अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर इस साल के अंत तक एक ऐसे यंत्र का प्रयोग किया जाएगा, जिससे भविष्य में वैश्विक स्तर पर क्वांटम संचार नेटवर्क फैलाने में मदद मिलेगी।
इस तकनीक को 'स्पेस इन्टैंगलमेंट एंड एनीलिंग क्वांटम एक्सपेरीमेंट' का नाम दिया गया है। यह दूध के एक कार्टन के आकार का यंत्र है, जो अंतरिक्ष की विपरीत परिस्थितियों में संचार की दो नई तकनीकों का प्रयोग करेगा। वैज्ञानिकों के मुताबिक, क्वांटम कंप्यूटर साधारण कंप्यूटर के बदले करोड़ों गुना ज्यादा तेज गति से डेटा का आदान-प्रदान या ऑपरेशन पूरा कर सकते हैं। अगर पूरी धरती पर क्वांटम सेंसर लगा दिए जाए तो भविष्य में हमें धरती की गुरुत्वाकर्षण बल में प्रत्येक मिनट में होने वाले बदलावों की जानकारी मिल सकती है। लेकिन क्वांटम कंप्यूटर या सेंसर्स को आपस में बातचीत करने के लिए एक तय संचार नेटवर्क की जरूरत होगी।
साल 2022 में इसी संचार नेटवर्क की शुरुआती जांच अंतरिक्ष में की जाएगी। क्वांटम संचार प्रणाली के नोड्स यानी सेक्यू को अंतरिक्ष स्टेशन पर लगाया जाएगा। यह क्वांटम डेटा रिसीव या ट्रांजिट करेंगे। ये डेटा बिना किसी ऑप्टिकल यंत्रों के जरिए सीधे धरती पर आएगा। यदि यह प्रयोग सफल होता है तो भविष्य में अंतरिक्ष में चारों तरफ इस तरह के क्वांटम नोड्स तैनात कर दिए जाएंगे।
बिना किसी रुकावट के भेजा जा सकेगा डेटा
क्वांटम नोड्स के जरिये अत्यधिक दूरी तक डेटा बिना किसी रुकावट के तेजी से भेजा जा सकेगा। क्योंकि डेटा फोटोन्स के जरिए ट्रांसमिट होगा। इससे भविष्य में क्वांटम क्लाउड कंप्यूटिंग को बढ़ावा मिलेगा। यानी क्वांटम कंप्यूटर कहीं भी हो, इसका डेटा क्लाउड में सुरक्षित रहेगा। सेक्यू को स्पेस स्टेशन के बाहर लगाया जाएगा।
रेडिएशन से हुए नुकसान को स्वयं ठीक कर लेगा यंत्र
सेक्यू सेल्फ हीलिंग करने का मास्टर है। यानी अगर सूरज के विकिरण (रेडिएशन) की वजह से किसी तरह का नुकसान होता है तो यह यंत्र उसे खुद ही ठीक कर लेगा। ताकि अंतरिक्ष के विपरीत परिस्थितियों में भी यंत्र कायदे से काम करता रहे।
भविष्य में संचार की तकनीक को बढ़ावा
नासा के जेपीएल में सेक्यू के को-इन्वेस्टिगेटर माकन मोहागेग ने कहा कि अगर यह दोनों तकनीक सफल हो जाती हैं, तो भविष्य में क्वांटम संचार की तकनीक को बढ़ावा मिलेगा। यह प्रोजेक्ट ग्लोबल लेवल पर काम करेगा। इसमें अमेरिका, कनाडा, सिंगापुर समेत कई अन्य देश भी शामिल हैं।