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वैश्विक सरकारों की ओर से कोविड-19 की अप्रभावी प्रतिक्रिया के कारण अब 'डूम्सडे क्लॉक' में इस महामारी के दूसरे साल के दौरान, आधी रात होने में सिर्फ 100 सेकंड बाकी हैं।
वैश्विक सरकारों की ओर से कोविड-19 की अप्रभावी प्रतिक्रिया के कारण अब 'डूम्सडे क्लॉक' में इस महामारी के दूसरे साल के दौरान, आधी रात होने में सिर्फ 100 सेकंड बाकी हैं। द बुलेटिन ऑफ द एटॉमिक साइंटिस्ट्स' (बीएएस) के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन के साथ, परमाणु तनाव और वैश्विक महामारी हमें पहले से और ज्यादा सर्वनाश के करीब ले आई है।
पिछले साल के गंभीर रिकॉर्ड को बनाए रखने का मतलब यह है कि वैश्विक सर्वनाश की कथित धमकी के रखवाले पिछले 12 महीनों में शांत नहीं हुए हैं। उन्होंने चेतावनी दी है कि कोरोना वायरस महामारी ने सिखा दिया है कि कैसे बिना तैयारी और बिना इच्छा वाले देश इस संकट से कैसे पार पा सकते हैं।
हालांकि वैज्ञानिकों को जो बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद थोड़ी उम्मीद है क्योंकि बाइडेन पेरिस समझौते को दोबारा शुरू कर सकते हैं और विश्व स्वास्थ्य संगठन के सदस्य बने रह सकते हैं। द बुलेटन ऑफ द एटॉमिक साइंटिस्ट्स' (बीएएस) के सीईओ और अध्यक्ष रशेल ब्रॉनसन का कहना है कि कोरोना वायरस के दौर में दुनियाभर की सरकारों ने अपनी जिम्मेदारी निभाई, वैज्ञानिक सलाह की अनदेखी की, प्रभावी ढंग से संवाद करने के लिए सहयोग नहीं किया, जिसका परिणाम यह हुआ कि वो अपने नागरिकों के स्वास्थ्य और कल्याण की रक्षा करने में विफल रहीं।
द बुलेटि+न ऑफ द एटॉमिक साइंटिस्ट्स' (बीएएस) के वैज्ञानिक रॉबर्ट रोजनर ने कहा था कि साल 1949 में जब रूस ने पहला परमाणु बम आरडीएस-1 का परीक्षण किया और दुनिया में तेजी से परमाणु हथियारों की दौड़ शुरू हुई, तो उस वक्त आधी रात से 180 सेकेंड की दूरी थी। उन्होंने कहा कि चार साल बाद साल 1953 में यह घटकर 120 सेकेंड पर आ गया। यह दुनिया का वह दौर था, जब अमेरिका ने 1952 में पहले थर्मोन्यूक्लियर डिवाइस का परीक्षण किया था और शीत युद्ध चरम पर था।
रशेल ब्रॉनसन का कहना है कि अब हम बता रहे हैं कि दुनिया तबाह होने में कितने सेकंड का वक्त और बाकी है। डूम्सडे क्लॉक के मुताबिक आधी रात होने में जितना कम समय रहेगा, दुनिया परमाणु और जलवायु संकट के खतरे के उतने ही करीब होगी।
यह घड़ी साल 1947 से लगातार काम कर रही है, जो इस बात की जानकारी देती है कि दुनिया पर परमाणु हमले की आशंका कितनी अधिक है। वैज्ञानिकों के अनुसार, 73 साल के इतिहास में सुई का कांटा सबसे अधिक तनावपूर्ण मुकाम पर बताया गया है।
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