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दुनिया के कई देशों में राष्ट्रवाद की भावना वहां की राजनीति पर छाई हुई है
दुनिया के कई देशों में राष्ट्रवाद (Nationalism) की भावना वहां की राजनीति पर छाई हुई है. ऐसा पिछले कुछ सालों में ज्यादा हो रहा है. अमेरिका (USA) के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प (Donald Trump) भी इस राष्ट्रवाद के सहारे सत्ता में आए थे. पिछले साल उन्हें हार का सामाना करना पड़ा लेकिन सत्ता हस्तातरंण सही तरह से नहीं हो पाया और कैपिटल हिल की घटना ने अमेरिकी लोकतंत्र को शर्मसार कर दिया. इस घटना के बारे में माना जाता है कि वह अमेरिका के ईसाई राष्ट्रवादी आंदोलन के प्रभाव के बिना नहीं हो सकता था. इसके एक साल बाद अब इस घटना और उसके पीछे कारकों और उनके विचारों पर मंथन किया जा रहा है.
गहरी थीं उस आंदोलन की जड़ें
विश्लेषकों का कहना है कि ईसाई राष्ट्रवाद की प्रतीकात्मकता पिछले साल छह जनवरी की घटनाओं पर छाई रही थी. लेकिन 2020 के चुनावों को पलटने और नहीं चुने गए राष्ट्रपति को स्थापित करने का प्रयास करने वाले इस आंदोलन की जड़े इस दिन की घटनाओं से कहीं ज्यादा गहरी थीं.
एक अहम सबक?
इस घटना के एक साल बाद इस आंदोलन का विश्लेषण जरूरी है न्यूयॉर्क टाइम्स में कैथरीन स्टीवर्ट लखती हैं कि ऐसा लगता है कि इस आंदोलन ने एक सबक सीख लिया है. वह यह है कि अगर अगली बार ज्यादा जोर लगाया जाए तो वह अमेरिकी लोकतंत्र को इतिहास बनाने में पूरी तरह से सफल हो सकता है.
दावों पर विश्वास दिलाना
साल 2020 में डोनल्ड ट्रम्प की सत्ता में वापसी की एक अहम स्थिति या शर्त यही थी कि वे पर्याप्त संख्या में अपने मतदाताओं को इस दावे पर विश्वास दिला सकें कि चुनावों में गड़बड़ी हुई थी. इस विचार पर ट्रम्प चुनाव के पहले ही दिन से दलील दे रहे थे. चुनावों की धांधली के बारे में सामाजिक और दक्षिणपंथी मीडिया के दावे के बारे में अब समझा जा सकता है.
ऐसी जरूरत थी
कई मतदादातों के लिए पोस्टर, जमावड़ा और धार्मिक मीडिया एक विश्वसनीय स्रोत होते हैं. इन माध्यमों से यह संदेश बार बार दिया गया है कि जानकारियों के बाहर स्रोतों विश्वसनीय ही नहीं हैं. जानकारी का एक बुलबुला तैयार करना, जिसमें सुधार की संभावना नहीं थी, ट्रम्प के दावे की पहली जरूरत था.
ईसाई राष्ट्रवाद की भावना
ईसाई राष्ट्रवाद इस भावना पर शुरू होता है की परम्परावादी ईसाई अमेरिकी समाज समाज में सबसे अधिक शोषित वर्ग हैं. इस आंदोलन के नेताओम में यह सुना जाना आम बात है कि वे एक तानाशाही के खिलाफ एक जंग लड़ रहे हैं. और बाइबल को जल्दी ही बहिष्कृत कर दिया जाएगा.
लोकतंत्र की भावना से ज्यादा अहमियत
इस तख्तापलट के प्रयास में लोगों के एक वर्ग को यह विश्वास देना जरूरी थाकि अमेरिका सरकार अपने किसी धर्मविशेष और सांसकृतिक विरासत से चलती है ना कि उसके लोकतांत्रिक प्रारूप से. कई लोगों के लिए हैरानी की बात है कि इस हमले के नेताओं ने खुद को देशभक्त के तौर पर दर्शाया. लेकिन उनकी सच्चाई तब पता चलती है जब वे एक बार हम यह समझ लेते है कि वे लोगों की, लोगों के द्वारा और लोगों के लिए सरकार के विचार की जगह खून, जमीन और धर्म में ज्यादा विश्वास करते हैं.
ऐसा नहीं हैं कि है जो बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद चुनाव में धांधली के आरोपों का सिलसिला खत्म हो गया. पिछले एक साल में कई लोगों रिपब्लिकन और ट्रम्प समर्थकों ने ट्रम्प के दावों का समर्थन किया है. कई मौकों पर ईसाई राष्ट्रवाद के साथ कैपिटल हिल केसमय की घटनाओं के समर्थन की जुगलबंदी देखी जाती रही है. यह सब अगले चुनाव की तैयारी की रणनीति के हिस्से के रूप में सामने आए तो हैरानी नहीं होनी चाहिए.
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