उन्होंने आगे कहा कि पिछले 10 सालों में भारत ने प्रतिदिन दो नए कॉलेजों का निर्माण किया है और अपने तकनीकी और चिकित्सकीय संस्थानों की संख्या को दोगुना किया है। यही है भारत का वह परिवर्तन जो हमें वैश्विक मंच पर एक प्रभावशाली और विश्वनीय साझेदार बनाता है। केंद्रीय मंत्री ने आगे कहा कि “चाहे ईज ऑफ डूइंग बिजनेस हो, बुनियादी ढांचे का विकास हो, ईज ऑफ लिविंग हो, डिजिटल डिलीवरी हो, स्टार्टअप हो और नवाचार संस्कृति हो, भारत विश्व में एक स्पष्ट रूप से एक अलग देश के रूप में अपनी पहचान स्थापित कर चुका है और आज की तारीख में इसी बात को जापान को पहचानने की जरूरत है।
उन्होंने आगे कहा कि वैश्विक व्यवस्था की सबसे सार्वभौमिक अभिव्यक्ति अभी भी संयुक्त राष्ट्र है। इसका सुधार अत्यंत महत्वपूर्ण है और भारत और जापान संयुक्त राष्ट्र संरचनाओं को और अधिक समकालीन बनाना चाहते हैं। विदेश मंत्री ने कहा, "यह स्पष्ट रूप से एक कठिन कार्य है, लेकिन इसमें हमें दृढ़ रहना होगा जो एशिया में बहुध्रुवीयता के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह हमारे सामान्य हित में भी है कि संतुलन बना रहे।"
उन्होंने कहा कि दुनिया अब अधिक अस्थिर, अनिश्चित, अप्रत्याशित और खुले विचारों वाली हो गई है, यह एक ऐसी संभावना है, जिसका भारत और जापान को राष्ट्रीय दृष्टिकोण के साथ-साथ अपने स्वयं के दृष्टिकोण से भी सामना करना होगा। मंत्री ने ग्लोबल साउथ में विकास सहायता के संबंध में जापानी सहयोग का भी आह्वान किया। पिछले महीने नई दिल्ली में रायसीना डायलॉग के ठीक बाद हो रही पहली रायसीना राउंडटेबल टोक्यो में इस बात पर जोर दिया गया कि भारत और जापान नए ग्लोबल ऑर्डर को लेकर आने वाली चुनौतियों पर एक साथ काम करना चाहते हैं। जयशंकर विदेश मंत्री तीन दिवसीय जापान यात्रा पर हैं। उम्मीद है कि दोनों मंत्री द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक महत्व के मुद्दों पर चर्चा करेंगे और स्वतंत्र, खुले, समावेशी, शांतिपूर्ण और समृद्ध भारत-प्रशांत क्षेत्र के लिए सहयोग पर विचारों का आदान-प्रदान करेंगे।