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जिससे कि बच्चों में स्लीप एप्निया जैसी बीमारी पनपती है। इस अध्ययन के लिए एनआइएच और एनएचएलबीआइ का भी सहयोग मिला।
बच्चों को सोने में यदि दिक्कत हो तो सतर्क होने की जरूरत है। इसके कारण को लेकर कोई सामान्य या पारंपरिक अंदाजा लगाने के बजाय डाक्टरी सलाह लें। दरअसल, कुछेक ऐसे भी कारण सामने आ रहे हैं, जिसके बारे में पहले से कोई जानकारी है। इसी संदर्भ में बच्चों में नींद संबंधी विकार- आब्सट्रक्टिव स्लीप एप्निया (ओएसए) को लेकर एक अहम बात सामने आई है। चिल्ड्रेंस नेशनल हास्पिटल के शोधकर्ताओं ने पहली बार सांस नली के निचले हिस्से में संक्रमण (एलआरटीआइ) और ओएसए के बीच संबंध होने का पता लगाया है। यह शोध निष्कर्ष स्लीप जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
बता दें कि ओएसए में नींद के दौरान सांस लेने में बार-बार रुकावट होती है। पहले इसके लिए बड़े लोगों में अधिक वजन, ऊपरी श्वसन नाल का छोटा होना, जीभ का बड़ा आकार और टांसिल को प्रमुख कारण माना जाता रहा है। वैसे बच्चों में एलआरटीआइ के लिए जन्म से ही कई अन्य कारण भी मौजूद होते हैं। लेकिन एलआरटीआइ और ओएसए के बीच संबंध होने की बात अब तक सामने नहीं आई थी। चिल्ड्रेंस नेशनल हास्पिटल में स्लीप मेडिसीन के निदेशक गुस्ताव नीनो ने बताया कि यह निष्कर्ष बताता है कि रेस्पिरेटरी साइनिटिकल वायरस (आरएसवी) बच्चों में ओएसए के कारक एलआरटीआइ पैथोफिजियोलाजी में योगदान करता है।
अध्ययन से यह बात भी सामने आई है कि जिन बच्चों को शैशवकाल में गंभीर आरएसवी ब्रांकियोलाइटिस की शिकायत होती है, उनमें पहले पांच वर्ष के दौरान अन्य जोखिमों के दीगर ओएसए होने का खतरा दोगुना ज्यादा होता है। डाक्टर नीनो बताते हैं कि आरएसवी एलआरटीआइ का बच्चों में होने वाले ओएसए के पैथोफिजियोलाजी में योगदान इस मायने में चिंताजनक है कि प्रारंभिक रोकथाम की रणनीति एलआरटीआइ और ओएसए के बीच संबंधों को स्थापित करने में बाधक बनता है। इससे सही स्थिति का पता लगाना कठिन होता है।
यदि बच्चों में ओएसए समस्या की प्राथमिक चरण में ही रोकथाम हो जाए तो उसे आगे गंभीर होने से बचाया जा सकता है और स्वास्थ्य संबंधी कई अन्य समस्याओं से भी सुरक्षा मिल सकती है। इस नए निष्कर्ष से इस बात की भी संभावना बनती है कि ओएसए की रोकथाम की अग्रिम रणनीति विकसित की जा सकती है। उन्होंने बताया कि हमारा अध्ययन ओएसए के शुरुआती रोगजनन की जांच का एक नायाब नमूना होगा।
नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हेल्थ के अधीन कार्यरत नेशनल हार्ट, लंग एंड ब्लड इंस्टीट्यूट (एनएचएलबीआइ) की निदेशक मारिष्का ब्राउन भी इस बात से सहमत हैं। उनका कहना है कि इस अध्ययन का निष्कर्ष यह बताता है कि सांस नली के निचले हिस्से में वायरल संक्रमण बाद में बच्चों में नींद विकार होने का जोखिम पैदा करता है। लेकिन यह पता करने के लिए और शोध की जरूरत है कि ये संक्रमण किस प्रकार से एयरवे के कामकाज को प्रभावित करते हैं, जिससे कि बच्चों में स्लीप एप्निया जैसी बीमारी पनपती है। इस अध्ययन के लिए एनआइएच और एनएचएलबीआइ का भी सहयोग मिला।
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