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जानें पृथ्वी का घूर्णन हमारे ग्रह के जीवन के लिए क्यों जरुरी

Gulabi
28 Aug 2021 5:02 PM GMT
जानें पृथ्वी का घूर्णन हमारे ग्रह के जीवन के लिए क्यों जरुरी
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पृथ्वी (Earth) पर जीवन (Origin of life) कैसे आया. पृथ्वी को वो कौन कौन से कारक हैं जो उसे यहां जीवन पनपने और कायम रखने के लायक बनाते हैं

पृथ्वी (Earth) पर जीवन (Origin of life) कैसे आया. पृथ्वी को वो कौन कौन से कारक हैं जो उसे यहां जीवन पनपने और कायम रखने के लायक बनाते हैं. इस तरह के सवाल हमारे वैज्ञानिकों के लिए बहुत अहम रहे हैं और इस विषय पर कई शोध पृथ्वी के जीवन को समझने के लिए तो किए जा रहे हैं, पृथ्वी को बाहर जीवन को तलाशने के लिए भी किए जा रहा है. जीवन के अनुकूल हालात पर हुए एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया है कि पृथ्वी पर जीवन के पनपने में अरबों साल पहले धीमी हुई उसकी घूर्णन (Rotation of Earth) की गति का भी योगदान है. शोध के मुताबिक इस लिहाज से हमारे ग्रह का जीवन उसके घूर्णन पर भी निर्भर करता है.

जीवन की शुरुआत से आगाज
मिशिगन यूनिवर्सिटी के माइक्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर ग्रेगरी डिक और जर्मनी के मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर मरीन बायोलॉजी की जूडिथ क्लेट ने इन मूल सवालों की पड़ताल किए यह अध्ययन किया. फिलहाल जो हमारे वैज्ञानिकों को पास जीवन के पुरातन प्रमाण हैं वे करीब 3.5 अरब साल पुराने हैं, लेकिन जीवन उससे काफी बाद में शुरू हो सका होगा, शायद एक अरब साल बाद. उस समय महासागरों की गहराई में एक्सट्रीमोंफाइल्स कहलाने वाले जीव पनपना शुरू हुए होंगे.
2.4 अरब साल पहले
शोधकर्ताओं को लगता है कि जीवन की यह शुरुआत करीब 2.4 अरब साल पहले हुई होगी और इसमें पृथ्वी के धीमें हुए घूर्णन का भी सहयोग रहा होगा. डिक और क्लैट का कहना है कि पहली बार इस तरह विचार प्रस्तुत किया जा रहा है. धीमे घूर्णन का मतलब लंबे दिन और लंबे दिन का मतलब उस समय जीवों के लिए अधिक ऑक्सीजन का उत्पातन था.
पहले बहुत तेज घूमती थी पृथ्वी
यह शोध नेचर जियोसाइंस जर्नल में प्रकाशित हुआ है. पृथ्वी को अपनी धुरी पर घूमने में करीब 24 घंटे का समय लगता है. लेकिन हमेशा इतना ही समय नहीं लगता था. पहले इसकी गति और तेज हुआ करती थी. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि अरबों साल पहले पृथ्वी के घूर्णन की गति 6 घंटे प्रति दिन की ही थी.
एक खास गहरे क्षेत्र का अध्ययन
वैज्ञानिक अभी तक यह पता लगाने में लगे हुए हैं कि पृथ्वी ऑक्सीजन बड़ी मात्रा में कब आई. क्लेट, डिक और उनके साथियों ने अमेरिका के लेक हूरोन में मिडिल आइलैंड सिंकहोल के साइनोबैक्टीरिया मैट्स का अध्ययन किया. यहां करीब 23 मीटर की गहराई पर स्थित इस इलाके को वैज्ञानिक शुरुआती पृथ्वी को प्रदर्शित करने वाला स्थान मानते हैं.
साइनोबैक्टीरिया की मौजूदगी
इस सिंकहोल में ऑक्सीजन कम और सल्फर की मात्रा प्रचुर है. यहां किसी तरह के पौधों या पशुओं का जीवन नहीं दिखता जो इस क्षेत्र को बहुत ही खास बना देता है. लेकिन इस इलाके में एक बैंगनी रंग की मोटी चटाई है जो साइनोबैक्टीरिया की बनी है. साइनोबैक्टीरिया पृथ्वी पर पाए जाने वाले पुरातन बैक्टीरिया में से हैं. वे पानी में रहते हैं और प्रकाशसंश्लेषण की प्रक्रिया का उपयोग करते हैं यानि उन्हें जिंदा रहने के लिए सूर्य के प्रकाश की जरूरत होती है.
ऑक्सीजन का निर्माण
क्लेट बतातीं हैं कि उनकी टीम यह समझना चाहती थी कि शुरुआती पृथ्वी में ऑक्सीजन कैसे बना करती थी. उस समय पृथ्वी पर ऑक्सीजन का प्रमुख स्रोत केवल साइनोबैक्टीरिया हुआ करते थे जो अरबों साल पहले विकसित हुए थे. अपने लेख में वैज्ञानिकों ने बताया कि सूक्ष्मजीव चटाइयों में ऑक्सीजन पैदा करने वाला प्रकाशसंश्लेषण ही 2.4 अरब साल पहले ग्रेट ऑक्सीडेशन ईवेंट (GOE) के लिए बड़ा ऑक्सीजन स्रोत था.
दिन और रात का संघर्ष
अस्तित्व के संघर्ष में इन ऑक्सीजन बनाने वाले साइनोबैक्टीरिया की प्रतिस्पर्धा सफेद सल्फर ऑक्सीकरण करने वाले बैक्टीरिया के साथ थी. रात को सल्फर खाने वाले बैक्टीरिया चटाई के ऊपर हुआ करते थे तो दिन के समय साइनोबैक्टीरिया सतह पर आ जाते थे. और सूर्य की रोशनी लेकर प्रकाश संश्लेषण के द्वारा ऑक्सीजन पैदा करते थे. चूंकि उस समय दिन छोटे होते थे, साइनोबैक्टीरिया केवल कुछ ही घंटों तक सक्रिय रह पाते थे.
जब दिन लंबे होना शुरू हुए तो सूरज का प्रकाश भीज्या दा समय तक के लिए उपलब्ध होने लगा और साइनोबैक्टीरिया ज्यादा ऑक्सीजन पैदा करने लगे. इस तरह लंबे घूर्णन के कारण पृथ्वी पर ज्यादा ऑक्सीजन बनने लगीं और उसे बनाने की प्रक्रियाएं भी पनपने लगीं. अभी शोधकर्ता इस विषय और ज्यादा पड़ताल करने में लगे हैं.
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