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भारत बना सच्चा पड़ोसी: श्रीलंका के 'संकटमोचक' बनेंगे PM मोदी? चीन के खिलाफ रणनीति

jantaserishta.com
8 April 2022 10:52 AM GMT
भारत बना सच्चा पड़ोसी: श्रीलंका के संकटमोचक बनेंगे PM मोदी? चीन के खिलाफ रणनीति
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नई दिल्ली: श्रीलंका आजादी के बाद से सबसे खराब आर्थिक दौर से गुजर रहा है. कंगाली ऐसी आ गई है कि लोगों के लिए खाने के लाले पड़ रहे हैं, पेट्रोल-डीजल की किल्लत हो गई है और घंटों के लिए अंधरे में रहने को मजबूर होना पड़ रहा है. अब श्रीलंका की इस आर्थिक स्थिति के लिए कई फैक्टर जिम्मेदार हैं. उसके खुद के गलत फैसलों के अलावा चीन की कर्ज ने भी उसे फंसा दिया है. ऐसे में वर्तमान स्थिति में श्रीलंका के लिए चीन एक बड़ा विलेन साबित हुआ है. ऐसा विलेन जिसने उसे भारी कर्ज में डुबो दिया है. अब सवाल उठता है कि इस पड़ोसी देश पर आए इस संकट के समय भारत कहां खड़ा है? क्या इस मुश्किल समय में सिर्फ 'पड़ोसी धर्म' निभाया जाएगा या फिर अब चीन के प्रभाव को भी कम करने की कोशिश होगी?

इस सवाल को लेकर जब विदेशी मामलों के जानकार कमर आगा से बात की गई तो उन्होंने सबसे पहले चीन की मंशा के बारे में विस्तार से बताया. उन्होंने कहा कि भारत और श्रीलंका की मित्रता हजारों साल पुरानी है. वहीं चीन ने जो श्रीलंका के साथ दोस्ती निभाई है, वो सिर्फ वहां के प्रेसिडेंट, प्रधानमंत्री और सरकार तक सीमित थी. कमर आगा के मुताबिक जिन भी देशों ने चीन को लेकर ये सोचा कि उनकी मदद से उनका विकास होगा, तरक्की होगी, उन्होंने ये नहीं समझा कि वो कितने बड़े 'डेब्ट ट्रैप' फंसने जा रहे हैं.
कमर आगा ने बताया कि चीन की कई ऐसी परियोजनाएं हैं जिसके दम पर वो दूसरे देशों को कर्ज तले दबा रहा है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण वे राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वकांक्षी परियोजना 'बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट' को मानते हैं. इस परियोजना को लेकर उनका कहना है कि चीन का बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट एक डेब्ट ट्रैप की तरह काम कर रहा है. गरीब देशों को बड़ी मात्रा में पैसा दिया जा रहा है, इतना ज्यादा निवेश किया जा रहा है कि वो देश ऋण चुकाने के लायक भी नहीं रहता. इस सब के ऊपर चीन ऐसी परियोजनाएं जो बना रहा है, वो सभी उसके फेवर में रहती हैं, वहां के लोगों को ध्यान में रखकर तैयार की जाती हैं. तो 'बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट' के साथ ये एक बड़ी समस्या है.
अब जिस जाल में कई देश फंसे हैं, उसी का सबसे बड़ा शिकार श्रीलंका भी हुआ है. चीन का श्रीलंका के ऊपर 5 बिलियन डॉलर से ज्यादा का कर्ज बताया जा रहा है. अभी उसकी जैसी हालत है, वो इस कर्ज को चुकाने की परिस्थिति में नहीं है. अब इसी ट्रेंड को चीन का डेब्ट ट्रैप कहा जा रहा है. कमर आगा बताते हैं कि चीन उन देशों के साथ ज्यादा काम करता है जहां पर लोकत्रांतिक सरकार नहीं होती हैं, ज्यादातर ऐसे भी देश होते हैं जहां पर तानाशाही हावी रहती है या जहां पर ताकत कुछ लोगों के हाथ में रहती है. उनकी माने तो चीन की इस पॉलिसी का शिकार सिर्फ श्रीलंका नहीं हुआ है, बल्कि मालदीव, बांग्लादेश, म्यांमार और अफ्रीका के कई देशों के साथ भी ऐसा ही किया जा चुका है. आगा ने कहा है कि चीन सिर्फ कर्ज नहीं दे रहा है, बल्कि ऐसे देशों में भ्रष्टाचार भी फैला रहा है. ऐसी रिपोर्ट आ रही हैं. अपने इंट्रेस्ट को प्रमोट करने के लिए चीन ऐसा कर रहा है. ऐसा करके ही चीन ने श्रीलंका का हंबनटोटा पोर्ट अपने पास ले लिया. धीरे-धीरे करके पूरा श्रीलंका ही चीन के हाथ में आ गया.
