न्यूयॉर्क। रूस और यूक्रेन के बीच जंग शुरू हुए शुक्रवार को एक साल पूरा हो गया है। तमाम दबावों के बावजूद 365 दिनों तक भारत अपने पुराने रणनीतिक साझीदार के साथ मजबूती से खड़ा रहा है। संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में हुई एक वोटिंग से उसने साफ कर दिया है कि चाहे कुछ भी हो जाए, भारत और रूस की दोस्ती कभी खत्म नहीं हो सकती है। यूक्रेन में दीर्घकालिक शांति कायम करने के मकसद से महासभा में एक प्रस्ताव पर मतदान हुआ। भारत उन 32 देशों में शामिल हुआ जिन्होंने इस प्रस्ताव से दूरी बनाई थी। भारत इससे पहले भी कई बार वोटिंग से दूरी बनाई है। हालांकि उसका यह रवैया अमेरिका समेत कुछ पश्चिमी देशों को रास नहीं आता है। गुरुवार को हुई इस वोटिंग को एतिहासिक करार दिया जा रहा है। इस मतदान के जरिए अमेरिका और यूके समेत तमाम देशों ने रूस के यूक्रेन पर हमले की निंदा की है। महासभा की तरफ से मांग की गई है कि रूस की सेनाएं तुरंत यूक्रेन को खाली करके वापस चली जाएं। इसके साथ ही यूक्रेन में स्थाई और दीर्घकालिक शांति की अपील भी की गई है।
141 सदस्यों ने इस प्रस्ताव के समर्थन में वोटिंग की, जबकि चीन और भारत समेत 32 देश इससे गायब रहे। पाकिस्तान और ईरान भी इस मतदान से गायब रहे हैं। भारत की स्थाई प्रतिनिधि रूचिरा कंबोज ने दोहराया कि भारत की स्थिति रूस और यूक्रेन जंग में वही है। वह हमेशा से इस बात का समर्थन करता आया है कि युद्ध खत्म करने का एकमात्र जरिया कूटनीति और बातचीत है। उन्होंने कहा भारत दृढ़ता से बहुपक्षवाद के प्रति प्रतिबद्ध है और वह संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों में यकीन रखता है। हम हमेशा बातचीत और कूटनीति को एकमात्र विकल्प के तौर पर देखते हैं।
उन्होंने आगे कहा भारत प्रस्ताव के मकसद को समझता है। साथ ही यूक्रेन में स्थायी शांति के लिए प्रस्ताव कर अंतर्निहित सीमाओं को देखते हुए उसने इससे दूर रहने का फैसला किया है। उन्होंने कहा भारत प्रस्ताव के मकसद को समझता है। इसके साथ ही यूक्रेन में स्थाई शांति के लिए प्रस्ताव कर अंतर्निहित सीमाओं को देखते हुए उसने इससे दूर रहने का फैसला किया है। कंबोज ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक बयान का जिक्र भी किया है।
उन्होंने कहा हमने लगातार यही बात कही है कि इंसानों की जिंदगी की कीमत पर कभी किसी समस्या का हल तलाशा नहीं जा सकता है। इस सिलसिले में पीएम मोदी का वह बयान काफी महत्वपूर्ण हो जाता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि यह युद्ध का दौर नहीं है। दुश्मनी और हिंसा किसी के भी हित में नहीं होती है। रूचिरा कंबोज ने इस दौरान कुछ सवाल भी किए। उन्होंने महासभा से पूछा क्या हम कभी ऐसा समाधान तलाश पाएंगे जो दोनों पक्षों को मंजूर हो? क्या कोई ऐसी प्रक्रिया है जिसमें दोनों पक्षों को शामिल किए बिना भी विश्वसनीय और अर्थपूर्ण समाधान तलाशा जा सके? क्या यूएन का कोई ऐसा तंत्र और खासतौर पर इसका महत्वपूर्ण अंग सुरक्षा परिषद, जो सन् 1945 के विश्व निर्माण पर आधारित है, जिसे दुनिया की शांति और सुरक्षा के लिए उस समय की चुनौतियों का हल तलाशने के लिए अप्रभावी नहीं बनाया गया है?