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स्वच्छ व स्वस्थ पर्यावरण पर यूएन के प्रस्ताव का भारत ने किया समर्थन, लेकिन साथ ही व्यक्त की कुछ चिंताएं

Neha Dani
29 July 2022 10:08 AM GMT
स्वच्छ व स्वस्थ पर्यावरण पर यूएन के प्रस्ताव का भारत ने किया समर्थन, लेकिन साथ ही व्यक्त की कुछ चिंताएं
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इस प्रकार वर्तमान प्रस्ताव में घोषित मान्यता का उद्देश्य इससे कमजोर पड़ता है।’

भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में स्वच्छ, स्वस्थ और टिकाऊ पर्यावरण के अधिकार को मानवाधिकार के रूप में मान्यता देने के प्रस्ताव का समर्थन करते हुए इसके पक्ष में मतदान किया है। हालांकि, प्रस्ताव के संकल्प की प्रक्रिया और सार पर चिंता जताते हुए इससे संबंधित पैराग्राफ-1 से खुद को अलग कर लिया है। 193 सदस्यीय महासभा में गुरुवार को 161 मतों के साथ इस प्रस्ताव को पारित कर दिया गया। इस दौरान चीन, रूस, बेलारूस, ईरान, सीरिया, कंबोडिया, इथियोपिया व किर्गिस्तान ने प्रस्ताव से खुद को दूर रखा।


संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत के स्थायी मिशन के सलाहकार आशीष शर्मा ने कहा कि भारत बेहतर पर्यावरण के प्रयास के लिए हमेशा तैयार है। लेकिन प्रस्ताव अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण कानून में समानता के मूलभूत सिद्धांत को स्पष्ट नहीं करता है। इसलिए भारत को इस पर चिंता है।

शर्मा ने कहा कि संकल्प के पैराग्राफ-एक में लिखा है कि महासभा मानव अधिकार के रूप में स्वच्छ, स्वस्थ और टिकाऊ पर्यावरण के अधिकार को मान्यता देता है। उन्होंने कहा कि इस बयान को आधिकारिक रिकार्ड में शामिल किया जाए। संयुक्त राष्ट्र महासभा के संकल्प अपने आप में बाध्यकारी नहीं हैं। यह केवल उनके लिए है, जो एक नए मानव अधिकार के लिए प्रतिबद्ध हैं।

वहीं, संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने भी प्रस्ताव का स्वागत करते हुए इसे ऐतिहासिक बताया है।


प्रस्ताव के परिचालन संबंधी पैराग्राफ-1 के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) 'एक मानवाधिकार के रूप में स्वच्छ, स्वस्थ और चिरस्थायी पर्यावरण के अधिकार को मान्यता देती है।'

उन्होंने अनुरोध किया कि इस बयान को बैठक में आधिकारिक रिकॉर्ड में शामिल किया जाए। आशीष शर्मा जोर देकर कहा कि यूएनजीए का प्रस्ताव कोई बाध्यकारी दायित्व निर्धारित नहीं करता और सदस्य देशों को केवल सम्मेलनों तथा संधियों के माध्यम से इसे पूरा करने के लिए बाध्य बनाता है।

आशीष शर्मा ने कहा, ' 'स्वच्छ', 'स्वस्थ' और ' चिरस्थायी' शब्दों की कोई स्पष्ट समझ एवं ऐसी परिभाषा नहीं है, जिस पर सभी सहमत हों। वर्तमान में, सभी ने अपनी समझ से इनकी परिभाषाएं गढ़ रखी हैं और इस प्रकार वर्तमान प्रस्ताव में घोषित मान्यता का उद्देश्य इससे कमजोर पड़ता है।'

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