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रोचक घटना! सालों पहले हुई थी विशालकाय पक्षियों और सैनिकों के बीच भिड़ंत, फिर ऐसा रहा युद्ध का अंजाम

Gulabi
5 April 2021 4:42 PM GMT
रोचक घटना! सालों पहले हुई थी विशालकाय पक्षियों और सैनिकों के बीच भिड़ंत, फिर ऐसा रहा युद्ध का अंजाम
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आपने युद्ध को लेकर कई अजीबोगरीब किस्से सुने होंगे, इतिहास के पन्नों पर कई युद्ध की कई ऐसी कहानियां है

आपने युद्ध को लेकर कई अजीबोगरीब किस्से सुने होंगे, इतिहास के पन्नों पर कई युद्ध की कई ऐसी कहानियां है जिसे आप चाहकर भी नहीं भूल सकते. इन युद्धों के पीछे इंसानों का किसी या किसी मुल्क का स्वार्थ जरूर रहा है. लेकिन क्या आपने कभी पक्षियों और किसी देश के सैनिको के बारे में सोचा है अगर नहीं तो आज हम आपको एक ऐसा ही किस्सा बताने वाले है.


इस रोचक घटना को जानने के लिए आपको साल 1932 में जानना पड़ेगा. दरअसल प्रथम विश्व युद्ध (First World War) के बाद सेवानिवृत (Retired) हुए सैनिकों को ऑस्ट्रेलिया की सरकार (Government of Australia) ने पुनर्वास के लिए जमीनें दी थीं. रिटायरमेंट के बाद यहां के जवान अब किसान बन चुके थे और सरकार से प्राप्त जमीनों पर खेती करने लगे.

किसानों को परेशान करने लगे एमू
इस खेती से किसान को एक समस्या आने लगी क्योंकि विशालकाय जंगली पक्षी एमू ने उनकी फसलों को बर्बाद करना शुरू कर दिया. इसके चलते किसान बने सैनिकों को भारी नुकसान होने लगा. इन्हें रोकने के लिए खेतों के चारों ओर फेंसिंग भी लगाई लेकिन इन विशालकाय जंगली पक्षी एमू ने सारी फेंसिंग को तोड़कर दिया. इसमें पूरी घटना में सबसे हैरान कर देने वाले यह बात यह थी ये पक्षी कोई एक-दो या सौ-दो सौ नहीं थे बल्कि करीब 20 हजार थे.

इस तरह की घटना जब रोज होने लगी तो किसान बने सैनिकों का एक प्रतिनिधिमंडल सरकार के पास अपनी समस्या लेकर पहुंचा. इस समस्या की गंभीरता को देखते हुए किसानों की मदद के लिए ऑस्ट्रेलिया के तत्कालीन रक्षामंत्री ने मशीन गन से लैस सेना की एक टुकड़ी को किसानों की फसल की सुरक्षा के लिए भेजा.

दो नवंबर 1932 को सरकार द्वारा भेजी गई सेना ने एमू के झुंड को भगाने के लिए ऑपरेशन शुरु किया. लेकिन सैनिकों को सफलता हाथ नहीं लगी क्योंकि जवानों के हमले से पहले एमू वहां से भाग निकलते थे. चार नवंबर, 1932 को भी सैनिकों के साथ कुछ ऐसा ही हुआ. इस दिन सैनिकों ने करीब 1000 एमूओं का एक झुंड देखा और वो उनपर अभी फायर करने ही वाले थे कि मशीन गन जाम हो गई.

पक्षियों ने खुद को बचाने के लिए अपनाई खास टेक्निक
इस दौरान एमू सतर्क हो गए और वहां से भाग गए. हालांकि फिर भी सैनिकों ने करीब 12 एमूओं को मार गिराया था. इस घटना के बाद से एमू काफी सतर्क हो गए. ऐसा कहा जाता है कि एमूओं ने खुद को सैनिकों से बचाने के लिए खुद को छोटे-छोटे समूहों में बांट लिया था. इस दौरान वह किसानों की फसलों को भी बर्बाद किया करते थे और जब सैनिक उनपर हमला करने आते तो वह सर्तक होकर वहां से भाग निकलते.

ऐसा कहा जाता है कि इस लड़ाई के दौरान सैनिको ने एमू पर करीब 2500 राउंड फायर किए गए थे, लेकिन 20 हजार एमूओं में से मुश्किल से वह 50 को ही मारने में सफल हो पाए थे. इस घटना की खबर जैसे ग्लोबल मीडिया में पहुंची तो इसकी चर्चा शुरू हो गई और सरकार की आलोचना होने लगी. अंत में हार मानकर सरकार ने सेना को वापस बुला लिया.

इस घटना को ऑस्ट्रेलिया के इतिहास में 'एमू वॉर' या फिर 'ग्रेट एमू वॉर' के नाम से जाना जाता है. इस ऑपरेशन के इंचार्ज मेजर मर्डिथ ने कहा था कि अगर उनके पास भी एमू पक्षियों की एक डिवीजन होती और वो गोली चला सकते तो वो दुनिया की किसी भी सेना का सामना कर सकते थे.


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