से नहीं डिगा है। अमेरिका ने अस्थायी छूट का तो समर्थन किया, लेकिन इस मामले में पहल करने की उत्सुकता नहीं दिखाई। अमीर देशों का रुख भारत और रूस जैसे देशों के बिल्कुल विपरीत है, जिन्होंने अपने टीकों पर छूट की पेशकश की है।
ब्रिटेन का तर्क है कि 'छूट मांगने वाले देश अंतरराष्ट्रीय आईपी प्रणाली को बाधक के रूप में देख रहे हैं, जबकि हकीकत में ऐसा नहीं है।' असमानता की भयावहता को ड्यूक ग्लोबल हेल्थ इनोवेशन सेंटर के डाटा द्वारा दर्शाया गया है। ब्रिटेन के पास अपनी आबादी के 323 प्रतिशत, यूरोपीय संघ के पास आबादी के 339 प्रतिशत और अमेरिका के पास 279 प्रतिशत आबादी के टीकाकरण के लिए टीके उपलब्ध हैं। इसके विपरीत, अफ्रीकी संघ के पास अपनी आबादी के पांचवें हिस्से को कवर करने के लिए मुश्किल से पर्याप्त टीके हैं!
यूरोपीय संघ का विरोध दरअसल लाभ (रिटर्न) को लेकर है। डब्ल्यूटीओ में यूरोपीय संघ ने तर्क दिया है कि बौद्धिक संपदा अधिकार मूल्य का प्रतिनिधित्व करते हैं और 'नवाचार में निवेश पर संभावित रिटर्न के लिए कानूनी गारंटी' हैं। गौतरलब है कि फाइजर को 2021 में टीके की बिक्री से 36 अरब डॉलर से अधिक और मॉडर्ना को लगभग 18 अरब डॉलर की कमाई का अनुमान है। बहस पर्याप्त रिटर्न या नवाचार का इनाम मिलने-न मिलने पर नहीं है। मुद्दा गरीब देशों को महामारी से निपटने के साधन उपलब्ध कराने के बारे में है।
अमीर देशों के सामने इन पारितोषिक की लागत वहन करने के लिए आर्थिक सहायता, टैक्स क्रेडिट अथवा स्वीकार्य तंत्र जैसे साधनों के माध्यम से सार्वजनिक नीति तैयार करने की चुनौती है। बढ़ते संक्रमण के परिणाम और आर्थिक विनाश के प्रबंधन की लागत आंकड़ों में प्रकट होती है। यूरोप में, ब्याज दरें -0.5 प्रतिशत पर नकारात्मक हैं और मुद्रास्फीति पांच प्रतिशत से ऊपर है। ब्रिटेन में मुद्रास्फीति 39 साल की ऊंचाई पर 6.8 फीसदी है, जबकि विकास दर नकारात्मक है।
जी-7 देशों के केंद्रीय बैंकरों को अब उच्च लागत और कम विकास परिदृश्यों की संभावना के बारे में चिंता करनी चाहिए। विकसित अर्थव्यवस्था की वास्तविकता शिक्षाप्रद सबक देती है। मांग में गिरावट से उबरने के लिए पैसा छापने की रणनीति की अपनी सीमाएं हैं। जैसे-जैसे यूएस फेडरल रिजर्व अपने आसान मुद्रा रुख से पीछे हटता है, लागतें बढ़ती हैं और बढ़ेंगी। दूसरी बात, विकसित दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद का दो-तिहाई हिस्सा सेवा क्षेत्र का है और महामारी के डर से बंद सीधे संपर्क वाली अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए प्रोत्साहन पर्याप्त नहीं है।
प्रोत्साहन पैकेज घरेलू मांग को पुनर्जीवित तो कर सकते हैं, लेकिन एक वैश्वीकृत अन्योन्याश्रित दुनिया में आपूर्ति शृंखला के मुद्दों को तब तक संबोधित नहीं कर सकते, जब तक कि संक्रमण वृद्धि को नियंत्रित नहीं किया जाता। दुनिया भर में संक्रमण की निरंतरता इस वजह से है कि वैश्विक आबादी के एक बड़े हिस्से में टीकाकरण की पहुंच नहीं है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि अमीर देशों ने वैक्सीन उत्पादन बढ़ाने की क्षमता अवरुद्ध कर दी है।
मौजूदा स्थिति वैक्सीन पर छूट संबंधी अमीर देशों के रुख की समीक्षा की मांग करती है। यह याद रखना उपयोगी है कि आर्थिक उत्पादन के क्षरण की कीमत वैक्सीन की पहुंच सक्षम बनाने की लागत से कहीं अधिक होगी। जब तक हर कोई सुरक्षित नहीं होगा, तब तक कोई भी सुरक्षित नहीं रह सकता।

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