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वही इन चट्टानों यानी ऐस्टरॉइड्स में तब्दील हो गए। यही वजह है कि इनका आकार भी ग्रहों की तरह गोल नहीं होता। कोई भी दो ऐस्टरॉइड एक जैसे नहीं होते हैं।
वॉशिंगटन: लाल ग्रह मंगल को लेकर वैज्ञानिकों ने एक ताजा शोध में बड़ा खुलासा किया है। वैज्ञानिकों ने मंगल ग्रह के गड्ढों का अध्ययन करके पता लगाया है कि करीब 60 करोड़ साल तक लगातार मंगल ग्रह पर ऐस्टरॉइड की बारिश होती रही थी। ऑस्ट्रेलिया के कर्टिन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की ओर से किए गए अध्ययन में इससे पहले के अध्ययन को चुनौती दी गई है। दरअसल, गड्ढों के जरिए यह पता लगाया जाता है कि एक ग्रह कितना पुराना है और आसमानी चट्टानों ने कितना जल्दी उसे निशाना बनाया है।
किसी ग्रह पर जितने ज्यादा गड्ढे होंगे, वह ग्रह उतना ज्यादा पुराना होगा। शोधकर्ता डॉक्टर लगैन ने 521 गड्ढों का अध्ययन करके यह निष्कर्ष निकाला है। ये सभी गड्ढे 20 किमी के दायरे में थे। विशेषज्ञों ने अपने अध्ययन में पाया कि कुल 521 में से केवल 49 ही 60 करोड़ साल पुराने थे। यही नहीं ये आसमानी पत्थर लगातार मंगल ग्रह पर गिरते रहे। शोधकर्ता ने कहा कि गड्ढों की पहचान करने वाले एल्गोरिद्म से पत्थर गिरने के बाद बने गड्ढे के आकार, समय और उनकी संख्या का पता लगाया जा सकता है।
चंद्रमा पर बने गड्ढों के निर्माण की तिथि का चल सकेगा पता
वैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि मंगल ग्रह पर ऐस्टरॉइड जमीन पर टकराने से पहले कई हिस्सों में बंट गए थे। इससे ऐस्टरॉइड के कई जगह टकराने का भ्रम पैदा हुआ। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस तकनीक का इस्तेमाल करके चंद्रमा पर बने हजारों गड्ढों के निर्माण की तिथि का पता चल सकेगा और चंद्रमा के विकास का अंदाजा लगाया जा सकेगा। शोध के सह लेखक ग्रेटचेन बेनेडिक्स ने कहा कि यह हमें कैसे भविष्य में धरती का संरक्षण करना है। इससे धरती पर आग लगने का भी पता लगाया जा सकेगा।
क्या होते हैं Asteroids?
ऐस्टरॉइड्स वे चट्टानें होती हैं जो किसी ग्रह की तरह ही सूरज के चक्कर काटती हैं लेकिन ये आकार में ग्रहों से काफी छोटी होती हैं। हमारे सोलर सिस्टम में ज्यादातर ऐस्टरॉइड्स मंगल ग्रह और बृहस्पति यानी मार्स और जूपिटर की कक्षा में ऐस्टरॉइड बेल्ट में पाए जाते हैं। इसके अलावा भी ये दूसरे ग्रहों की कक्षा में घूमते रहते हैं और ग्रह के साथ ही सूरज का चक्कर काटते हैं। करीब 4.5 अरब साल पहले जब हमारा सोलर सिस्टम बना था, तब गैस और धूल के ऐसे बादल जो किसी ग्रह का आकार नहीं ले पाए और पीछे छूट गए, वही इन चट्टानों यानी ऐस्टरॉइड्स में तब्दील हो गए। यही वजह है कि इनका आकार भी ग्रहों की तरह गोल नहीं होता। कोई भी दो ऐस्टरॉइड एक जैसे नहीं होते हैं।
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