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अफगानिस्तान (Afghanistan) पर तालिबान (Taliban) के कब्जे के साथ ही हिंदुस्तान में तमाम तरह की बातें चलने लगी हैं. कोई तालिबान की जीत को भारत की आजादी से जोड़ रहा है,
जनता से रिश्ता वेबडेस्क :- अफगानिस्तान (Afghanistan) पर तालिबान (Taliban) के कब्जे के साथ ही हिंदुस्तान में तमाम तरह की बातें चलने लगी हैं. कोई तालिबान की जीत को भारत की आजादी से जोड़ रहा है, तो कोई तालिबान से बातचीत करने का मशविरा दे रहा है. लेकिन इन सबके बीच जो सबसे दिलचस्प बात निकल कर सामने आई है, वह है तालिबान और देवबंद (Deoband) के बीच संबंध. दरअसल इस मामले ने तूल तब पकड़ लिया जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 17 अगस्त को देवबंद में एटीएस कमांडो सेंटर बनाने का आदेश दे दिया. हालांकि तालिबान से देवबंद का रिश्ता जोड़ना हवा हवाई बात नहीं है. इतिहास पर अगर नजर डालें तो तालिबान से देवबंद का रिश्ता बिल्कुल साफ दिखाई देता है.
1857 के बाद जब हिंदुस्तान से मुगल शासन का अंत शुरू हुआ और अंग्रेजी हुकूमत की शुरुआत हुई, तब 1866 में मोहम्मद कासिम और राशिद अहमद गानगोही ने इस्लाम की फिर से हिंदुस्तान में स्थापना करने के लिए देवबंद के दारुल उलूम मदरसे की शुरुआत की. आज अफगानिस्तान में जितने भी मदरसे चलते हैं उनमें ज्यादातर मदरसे देवबंदी विचारधारा को मानने वाले हैं. इसे आप ऐसे समझिए कि तालिबान, जिसमें तालिब शब्द है जो तलबा से निकला है जिसका अर्थ होता है 'छात्र' आज ज्यादातर अफगानिस्तान में तालिबानी लड़ाके इन्हीं मदरसों के छात्र हैं.
हालांकि देवबंद फिलहाल इस मामले में कुछ भी बोलने से बच रहा है. उसका कहना है कि हम हिंदुस्तान में रहते हैं और यहीं के कानून को मानते हैं. लेकिन सोशल मीडिया से लेकर जमीनी स्तर तक इस पर राजनीति तेज हो गई है. दरअसल 2022 में उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव है और बीजेपी को एक नया मुद्दा मिल गया है, यूपी में हिंदुत्व की राजनीति को तेज करने का. सोमवार को ही समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने अफगानिस्तान में तालिबान की जीत को भारत की आजादी की लड़ाई से जोड़ दिया और कहा कि भारत ने जैसे अंग्रेजों से युद्ध जीता था उसी तरह से तालिबान ने भी अफगानिस्तान से युद्ध जीता.
सपा सांसद के बयान की खूब किरकिरी हुई. बीजेपी ने इस पर पलटवार किया. यहां तक की पश्चिमी यूपी के बीजेपी के क्षेत्रीय उपाध्यक्ष राजेश सिंघल ने सपा सांसद शफीकुर्रहमान पर मुकदमा भी दर्ज करा दिया. वहीं यूपी सरकार में मंत्री मोहसिन रजा ने भी सपा सांसद पर निशाना साधते हुए कहा कि यह लोग नौजवानों को आईएसआईएस की तरफ ले जाना चाहते हैं. यह उन्हें आतंक की आग में झोंकना चाहते हैं. जिस तरह से यह तालिबान से इंप्रेस होकर तालिबान को अपना आदर्श मान रहे हैं, इनसे देश को बहुत खतरा है.
देवबंद में एटीएस कमांडो सेंटर बनाकर क्या संदेश देना चाहते हैं योगी आदित्यनाथ
अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद जिस तरह से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने देवबंद में एटीएस के कमांडो सेंटर बनाने का आदेश दिया है. उसने यूपी की सियासत में एक नया मोड़ ला दिया है. दरअसल सीएम योगी का यह फैसला दो मायनों में सटीक बैठता है. पहला सुरक्षा दृष्टिकोण से क्योंकि, देवबंद में दारुल उलूम मदरसा चलता है. जहां दुनिया भर से मुस्लिम छात्र इस्लाम की शिक्षा ग्रहण करने आते हैं और इस जिले की आबादी भी मुस्लिम बाहुल्य है. तालिबान के जीत के बाद से जिस तरह से सोशल मीडिया पर एक खास समुदाय के लोगों में खुशी देखी जा रही है, उसे देखते हुए देवबंद में एटीएस कमांडो सेंटर बनाकर बीजेपी ने प्रदेश भर में यह संदेश दे दिया है कि सूबे में इसका कोई असर नहीं पड़ेगा.
