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निवेश का न्यौता: अमीर-गरीब की खाई पाटना हो प्राथमिकता

Gulabi
20 Jan 2022 6:30 AM GMT
निवेश का न्यौता: अमीर-गरीब की खाई पाटना हो प्राथमिकता
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नौकरशाही का दखल कम हो तथा नये उद्योगों को लगाने में लालफीताशाही आड़े न आये
विश्व आर्थिक मंच की दावोस में आयोजित बैठक में दुनिया के संपन्न देशों के निवेशकों को भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती की झलक दिखाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें निवेश के लिये आमंत्रित किया है। उन्होंने दुनिया को भरोसा दिलाया कि देश कोरोना संकट से उबरकर तेज गति वाली आर्थिक व्यवस्था में कदम रख रहा है। उन्होंने कहा कि भारत ने आर्थिक सुधारों के जरिये वैश्विक कारोबार का संरचनात्मक ढांचा मजबूत बनाया है। साथ ही स्वीकारा कि कोरोना संक्रमण जरूर बढ़ा है लेकिन देश का मिजाज सकारात्मक है, जो सही मायनों में निवेश का बेहतर समय है। प्रधानमंत्री ने बताया कि सरकार व्यापार व उद्योग के अनुकूल माहौल बनाने की दिशा में काफी आगे बढ़ी है जिसमें औद्योगिक विवादों को खत्म करके कानूनों को कारोबार के अनुकूल बनाया गया है। कॉरपोरेट कर में कमी की गई है। ये स्थितियां भारत में विश्व आपूर्ति शृंखला का विकल्प मुहैया कराती हैं। दरअसल, राजग सरकार की कोशिश है कि वैश्विक संकट व चीन से कूटनीतिक व कारोबारी टकराव से उत्पन्न हालात में जो कंपनियां चीन छोड़कर जा रही हैं, उन्हें भारत आमंत्रित किया जाये। भारत का लोकतांत्रिक स्वरूप व सस्ता श्रम इसके लिये आकर्षण का काम कर सकता है। इसके अलावा भारतीय मेधा दुनिया के तमाम देशों में अपनी प्रतिभा के झंडे गाड़ रही है। दरअसल, विगत में सरकार कई विकसित देशों की कंपनियों के साथ समझौते करके इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद मसलन सेमीकंडक्टर आदि क्षेत्रों में निवेश को प्रोत्साहित करती रही है, जिससे कोरोना संकट के चलते बाधित वैश्विक आपूर्ति शृंखला को मजबूती दी जा सके। सरकार आगामी दशकों के लिये दूरगामी रणनीति बना रही है जिसके लिये वह आर्थिक सुधारों को भी गति देने की मंशा रखती है। निस्संदेह, विदेशी निवेश हासिल करने के लिये यह अनिवार्य शर्त भी है। राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ जरूरी है कि देश में कारोबार के लिये अनुकूल परिस्थितियां बनंे। नौकरशाही का दखल कम हो तथा नये उद्योगों को लगाने में लालफीताशाही आड़े न आये।
निस्संदेह, कोरोना संकट के बाद अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के लिये नया निवेश व रोजगार के अवसर बढ़ाने की जरूरत है। लेकिन उससे बड़ी चुनौती देश में बढ़ती आर्थिक असमानता है। यूं तो यह वैश्विक प्रवृत्ति है लेकिन भारत का संकट बड़ा है। विश्व आर्थिक मंच में ऑक्सफैम की एक रिपोर्ट बताती है कि देश में 2020 में कोरोना महामारी के बाद से बीते साल नवंबर तक देश के साढ़े चार करोड़ लोग गरीबी की दलदल में धंस गये। लेकिन विडंबना यह है कि देश में अमीर और अमीर हुए हैं। इस दौरान देश में अरबपतियों की संख्या में चालीस का इजाफा हुआ। अब भारत पूरी दुनिया में अरबपतियों की संख्या की दृष्टि से तीसरे नंबर पर है। यही नहीं, उनकी कुल संपत्ति दुगुनी से ज्यादा हो गई। विदेशों में अरबपति अधिक हैं लेकिन वहां गरीबी की दलदल इतनी गहरी नहीं है। विषमता का स्तर इतना अधिक नहीं है। यह आर्थिक असमानता कालांतर सामाजिक असंतोष के चलते कानून-व्यवस्था का संकट भी पैदा कर सकती है। यह चिंताजनक ही है कि देश की आधी से अधिक राष्ट्रीय आय सिर्फ दस फीसदी लोगों के हाथों में है। विसंगति यह कि शेष पचास फीसदी आबादी के हिस्से में सिर्फ तेरह फीसदी राष्ट्रीय आय है। विडंबना यह है कि देश के मध्यम व निम्न मध्यम वर्ग की आय का भी संकुचन हुआ है। वहीं रोज कमाकर खाने वाले वर्ग की स्थितियां तो और विकट हुई हैं। तमाम छोटे उद्योग-धंधे बंद हुए हैं। करोड़ों की संख्या में लोगों की नौकरियां कोरोना संकट में गई हैं और बड़ी संख्या में लोगों के वेतन में कटौती की गई है। पहली बात तो यह कि देश की आर्थिक स्थिति को कोरोना से पहले वाली स्थिति में लाये जाने की चुनौती है। ताकि देश में व्याप्त आर्थिक विषमता को दूर किया जा सके। कहा जा सकता है कि देश में आर्थिक सुधारों का ढांचा समतामूलक समाज की स्थापना में सहायक नहीं है जिस पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए। निश्चित रूप से आर्थिक सुधारों से समाज के प्रत्येक वर्ग को लाभ मिलना चाहिए। कोशिश हो कि बेरोजगारी व महंगाई को दूर करके गरीबों को राहत दी जा सके।
दैनिक ट्रिब्यून
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