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उत्तरी इस्राइल के तटीय शहर हाइफा में बृहस्पतिवार को उन बहादुर भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि दी गई, जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान शहर को तुर्क शासन से मुक्त करने के लिए प्राणों की आहुति दी।
उत्तरी इस्राइल के तटीय शहर हाइफा में बृहस्पतिवार को उन बहादुर भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि दी गई, जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान शहर को तुर्क शासन से मुक्त करने के लिए प्राणों की आहुति दी। इस युद्ध में 44 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे। भारतीय सैनिकों की बहादुरी का ही नतीजा था कि हाइफा को ओट्टोमन शासन से आजादी मिल सकी।
हाइफा में भारतीय समारोह को संबोधित करते हुए इस्राइल में बारत के राजदूत संजीव सिंगला ने कहा कि यह श्रद्धांजलि बताती है कि उनके बलिदान को कभी नहीं भुलाया जा सकेगा।
हर साल भारतीय सेना 23 सितंबर को हाइफा दिवस के तौर पर मनाकर हाइफा के युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों को याद करती है। उस समय ब्रिटिश शासन के दौरान जोधपुर, हैदराबाद और मैसूर रियासत से सैनिक यहां पर भेजे गए थे।
बता दें कि भारतीय सैनिकों की वजह से हाइफा एक ऐतिहासिक शहर बन गया जहां आज भी स्कूली बच्चों को भारतीय सैनिकों की शौर्य गाथा पढ़ाई जाती है। हाइफा शहर येरूशलम से करीब 150 किलोमीटर दूर है। उस जंग में बहादुरी का प्रदर्शन करने पर कैप्टन अमन सिंह बहादुर और दफादार जोर सिंह को सम्मान मिला। कैप्टन अनूप सिंह और सेकेंड लेफ्टिनेंट सगत सिंह को मिलिट्री क्रॉस से सम्मानित किया गया।
भारतीय सैनिकों की शौर्य गाथा बच्चों के कोर्स में
समारोह में मौजूद हाइफा नगर पालिका के सदस्य गैरी कोरेन ने कहा कि हम आज भी मेजर दलपत सिंह के साहस और बहादुरी से चकित हैं और उसका हिस्सा बनकर खुद को गौरवांवित महसूस करते हैं।
बता दें कि 2017 में पीएम नरेंद्र मोदी भी हाइफा कब्रिस्तान का दौरा कर चुके हैं। यहां 2012 में फैसला लिया गया कि शहर के बच्चों को भारतीय सैनिकों की शौर्य गाथा पाठ्यक्रम में पढ़ाई जाएगी और उसे शामिल किया।
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