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अंतरिक्ष के क्षेत्र में बड़ी छलांग लगाएगा इसरो का नया प्रक्षेपण यान, लॉन्च की कीमत को कम करने पर कर रहा काम

Subhi
14 April 2022 12:44 AM GMT
अंतरिक्ष के क्षेत्र में बड़ी छलांग लगाएगा इसरो का नया प्रक्षेपण यान, लॉन्च की कीमत को कम करने पर कर रहा काम
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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) कम लागत में दोबारा इस्तेमाल किए जाने वाले प्रक्षेपण यान की तैयारी कर रहा है। इससे कई तरह की तकनीकों जैसे हाइपरसोनिक उड़ान, स्वचालित लैंडिंग, वापासी उड़ान, स्क्रैमजैट प्रणोदन आदि में इस्तेमाल की जा सकेंगी।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) कम लागत में दोबारा इस्तेमाल किए जाने वाले प्रक्षेपण यान की तैयारी कर रहा है। इससे कई तरह की तकनीकों जैसे हाइपरसोनिक उड़ान, स्वचालित लैंडिंग, वापासी उड़ान, स्क्रैमजैट प्रणोदन आदि में इस्तेमाल की जा सकेंगी। इससे हर अंतरिक्ष प्रक्षेपण और उड़ान का खर्चा बचेगा और भविष्य में अंतरिक्ष पर्यटन के लिए आधार मिल सकेगा। इस कार्यक्रम में पुर्नउपयोगी प्रक्षेपण यान को पृथ्वी की कक्षा में भी भेजे जाने की योजना है।

इस प्रौद्योगिकी प्रदर्शन कार्यक्रम का उद्देश्य व्यवसायिक अंतरिक्ष के क्षेत्र को साधना है। इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने कहा कि रीयूजेबपल व्हीकल केवल व्यवसायिक क्षेत्र के लिए ही नहीं बल्कि रणनीतिक क्षेत्र के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण हैं।

उन्होंने कहा कि इससे भारत भी अंतरिक्ष में अपने पेलोड भेजकर वापस सुरक्षित ला सकेगा। उन्होंने कहा, जल्दी ही लैंडिंग के लिए एक प्रदर्शन किया जाएगा। जो एक कक्षा प्रक्षेपण के प्रदर्शन के बाद किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इसरो यह भी पड़ताल कर रहा है कि भविष्य में किस तरह के लॉन्च व्हीकल बन सकते हैं और लॉन्चर की लागत को कैसे कम किया जा सकता है।

इन तकनीकों में होगी उपयोगी

दोबारा इस्तेमाल की जाने वाली प्रक्षेपण यान तकनीक हाइपरसोनिक उड़ान, स्वायत्त लैंडिंग, संचालित क्रूज उड़ान जैसी तकनीकों में काम आएगी। फिलहाल एक प्रक्षेपण की कीमत 20 हजार डॉलर प्रति किलोग्राम है। इसे 5 हजार डॉलर तक लाने की जरूरत है।

इन प्रयोगों का प्रदर्शन

इसरो अपने तकनीक प्रदर्शन कार्यक्रम में कई तरह की प्रयोगात्मक उड़ानों पर की शृंखला चलाएगा। दोबारा इस्तेमाल किए जाने वाला प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी प्रदर्शन (आरएलवी-टीडी) प्रौद्योगिकी प्रदर्शन अभियानों की शृंखला है। इन्हें दो चरण से कक्षा (टीएसटीओ) में पूरी तरह से फिर से इस्तेमाल किए जाने वाले वाहन की दिशा शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है।

इसरो के पास अभी दो तरह के प्रक्षेपण यान

भारत लंबे समय से अपने पृथ्वी की निचली कक्षा में पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (पीएसएलवी) और जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (जीएसएलवी) पर अपने उपभोक्ता सैटेलाइट प्रक्षेपित करता आ रहा है। पिछले तीन सालों में इसरो ने निजी और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के जरिये इनसे 351 करोड़ की आय अर्जित की है।

अंतरिक्ष पर्यटन एक बड़ा उद्योग

अंतरिक्ष पर्यटन एक बड़े उद्योग के रूप में विकसित हो रहा है और भारत अंतरिक्ष प्रक्षेपण पहले से ही एक बड़ा नाम है। अंतरिक्ष में प्रक्षेपण यान का उपयोग अब तक मुख्यत: सैटेलाइट भेजने के लिए ही किए जाते थे लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। पिछले तीन साल में इसरो ने केवल 45 अंतरराष्ट्रीय सैटेलाइट भेजे हैं।


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