हालांकि ऐसा नहीं है कि उत्तर प्रदेश सरकार देवबंद में ही एटीएस कमांडो सेंटर बना रही है. नोएडा और लखनऊ में भी एटीएस कमांडो सेंटर खोलने की तैयारी शुरू हो चुकी है. लेकिन देवबंद में इस काम को तेजी से किया जा रहा है. प्रदेश सरकार पूरे प्रदेश से करीब डेढ़ दर्जन तेजतर्रार एटीएस अफसरों को देवबंद में तैनात करेगी.
बीजेपी के फायदे में जाएंगे तालिबान समर्थित बयान
अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद से ही हिंदुस्तान में जिस तरह के जश्न का माहौल कुछ लोगों में देखा गया, वह सीधे तौर पर भारतीय जनता पार्टी को फायदा पहुंचाएगा. आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनाव में बीजेपी इस मुद्दे को उठाकर हिंदुत्व वोट बटोरने की पूरी कोशिश करेगी. सपा सांसद शफीकुर्रहमान ने जिस तरह का बयान तालिबान की जीत को लेकर दिया है और उस पर समाजवादी पार्टी की तरफ से अभी तक कोई बयान नहीं आया. यह पूरी तरह से बीजेपी के पक्ष में जाएगा. यही नहीं ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना सज्जाद नोमानी ने भी जिस तरह से तालिबान की जीत का समर्थन किया और उस पर बीजेपी नेताओं ने पलटवार किया वह भी बीजेपी के खाते में जीत की लकीर साबित होगी.
तालिबान की जीत पर हिंदुस्तान का एक धड़ा बिल्कुल चुप है. वह इस मुद्दे पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है. सोशल मीडिया पर तमाम लोग अब सवाल उठाने लगे हैं कि आखिर क्यों हिंदुस्तान का सेकुलर धड़ा अफगानिस्तान में हो रहे इस अमानवीय कृत्य पर खामोश है. अब तक तालिबान के विरोध में न तो कांग्रेस पार्टी की तरफ से ना ही समाजवादी पार्टी की तरफ से ना ही बहुजन समाज पार्टी की तरफ से और नाही वामपंथी धड़े से विरोध की आवाज सुनाई दी है. दरअसल यह राजनीतिक पार्टियां मुस्लिम तुष्टिकरण के चलते तालिबान के विरोध में कुछ नहीं कह रही हैं और यहीं बीजेपी को बढ़त मिल जाती है. क्योंकि इसे दिखाकर बीजेपी हिंदुत्व के मुद्दे को भुनाने में कामयाब हो जाती है.
देवबंद और तालिबान का इतिहास
देवबंद में दारुल उलूम मदरसे की स्थापना मोहम्मद कासिम नानौतवी और राशिद अहमद गानगोही ने की थी. इस मदरसे में दुनिया भर के मुसलमान इस्लाम की शिक्षा ग्रहण करने आते हैं. पाकिस्तान के लगभग 15 से 25 फ़ीसदी सुन्नी मुसलमान खुद को देवबंदी मानते हैं. वहीं अफगानिस्तान के ज्यादातर तालिबानी लड़ाके इसी देवबंदी विचारधारा से प्रेरित हैं और उन्होंने भी अफगानिस्तान के देवबंदी मदरसों से शिक्षा ग्रहण की है. इस मदरसे की स्थापना का उद्देश्य था, इस्लाम धर्म की अच्छाइयों को दूसरे धर्म के लोगों को बताना और इस्लाम धर्म से उन्हें प्रभावित करना.
देवबंद और तालिबान में अगर आपको समानता देखनी है तो एक मामूली से चीज में भी आपको यह समानता दिख जाएगी. देवबंद की औरतें जिस तरह का बुर्का पहनती हैं उसी तरह का बुर्का तालिबानी अपने शासनकाल में औरतों को पहनाते थे. यह बुर्का आम बुर्के से बेहद अलग होता है और इसमें औरतें सर से लेकर पैर तक पूरी तरह से ढकी होती हैं और आंखों के सामने एक जाली नुमा पट्टी लगी होती है. इस बुर्के का रंग हल्के नीले रंग का होता है. जबकि बरेलवी और सूफी मुसलमान औरतें इस तरह के बुर्के का इस्तेमाल नहीं करती हैं.
दरअसल उत्तर प्रदेश के इस जिले में मुस्लिमों की बाहुल्य आबादी है और इसी आबादी को अपने पाले में रखने के लिए राजनीतिक पार्टियां शुरू से ही देवबंदी विचारधारा को नहीं छेड़ती हैं. आज भी जब इस तरह की बात सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रही हैं तब भी देवबंद दारुल उलूम मदरसे से जुड़े लोग इस पर कुछ कहने से बच रहे हैं.
Admin4
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