क्या बेहतर पर्यावरण लिए कोयला छोड़ने को तैयार है बुल्गारिया?
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। यूरोपीय संघ के दबाव में बुल्गारिया ने आखिरकार कोयले से निजात पा लेने का वादा किया है. लेकिन खननकर्मियों को लगता है कि देश हरित रोजगार की दिशा में कदम अभी तक बढ़ा नहीं पाया है.पहली नजर में मिनी मारित्सा इस्तोक खदान एक खाली धूसर-भूरा विस्तार ही नजर आती है, चांद की सतह जैसी बंजर और उजाड़. लेकिन गौर से देखिए तो पता चलेगा कि विशालकाय मशीनें सिलसिलेवार ढंग से जमीन के नीचे से लिग्नाइट यानी भूरा कोयला निकालने में जुटी हैं. 240 वर्ग किलोमीटर में फैली ये बुल्गारिया की सबसे बड़ी कोयला खदान है. नजदीकी सटारा जगोरा इलाके के ऊर्जा संयंत्रों को यहां से कोयला सप्लाई होता है. इन्हीं संयंत्रों में देश की करीब 30 प्रतिशत बिजली बनती है. और भी नजदीक जाकर देखें तो पता चलता है कि समूचा भूदृश्य सैकड़ों मजदूरों की गहमागहमी से पटा हुआ है. 12 घंटे की पालियों में काम करते हुए वे एक्सकेवेटर चला रहे हैं, फ्रंट लोडर ड्राइव कर रहे हैं और बिजली की मरम्मत कर रहे हैं. 40 वर्षीय योरदान मितकोव शादीशुदा हैं और दो बच्चों के पिता हैं. उन्होंने खुली खदान में सात साल काम किया है और लिग्नाइट निकाला है. कठोर कोयले से उलट भूरा कोयला भुरभुरा और ज्यादा कार्बनयुक्त होता है. ये काम मितकोव का बचपन का सपना नहीं था लेकिन पगार अच्छी है. बुल्गारिया के राष्ट्रीय सांख्यिकी संस्थान के मुताबिक, खनन में औसत तनख्वाहें वित्त सेक्टर जितनी हैं. लेकिन मितकोव इस बात को लेकर सुनिश्चित नहीं हैं कि उनके जैसे कोयला मजदूर कितने दिन ये काम करते रह पाएंगे. वह कहते हैं, "हर कोई अपनी रोजीरोटी, परिवार और आगे क्या होगा की फिक्र में घिरा है" कोविड-19 की मार से एक हरित वापसी? वर्षों से मितकोव और उनके सहकर्मी, हरित अर्थव्यवस्था की ओर जाने को लेकर राजनीतिक बहसों को देखते-सुनते आ रहे हैं.