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इजराइली प्रधानमंत्री ने संसद को भंग करने से पहले मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई, फिर होंगे आम चुनाव

Neha Dani
27 Jun 2022 3:55 AM GMT
इजराइली प्रधानमंत्री ने संसद को भंग करने से पहले मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई, फिर होंगे आम चुनाव
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अगर किसी सांसद की कार्यकाल के दौरान मौत हो जाती है तो इस सूची में शामिल बाद के नेताओं को मौका दिया जाता है।

तेल अवीव: इजराइली प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट ने इस सप्ताह ही संसद को भंग किए जाने और नए सिरे से चुनाव कराने की संभावना के बीच अपने मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई है। माना जा रहा है कि बेनेट ने रविवार को प्रधानमंत्री के तौर पर आखिरी बार मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई है। बेनेट के चुनाव की ओर बढ़ने के फैसले के साथ ही उस महत्वकांक्षी राजनीतिक योजना का भी समापन हो जाएगा जिसके तहत आठ विपरीत विचारधारा की पार्टियां केवल पूर्व नेता बेंजामिन नेतन्याहू को सत्ता से बाहर करने के लिए अपने-अपने मतभेदों को एक ओर रख साथ आई थीं। नेतन्याहू इस समय विपक्ष के नेता है और देश को नेतृत्व प्रदान करने को तैयार हैं।

इजरायल में तीन साल में हो चुके हैं पांच बार चुनाव
उल्लेखनीय है कि इजराइल में गत तीन साल में पांच बार आम चुनाव हो चुके हैं जिससे इजराइल का राजनीतिक संकट और गहराता जा रहा है। पिछली बार हुए चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के गठबंधन को बहुमत नहीं मिला था। जिस कारण नफ्ताली बेनेट ने विपरीत विचारधारा वाली राम पार्टी के साथ गठबंधन कर अपनी सरकार बनाई। राम पार्टी इजरायल में रहने वाले अरबी समुदाय का प्रतिनिधित्व करती है।
इजरायल में कैसे होता है चुनाव
इजरायल की संसद नेसेट का चुनाव अनुपातिक मतदान प्रणाली के आधार पर होता है। जिसमें मतदाता को बैलेट पेपर पर प्रत्याशियों की जगह पार्टी को मतदान करना होता है। पार्टियों को मिले मत प्रतिशत के अनुपात में उन्हें संसद की सीटें आवंटित कर दी जाती हैं। यह प्रक्रिया 28 दिनों के अंदर पूरी कर ली जाती है। अगर किसी पार्टी को 10 फीसदी वोट मिलता है तो उसे संसद की कुल 120 सीटों का 10 फीसदी यानी 12 सीटें दी जाती हैं।
न्यूनतम 3.5 फीसदी वोट पाना है जरूरी
किसी भी पार्टी को नेसेट (संसद) में पहुंचने के लिए कुल मतदान में से न्यूनतम 3.25 फीसदी वोट पाना जरूरी है। यदि किसी पार्टी का वोट प्रतिशत 3.25 से कम होता है तो उसे संसद में सीट नहीं दी जाती है। चुनाव से पहले इजरायल की हर पार्टी अपने उम्मीदवारों के प्रिफरेंस के आधार पर एक सूची जारी करती है। इसी के आधार पर चुनाव में जीत के बाद सांसद को चुना जाता है। अगर किसी सांसद की कार्यकाल के दौरान मौत हो जाती है तो इस सूची में शामिल बाद के नेताओं को मौका दिया जाता है।


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