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या जब चीन की ये 'चाल' अब पूरी दुनिया समझ चुकी है, क्या उसे इसका नुकसान होने वाला है और क्या भारत अब श्रीलंका में फिर अपनी सक्रियता बढ़ा सकता है? इस बारे में कमर आगा थोड़ी अलग राय रखते हैं. उनकी नजरों में श्रीलंका में जारी वर्तमान स्थिति के दौरान भारत के साथ 'आपदा' शब्द का इस्तेमाल होना ठीक नहीं है. वे मानते हैं कि भारत इस समय अपना 'पड़ोसी धर्म' निभा रहा है. वे कहते हैं कि भारत तो पहले भी श्रीलंका का दोस्त था और आज भी वो उसका दोस्त है. इस समय जब श्रीलंका में ये आर्थिक संकट आया है, तब सबसे पहले मदद को आगे भारत ही आया है. इस समय अगर वहां की सरकार भारत से मदद मांग रही है, तो जनता भी उम्मीद लगाए बैठी है. वो भी भारत से ही गुहार लगा रही है.
कमर आगा आगे कहते हैं कि ये बात पहले से स्पष्ट थी कि लंबी रेस में चीन नहीं टिक पाएगा. वहीं अब कुछ समय से श्रीलंका की वर्तमान सरकार को भी इस बात का अहसास हो गया है कि बिना भारत के उसके देश का विकास संभव नहीं है. ऐसी उम्मीद है कि जो भी श्रीलंका में नई सरकार आएगी वो 'प्रो इंडिया' होगी. वहीं कमर आगा ने इस बात का भी जिक्र किया कि श्रीलंका में जो आर्थिक संकट पैदा हुआ है, इसका नुकसान चीन को भी उठाना पड़ा है. अब पूरी दुनिया में उसकी छवि धूमिल हुई है.
वैसे श्रीलंका में जारी वर्तमान आर्थिक संकट ने भारत के चाय निर्यातकों के लिए बड़ा अवसर दे दिया है. पीटीआई ने रेटिंग एजेंसी इकरा के उपाध्यक्ष कौशिक दास से जब बात की तो उन्होंने बताया कि श्रीलंका अंतरराष्ट्रीय चाय बाज़ार का एक बड़ा खिलाड़ी है और अकेले उसी की तरफ से 97-98 फ़ीसदी विदेशी बाज़ार में निर्यात होता है. लेकिन जब से श्रीलंका में आर्थिक संकट आया है, चाय उत्पादन में बड़ी गिरावट दर्ज की गई है. अब उनके मुताबिक उसी गिरावट की भरपाई भारत के निर्यातक कर सकते हैं.
इस सब के अलावा भारत ने अपनी तरफ से कुछ ऐसी महत्वाकांक्षी परियोजनाएं भी शुरू की हैं जो भविष्य में देश को तो आत्मनिर्भर बनाएंगी बल्कि भारत के लिए नए अवसर भी खोलेगी. अभी भारत सरकार की तरफ से 27000 करोड़ रुपये की लागत से तमिलनाडु के Enayam में एक 'Container Transshipment Project ' पर काम किया जा रहा है. इसे Enayam Port भी कहा जा सकता है. अब इसके निर्माण का सबसे बड़ा कारण ये है कि भारत अभी अपने पोर्टों पर ज्यादा बड़े जहाजों को नहीं संभाल पाता है. इस वजह से ज्यादातर कंटेनर मूवमेंट कोलंबो और सिंगापुर में बने पोर्ट के जरिए किया जाता है. लेकिन पिछले सात साल से भारत Enayam Port के निर्माण पर काम कर रहा है.
उदेश्य स्पष्ट है जो भारतीय कंटेनर अभी विदेशी बंदरगाहों के माध्यम से ट्रांसशिप किए जा रहे हैं, उसको रोकना है. तीन चरणों में चल रहा Enayam Port का निर्माण 2030 तक पूरा कर लिया जाएगा. इसके बनने के बाद भारत ना सिर्फ अपने कंटेनरों को आसानी से संभाल पाएगा, बल्कि जरूरत पड़ने पर ऐसे ट्रांसशिपमेंट हब का काम करेगा जो यूरोप, अफ्रीका, अमेरिका, बांग्लादेश, म्यांमार की मदद करेगा. ऐसे में अगर श्रीलंका में राजनीतिक अस्थिरता लंबे समय तक जारी रही, उसका ट्रेड पर भी सीधा असर पड़ेगा. ऐसा होने पर भारत इस क्षेत्र में भी मजबूत विकल्प बन सकता है.
लेकिन एक्सपर्ट्स चेतावनी दे रहे हैं कि इस मुश्किल समय में भारत को अगर अवसर मिल रहा है, तो कई चुनौतियां भी पेश हो रही हैं. सबसे बड़ा संकट तो श्रीलंका से हो रहा पलायन है. वहां से कई लोग अपना देश छोड़ भारत का रुख कर रहे हैं. खाने की कमी और नौकरी नहीं होने की वजह से वो सब भारत आना चाहते हैं. ऐसे में पड़ोसी देशों में पैदा हुई अस्थिरता भारत के लिए अवसर और चुनौती दोनों है.
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