विश्व
जानें क्यों इंसानों के लिए बड़ा खतरा नहीं है नियोकोव वायरस, इस पर क्या कहती है असल स्टडी, जानें
Renuka Sahu
29 Jan 2022 5:33 AM GMT
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फाइल फोटो
दुनियाभर में कोरोनावायरस के अलग-अलग वैरिएंट्स ने तबाही मचाना जारी रखा है। ज्यादातर देशों में फिलहाल डेल्टा वैरिएंट को रिप्लेस कर के ओमिक्रॉन वैरिएंट काबिज हो रहा है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। दुनियाभर में कोरोनावायरस के अलग-अलग वैरिएंट्स ने तबाही मचाना जारी रखा है। ज्यादातर देशों में फिलहाल डेल्टा वैरिएंट को रिप्लेस कर के ओमिक्रॉन वैरिएंट काबिज हो रहा है। इस बीच एक नए तरह का कोरोनावायरस सामने आने की खबरों ने लोगों की चिंता बढ़ा दी है। दरअसल, काफी समय से इंटरनेट पर ऐसी रिपोर्ट प्रसारित हो रही है, जिसमें कहा गया है कि एक नए वायरस- नियोकोव (NeoCoV) को दक्षिण अफ्रीका में चमगादड़ों में फैला पाया गया है। कहा गया है कि यह वायरस इतना खतरनाक है कि इससे संक्रमित होने वाले हर तीन लोगों में से एक की मौत हो सकती है। हालांकि, यह रिपोर्ट कितनी सही है इसका अभी तक पुख्ता दावा नहीं किया जा सकता।
कहां से आई है ये रिपोर्ट, जिससे लोगों में फैला डर?
जो न्यूज रिपोर्ट इस वक्त दुनियाभर में वायरल हो रही है, वह चीन के वैज्ञानिकों का एक रिसर्च पेपर है, जिसकी अन्य वैज्ञानिकों द्वारा पुष्टि (पीयर रिव्यू) नहीं हुई है। हालांकि, अगर फिर भी इस रिसर्च पेपर में दी गई बातों को सही माना जाए तो भी मीडिया में चल रही बातें इससे अलग हैं। इस रिपोर्ट को देखने वाले चंद वैज्ञानिकों का कहना है कि रिसर्च पेपर की बातों को काफी बढ़ा-चढ़ाकर लोगों के सामने रखा जा रहा है।
तो क्या है NeoCoV वायरस की सच्चाई?
ऐसा नहीं है कि नियोकोव वायरस दुनिया में मौजूद नहीं है। कुछ समय पहले ही दक्षिण अफ्रीका में चमगादड़ों में इस वायरस को पाया गया था। बताया जाता है कि यह नियोकोव की बनावट काफी हद तक उस कोरोनावायरस जैसी है, जिसने 2012 में दक्षिण एशिया में फैलने वाले संक्रमण 'मिडिल-ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम' (MERS) को जन्म दिया था।
अपनी रिसर्च में चीनी वैज्ञानिकों ने पाया कि चमगादड़ों को संक्रमित करने के लिए नियोकोव वायरस ने जिन रिसेप्टर्स (अनुग्राही कोशिकाओं) का इस्तेमाल किया, वे इंसान की उन कोशिकाओं से काफी मिलती-जुलती हैं, जिनकी मदद से सार्स-सीओवी-2 इंसानों के शरीर में फैलता है।
रिपोर्ट में NeoCoV को लेकर कितना भ्रम?
हालांकि, नियोकोव को लेकर इसके आगे कही जा रही अधिकतर बातें बढ़ा-चढ़ाकर ही पेश की गई हैं। महाराष्ट्र के कोरोनावायरस टास्क फोर्स के सदस्य और अंतरराष्ट्रीय डायबिटीज फेडरेशन के अध्यक्ष डॉक्टर शशांक जोशी ने अपने ट्वीट के जरिए नियोकोव को लेकर फैले भ्रम को दूर करने की कोशिश की है। उन्होंने कहा...
1. "नियोकोव एक पुराना वायरस है, जो कि MERS की तरह ही डीपीपी4 रिसेप्टर्स के जरिए कोशिकाओं तक पहुंचता है।"
2. "इस वायरस में नया ये है कि यह चमगादड़ों के एसीई2 रिसेप्टर्स (ACE2 Receptors) को प्रभावित कर सकता है, लेकिन जब तक इसमें नया म्यूटेशन नहीं होता, यह इंसानों के एसीई2 रिसेप्टर्स का इस्तेमाल नहीं कर सकता। बाकी सब सिर्फ बढ़ा-चढ़ाकर की गई बातें हैं।"
खुद रिसर्च पेपर में भी कहा गया है कि नियोकोव को अब तक सिर्फ चमगादड़ों में पाया गया है और इससे कभी भी इंसान संक्रमित नहीं हुए। इसकी हर तीन में से एक व्यक्ति को मारने की क्षमता इस तथ्य से आई है कि यह मर्स (MERS) वायरस जैसा है। स्टडी में मर्स संक्रमण से मृत्यु दर 35 फीसदी आंकी गई है।
चौंकाने वाली बात यह है कि जब दक्षिण एशिया में मर्स फैला था, तब यह एक सीमित स्तर तक ही प्रभावी था। कोरोनावायरस के मौजूदा प्रारूप की तरह यह महामारी नहीं बना था। फिलहाल नियोकोव के चमगादड़ों से इंसानों में फैलने के कोई सबूत नहीं हैं। रिसर्चरों ने कहा है कि लैब एक्सपेरिमेंट्स में भी वायरस को इंसानों के एसीई2 रिसेप्टर्स को प्रभावित करने में नाकाम पाया गया।
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