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2021 में चीन इस रणनीति से सुधारेगा अपनी छवि, कोरोना की वैक्सीन बनाने की दौड़ में निकला सबसे आगे

Kunti Dhruw
7 Nov 2020 2:03 PM GMT
2021 में चीन इस रणनीति से सुधारेगा अपनी छवि, कोरोना की वैक्सीन बनाने की दौड़ में निकला सबसे आगे
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2021 में चीन इस रणनीति से सुधारेगा अपनी छवि, कोरोना की वैक्सीन बनाने की दौड़ में निकला सबसे आगे 

कोरोना वैक्सीन का दुनिया को इंतजार है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क : कोरोना वैक्सीन का दुनिया को इंतजार है और अब एक रिपोर्ट के मुताबिक ये वैक्सीन मुहैया कराने के प्रयासों में चीन बाकी सभी देशों से आगे निकल गया है। पश्चिमी जानकारों के मुताबिक अगर चीन की ये कोशिश अंतिम रूप से सफल हो जाती है, तो दुनिया में अपनी छवि सुधारने की उसकी कोशिश को भी बड़ा बल मिलेगा। पिछले साल लगभग इन्हीं दिनों चीन के वुहान में कोरोना वायरस सामने आया था।

शुरुआती दिनों में इसके प्रसार पर पर्दा डालने और इस बारे में सही वक्त पर दुनिया को जानकारी देने में चीन नाकाम रहा। इसके लिए उसे कड़ी आलोचनाएं झेलनी पड़ीं। लेकिन आमतौर पर चीन आलोचक अमेरिकी पत्रिका फॉरेन अफेयर्स का अब कहना है कि 2021 में चीन वैक्सीन कूटनीति के जरिए अपनी छवि सुधारने में कामयाब हो सकता है।

कोरोना वायरस से अब तक दुनिया में लगभग पांच करोड़ लोग संक्रमित हो चुके हैं। 12 लाख से ज्यादा लोग इसकी भेंट चढ़ चुके हैं। फिलहाल, उपलब्ध जानकारियों के मुताबिक दुनियाभर में अभी कोविड-19 की वैक्सीन बनाने के 11 प्रयोग तीसरे चरण के परीक्षण से गुजर रहे हैं। इनमें सबसे अधिक संभावनापूर्ण वुहान स्थित कंपनी साइनोफार्म का प्रयोग है।

संयुक्त अरब अमीरात में स्वास्थ्य सेवा में लगे कर्मियों को इस वैक्सीन को लगाने की शुरुआत हो चुकी है। चीन के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के जैव-सुरक्षा अधिकारियों के मुताबिक इस टीके को इसी महीने, या अधिक से अधिक दिसंबर में पूरी मंजूरी मिल जाएगी।

अमेरिकी कंपनियों मॉडेरना और फाइजर के टीकों को भी लगभग उसी समय तक मंजूरी मिलने की संभावना है। लेकिन बात जब वितरण की आएगी, तो वहां चीन का मुकाबला करने की अमेरिका की कोई तैयारी नहीं है। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की 'अमेरिका फर्स्ट' नीति का इस पर असर पड़ेगा। ट्रंप प्रशासन ने विकासशील देशों को अमेरिकी वैक्सीन पहुंचाने की कोई इच्छा नहीं जताई है।

अमेरिका पहले ही विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की विकासशील देशों में दो अरब लोगों को वैक्सीन मुहैया कराने की पहल से खुद को अलग कर चुका है। जबकि चीन ने इस काम के लिए डब्लूएचओ को वित्तीय सहायता दी है।

जानकारों के मुताबिक वैक्सीन तैयार करने में चीन अगर सफल रहा, तो उसकी कंपनियां अमेरिका, यूरोपीय देशों या जापान में उसके वितरण में शायद ही कोई रुचि लेंगी। इसकी एक वजह यह भी है कि इन विकसित देशों में मंजूरी की प्रक्रिया काफी सख्त है। फिर कोरोना महामारी के बाद बनी नई स्थितियों में विकसित देश मेडिकल सप्लाई मंगाने के में चीन पर अपनी निर्भरता घटाने की नीति पर चल रहे हैं।

इसके अलावा उन देशों के लोग टीके के लिए महंगी कीमत चुकाने की हैसियत रखते हैं। एक अनुमान के मताबिक मोडेरना कंपनी का टीका 64 से 74 डॉलर के बीच बैठेगा, जो पश्चिमी देशों के लोगों के लिए बड़ी कीमत नहीं है। मगर विकासशील देशों के ज्यादातर लोग इतना आर्थिक बोझ नहीं उठा सकते।

इसलिए चीन एशिया, अफ्रीका, मध्य पूर्व, और लैटिन अमेरिका के देशों में अपने वैक्सीन के वितरण को तरजीह देगा। चीनी कंपनियों की वैक्सीन का फिलहाल 18 देशों में तीसरे चरण का परीक्षण चल रहा है। चीनी मीडिया के मुताबिक आरंभिक दौर में चीनी सरकार अपनी कंपनियों को भारी सब्सिडी देगी, ताकि वे विकासशील देशों को सत्ता टीका मुहैया करा सकें।

गौरतलब है कि पिछले मई में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा था कि चीन का टीका दुनिया की भलाई के लिए होगा। उन्होंने लैटिन अमेरिकी और कैबियाई देशों को एक अरब डॉलर का कर्ज देने का एलान किया था, ताकि वो देश अपने लोगों को टीका लगवा सकें। अमेरिका और पश्चिमी देश फिलहाल अपनी समस्याओं में इस तरह उलझे हुए हैं कि वे ऐसी कोई पहल करते नहीं दिखते। परिणाम यह है कि चीन को सॉफ्ट डिप्लोमेसी के जरिए अपना प्रभाव बढ़ाने का खुला मैदान मिल गया है।

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