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जानें क्‍यों भारत की तरह जर्मनी में ट्रैक्‍टर रैली प्रदर्शन कर रहे हैं किसान

Gulabi
12 Feb 2021 1:18 PM GMT
जानें क्‍यों भारत की तरह जर्मनी में ट्रैक्‍टर रैली प्रदर्शन कर रहे हैं किसान
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फेसबुक से शुरू हुई मुहिम

भारत में पिछले करीब तीन माह से किसान आंदोलन जारी है. भारत से हजारों किलोमीटर दूर जर्मनी में भी इन दिनों किसान प्रदर्शन पर बैठे हैं. जहां भारत में किसान नए किसान बिल को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं तो जर्मनी में एंजेला मार्केल सरकार की तरफ से आए नए पर्यावरण नियमों को लेकर विरोध हो रहा है. यहां पर किसान सरकार से और ज्‍यादा बातचीत की मांग कर रहे हैं.


उनका कहना है कि कृषि के क्षेत्र में चुनौतियां लगातार बढ़ती जा रही हैं और इसे सुलझाने के लिए बातचीत बहुत जरूरी है. दिलचस्‍प बात है कि जिस तरह से भारत में किसानों ने ट्रैक्‍टर रैली निकालकर सरकार का विरोध किया तो वहीं जर्मनी में भी किसानों ने ट्रैक्‍टर की मदद से अपना विरोध जताया.


फेसबुक से शुरू हुई मुहिम
पिछले दिनों जर्मनी की राजधानी बर्लिन की सड़कों पर सैंकड़ों ट्रैक्‍टर निकले और सड़कों को ब्‍लॉक कर दिया गया था. बर्लिन की तरह दूसरे शहरों में भी यही नजारा आम था. जैसे ही इंटरनेशनल ग्रीन वीक शुरू हुआ जर्मनी में प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू हो गया. इंटरनेशनल ग्रीन वीक हर वर्ष यूरोप के इस अहम देश में होने वाला एक बड़ा कृषि और खाद्य मेला है.

जर्मनी में इन प्रदर्शनों का आयोजन अलग-अलग किसान संगठनों की तरफ से किया गया है. अक्‍टूबर 2020 में फेसबुक पर एक ग्रुप शुरू हुआ जिसका नाम था, 'कंट्री क्रिएट्स कनेक्‍शन.' इस ग्रुप पर किसानों और खेती से जुड़े दूसरे करीब 100,000 लाख लोग जुड़ गए हैं. जर्मनी के 16 में से 7 प्रांतों में इस संगठन की टीमें मौजूद हैं.

क्‍यों प्रदर्शन के लिए मजबूर किसान
जर्मनी में किसानों को सुपरमार्केट्स और फूड इंडस्‍ट्री पर निर्भर रहना पड़ता है. ऐसा इसलिए है क्‍योंकि जब रिटेलर्स कीमतों में कमी करते हैं तो उनके पास बहुत कम सहारा होता है. सामाजिक तौर पर इसके नतीजे बुरे हो सकते हैं. प्रदर्शन आयोजित करने वाले संगठन की मानें तो जर्मनी में कृषि कर्मी सिर्फ 24,000 डॉलर ही कमा पाते हैं.

वहीं आधे से ज्‍यादा किसानों को पिछले कुछ वर्षों में अपना बिजनेस बंद करना पड़ा है. प्रदर्शन में शामिल किसानों के मुताबिक सरकार की तरफ से खाद के प्रयोग और कीटाणुनाशक के प्रकार को लेकर नई पाबंदियां लगा दी गई है.

सलाह लिए बिना सरकार ने लिया फैसला
हालिया वर्षों में जर्मनी में फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़ों की आबादी में तेजी से इजाफा हुआ है. पानी में भी नाइट्रेट के स्‍तर में इजाफा हो रहा है. प्रदर्शनकारी किसानों की मानें तो कृषि मंत्री जूलिया क्‍लॉकनर और पर्यावरण मंत्री सेवेंजा शूलजे की तरफ से जो उपाय पिछले वर्ष लागू किए गए, उन पर किसानों से कोई सलाह मशविरा नहीं किया गया.

किसानों की मानें तो इन उपायों को इसलिए ही लागू किया गया है ताकि उन्‍हें बिजनेस से बाहर किया जा सके. कंट्री क्रिएट्स कनेक्‍शन का कहना है कि उपायों के बाद कीमतों में इजाफा होगा यानी सुपरमार्केट्स भी सस्‍ते विकल्‍पों की तरफ देखना शुरू कर देंगी.

नए उपायों से बिगड़ सकते हैं समीकरण
किसानों के मुताबिक इससे पर्यावरण को और नुकसान होगा. वो कहते हैं कि खाद्य आयात की वजह से कार्बन का इमीशन और ज्‍यादा होगा क्‍योंकि फिर ट्रांसपोर्ट का प्रयोग बढ़ेगा. देश में ऐसे कोई भी रास्‍ता नहीं है जिसके बाद इकोलॉजिकल या फिर सामाजिक स्‍तर को प्रभावित किया जा सके. इसके अलावा क्षेत्रीय खाद्य उत्‍पाद जिसकी बहुत मांग है, वो भी कमजोर हो जाएगा.

किसानों की मांग है कि देश में कीड़ों की आबादी कैसे कम की जाए, इअस पर स्‍टडी होनी चाहिए. इसके तहत कृषि के अलावा दूसरे संभावित वजहों जैसे टेलीकम्‍युनिकेशंस इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर, एलईडी लाइटनिंग और मौसम के बदलते पैटर्न को भी शामिल किया जाना चाहिए


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