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क्रेन से जुड़े मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पहली बार किसी मतदान में हिस्सा लेकर भारत ने यह साफ कर दिया कि वह करेगा वही जो उसे उचित लगेगा। भारत का यह कदम इस बात का भी स्पष्ट संदेश माना जाना चाहिए कि यूक्रेन से संबंधित किसी भी मसले पर अगर वह कोई फैसला करता है तो ऐसा किसी दबाव में नहीं होगा, बल्कि राष्ट्रहित को ध्यान में रख कर ही कोई फैसला किया जायेगा। दरअसल, सुरक्षा परिषद ने यूक्रेन की आजादी की इकत्तीसवीं वर्षगांठ पर बैठक बुलाई थी। इस बैठक में रूस-यूक्रेन युद्ध पर चर्चा होनी थी और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की को भी बोलने का मौका देना था। पर जैसे ही बैठक शुरू हुई तभी रूसी राजदूत ने यह मांग कर दी कि अगर जेलेंस्की को वीडियो टेली-कांफ्रेंसिंग के जरिये बैठक में शामिल किया जाना है तो इसके लिए पहले मतदान की प्रक्रिया पूरी करवाई जानी चाहिए। जब मतदान हुआ तो भारत सहित तेरह सदस्यों ने यूक्रेन के पक्ष में वोट दिया और रूस ने विरोध में, जबकि चीन मतदान से गैरहाजिर रहा। इसमें संदेह नहीं कि रूस नहीं चाहता कि जेलेंस्की को सुरक्षा परिषद की बैठक में किसी भी रूप में हिस्सा लेने का मौका मिले।
गौरतलब है कि इस साल फरवरी में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से अंतरराष्ट्रीय बिरादरी दो खेमों में बंट गई है। एक खेमे में रूस, चीन जैसे देश हैं तो दूसरा खेमा अमेरिका और यूरोपीय देशों का है जो यूक्रेन पर हमले के लिए रूस को सबक सिखाने पर उतारू रहा है। यूक्रेन पर हमले के बाद रूस पर अमेरिका और पश्चिमी देशों ने कड़े आर्थिक प्रतिबंध भी लगा दिये हैं। जहां तक भारत का संबंध है, तो रूस-यूक्रेन जंग को लेकर भारत शुरू से ही तटस्थता की नीति पर चलता रहा है। इसके पीछे भारत का मानना रहा है कि वह किसी खेमेबाजी में नहीं पड़ेगा, बजाय इसके कि वह राष्ट्रहित को प्राथमिकता देगा। इसी वजह से अब तक यूक्रेन के मुद्दे पर सुरक्षा परिषद में जब-जब मतदान का मामला आया, भारत उससे अलग ही रहा। हालांकि इसके लिये भारत को कड़ी आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा।
अमेरिका सहित कई पश्चिमी देशों ने भारत पर इस बात के लिये दबाव बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि वह रूस के खिलाफ आवाज उठाये और यूक्रेन हमले के लिये उसकी निंदा करे। भारत के तटस्थता रुख का अर्थ यह कतई नहीं रहा है कि वह यूक्रेन पर हमले का समर्थक हैं, या गुपचुप रूप से रूस के साथ खड़ा है, या फिर रूस के किसी दबाव में है। बल्कि सच तो यही है कि भारत पहले ही दिन से कहता आया है कि रूस और यूक्रेन को तत्काल युद्ध बंद कर कूटनीतिक और शांतिपूर्ण तरीके से मसले को सुलझाना चाहिए। युद्ध किसी समस्या का हल नहीं है। इस बार यूक्रेन के पक्ष में मतदान करने के पीछे मंतव्य यही दिखता है कि जेलेंस्की को टेली-कांफ्रेंसिंग के जरिये अपनी बात कहने का मौका दिया जाये। रूस यूक्रेन जंग को चलते छह महीने हो गये हैं। यह लड़ाई अभी कितनी लंबी खिंचेगी, कोई नहीं जानता। इस युद्ध की वजह से दुनिया के कई देश आर्थिक और खाद्य संकट से घिर गये हैं। ऐसे में भारत खेमेबंदी से अलग रहते हुए अगर शांति और कूटनीति की बात कर रहा है, तो इससे बेहतर क्या हो सकता है!

Rani Sahu
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