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पूरी दुनिया में बढ़ेगी महंगाई! रूस और यूक्रेन के जंग से गहराया ये संकट

Gulabi
6 March 2022 3:13 PM GMT
पूरी दुनिया में बढ़ेगी महंगाई! रूस और यूक्रेन के जंग से गहराया ये संकट
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दुनिया में बढ़ेगी महंगाई
बार्सिलोना (स्पेन): रूसी हमले का असर सिर्फ यूक्रेन ही नहीं बल्कि यूरोप, अफ्रीका और एशिया में रहने वाले लोगों की आजीविक पर पड़ रहा है. रूसी टैंक और मिसाइलें इन इलाकों में रहने वाले लोगों की खाद्यान्न आपूर्ति और आजीविका को खतरे में डाल रही हैं. दरअसल, इन इलाकों के लोग काला सागर क्षेत्र की उस उपजाऊ जमीन पर निर्भर हैं, जिसे 'दुनिया की ब्रेड टोकरी' भी कहा जाता है. लेकिन रूसी हमले के कारण 'ब्रेड की टोकरी' पर खतरा मंडराने लगा है.
खेतों को छोड़ने पर मजबूर किसान
यूक्रेन के किसानों को अपने खेतों को छोड़कर जाना पड़ा है, खेत खलिहान सूने पड़े हैं, लाखों किसान भाग चुके हैं या फिर संघर्ष कर रहे हैं या जिंदा बचे रहने की जद्दोजहद में फंसे हैं. बंदरगाह बंद कर दिए गए हैं जहां से गेहूं एवं अन्य खाद्यान्न ब्रेड, नूडल्स या पशुचारा बनाने के लिए भेजे जाते थे. ऐसी चिंता है कि दूसरे कृषि पॉवर हाउस रूस से पश्चिम देशों के प्रतिबंधों के चलते अनाज निर्यात रुक गया है.
अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ी चिंता
वैसे तो गेहूं की ग्लोबल सप्लाई में अब तक कोई समस्या नहीं आई है लेकिन फिर भी गेंहू के दाम आक्रमण से पहले के मुकाबले 55 फीसद बढ़ गए हैं और ऐसे में किसानों की चिंता बढ़ गयी है कि आगे क्या होगा? इंटरेनशनल ग्रेंस काउंसिल के निदेशक अर्नाड पेटिट ने कहा कि यदि लड़ाई लंबी खिंचती है तो जो देश यूक्रेन से सस्ते गेहूं आयात पर निर्भर थे, उन्हें जुलाई से कमी का सामना करना पड़ सकता है.
दुनियाभर में पड़ेगा असर
इससे मिस्र एवं लेबनान जैसे देशों में खाद्यान्न असुरक्षा पैदा हो सकती है और लोगों को गरीबी का सामना भी करना पड़ सकता है. इसकी वजह है कि इन देशों में आहार पर सरकार से सब्सिडी प्राप्त ब्रेड का वर्चस्व है. यूरोप में, अधिकारी यूक्रेन से उत्पादों की संभावित कमी और पशुचारों के दामों में बढ़ोतरी के सिलसिले में अपनी तैयारी कर रहे हैं, क्योंकि अगर किसान लागत उपभोक्ताओं पर डालते है तो मांस एवं डेयरी उत्पाद महंगे हो सकते हैं.
रूस और यूक्रेन से दुनिया में गेहूं और जौ के एक तिहाई हिस्से का निर्यात (Export) होता है. यूक्रेन मक्के का बड़ा उत्पादक है और सूर्यमुखी तेल में अग्रणी है. इस युद्ध से खाद्य आपूर्ति ऐसे समय में घट सकती है जब 2011 के बाद से दाम सबसे ऊंचे स्तर पर हैं.
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