विश्व

कॉप26 में भारत की मांग, जलवायु बचाने के लिए ज्यादा पैसा दें विकसित देश, कई देशों ने किया समर्थन

Renuka Sahu
9 Nov 2021 1:36 AM GMT
कॉप26 में भारत की मांग, जलवायु बचाने के लिए ज्यादा पैसा दें विकसित देश, कई देशों ने किया समर्थन
x

फाइल फोटो 

ग्लासगो में चल रही जलवायु वार्ता कॉप-26 के दौरान भारत के नेतृत्व में ‘बेसिक’ देशों ने जलवायु वित्त पोषण को लेकर विकसित देशों को आड़े हाथों लिया।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। ग्लासगो में चल रही जलवायु वार्ता कॉप-26 के दौरान भारत के नेतृत्व में 'बेसिक' देशों ने जलवायु वित्त पोषण को लेकर विकसित देशों को आड़े हाथों लिया। भारत ने कहा कि यदि विकसित देश जलवायु वित्त पोषण की अपनी जिम्मेदारी निभाने में नाकाम रहे तो विकासशील देशों के बढ़े हुए उत्सर्जन एवं नेट जीरो लक्ष्य खतरे में पड़ सकते हैं। क्योंकि वित्त के बगैर उन्हें पूरा करना संभव नहीं होगा।

जलवायु वार्ता में सोमवार को स्टॉक टेकिंग सत्र के दौरान बेसिक (ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, चीन तथा भारत) देशों की तरफ से भारत ने अपनी बात रखी। भारत की मुख्य वार्ताकार तथा पर्यावरण मंत्रालय की अतिरिक्त सचिव ऋचा शर्मा ने कहा कि ज्यादातर देशों ने अपने कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्यों में बढ़ोतरी की है। भारत समेत कई देशों ने नेट जीरो का भी ऐलान किया है। एक तरफ जहां विकासशील देश अपने लक्ष्यों में बढ़ोतरी कर रहे हैं, वहीं विकसित देश एक दशक पहले तय की हुई 100 अरब उॉलर की राशि का भी इंतजाम जलवायु खतरों से निपटने के लिए नहीं कर पा रहे हैं। न तो अब तक यह राशि एकत्र हुई है और न ही राष्ट्रों को प्रदान की गई है।
उन्होंने कहा कि यह राशि एक दशक पहले तय हुई थी और तब लक्ष्य भी अलग थे। लेकिन आज जब देशों ने अपने लक्ष्य बढ़ा दिए हैं, वे नेट जीरो के लिए कार्य कर रहे हैं तो इस राशि को बढ़ाए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि 2025 तक विकसित देश इसके लिए नए वित्तीय लक्ष्य की घोषणा करें।
उन्होंने कहा कि विकासशील देशों को जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए वित्तीय मदद करना विकसित देशों की जिम्मेदारी है। क्योंकि जलवायु वित्तपोषण के बगैर नए जलवायु लक्ष्यों की प्राप्त खतरे में पड़ सकती है। इसलिए विकसित देश जलवायु वित्तपोषण की राशि में इजाफा करें और उसे विकासशील देशों तक पहुंचाना भी सुनिश्चित करें। वैसे भी ऐतिहासिक रूप से यह विकसित देशों की जिम्मेदारी है क्योंकि मौजूदा खतरे के लिए वे ज्यादा जिम्मेदार हैं। इसलिए बेसिक देश इस मामले में विकसित देशों की जवादेही सुनिश्चित करने का अनुरोध करते हैं।
बता दें कि भारत इस मुद्दे को पूर्व में भी कई वार्ताओं में उठा चुका है। इस मामले में उसे 'बेसिक' देशों के साथ-साथ गरीब देशों का भी समर्थन मिल रहा है। इस बार अभी आगे इस मुद्दे पर और चर्चा होगी। 'बेसिक' देशों की कोशिश है कि इस मामले में विकसित देशों को जलवायु वित्त पोषण को लेकर घोषणा करने के लिए बाध्य किया जाए। इसमें प्रतिवर्ष 100 अरब डॉलर की राशि सुनिश्चित कराने और आगे के लिए 2025 तक नई जलवायु वित्त पोषण राशि घोषित करना शामिल है।


Next Story