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चीन की धमकियों का ताइवान पर कैसा हुआ असर? 'ग्राउंड जीरो' से समझें हालात

Neha Dani
2 Sep 2022 1:52 AM GMT
चीन की धमकियों का ताइवान पर कैसा हुआ असर? ग्राउंड जीरो से समझें हालात
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हर घर तिरंगा का एक पोस्टर इस रेस्टोरेन्ट के बाहर भी लगा है.

नमस्कार! मैं हूं विशाल पाण्डेय, आज मैं आपको ताइवान यात्रा से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण अनुभव साझा करने जा रहा हूं. जब चीन और ताइवान के बीच विवाद चल रहा है, तो इस बीच आपको ताइवान के बारे में वो सब कुछ जानना चाहिए, जो सवाल आपके मन में हों. इसलिए मैं आपको ताइवान ग्राउंड जीरो से आंखों देखी स्थिति से रूबरू कराने जा रहा हूं. इस वक्त ताइपे इंटरनेशनल एयरपोर्ट से बैंकॉक की मेरी फ़्लाइट उड़ान भर चुकी है और मैं On Board यह आंखों देखी रिपोर्ट आपके लिए लिख रहा हूं.


चीन और ताइवान के बीच विवाद तब और बढ़ गया जब अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की स्पीकर नैंसी पेलोसी अचानक से ताइपे पहुंच गईं. ताइपे, ताइवान की राजधानी है. नैंसी पेलोसी के दौरे के बाद चीन ने ताइवान स्ट्रेट में बहुत ज्यादा आक्रामक मिलिट्री ड्रिल शुरू कर दी. ताइवान के ऊपर से मिसाइलें छोड़कर चीन युद्धाभ्यास करने लगा. भारतीय मीडिया के लिए यह बड़ी खबर थी क्योंकि एक तरफ रूस-यूक्रेन का युद्ध अभी खत्म भी नहीं हुआ है कि चीन और ताइवान युद्ध के मुहाने पर आकर खड़े हो गए हैं.

Zee News के संपादक रजनीश सर ने कहा कि ताइवान जाने की तुरंत तैयारी करनी चाहिए और वीजा लेना चाहिए. इसके बाद एक रिपोर्टर होने के नाते हमने भी ताइवान जाने की कोशिशें शुरू कर दीं. ताइवान का भारत के साथ सीधे डिप्लोमैटिक रिश्ता नहीं है, क्योंकि अभी तक संयुक्त राष्ट्र ने ताइवान को एक देश के रूप में मान्यता नहीं दी है. ताइवान के साथ भारत के सिर्फ व्यापारिक और सांस्कृतिक रिश्ते ही हैं. इसी वजह से नई दिल्ली में ताइवान का एक आर्थिक और सांस्कृतिक केन्द्र है, जो कि ताइवान का वीज़ा भी जारी करने का काम करता है. मैंने अपना और अपने कैमरामैन एस जयदीप का पासपोर्ट और संबंधित कागज वीजा के लिए जमा कर दिए. कई दिनों बाद ताइवान ने हमें यह वीज़ा जारी किया और हमने अपने ताइवान यात्रा की तैयारियां शुरू कर दी.

18 अगस्त को नई दिल्ली से ताइपे के लिए हम रवाना हुए. आपको बात दें कि ताइवान में कोविड के नियम बेहद सख्त हैं और इन नियमों का पालन हर किसी को करना पड़ता है. नई दिल्ली से फ्लाइट लेने से पहले ही हमें Quarantine के लिए होटल बुक करना था, क्योंकि ताइवान में विदेशी नागरिकों को 4 दिन का Quarantine अनिवार्य है. यह Quarantine शुरुआती 4 दिनों के लिए होता है लेकिन अगले 4 दिन भी आपको सेल्फ Quarantine में रहना होता है. हालांकि शुरुआती 4 दिन बाद आप होटल से बाहर निकल सकते हैं, लेकिन रात 10 बजे तक दोबारा होटल वापस आना होता है. यही नहीं 4 दिन बाद आप जब होटल से निकलेंगे तो आपको अपना कोविड टेस्ट भी कराके दिखाना होगा.

खैर, ताइपे इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर पहुंचने से पहले हमने शहर में एक होटल बुक कर लिया. ताइपे एयरपोर्ट पर फ्लाइट से निकलते ही हमारा Temperature चेक किया गया और फिर हमें Local Sim Card खरीदने की लाइन में लगने को कह दिया गया. यहां पर आपको बता दें कि Local Sim Card खरीदना हर विदेशी नागरिक के लिए अनिवार्य है. हमने जैसे ही Sim Card खरीदा, ताइवान के एयरपोर्ट अधिकारियों ने सिम कार्ड को हमारे फोन में Install किया और फिर एक ऑनलाइन Form भरा. यह कोविड और Quarantine से संबंधित Form था. इस फॉर्म में हमारे Quarantine होटल का नाम, पता, लोकल मोबाइल नंबर और पासपोर्ट नंबर की डिटेल भरनी होती है. ताइवान का स्वास्थ्य विभाग Local Sim Card का इस्तेमाल हमारी लोकेशन को ट्रेस करने के लिए करता है कि कहीं हम उनके Covid या Quarantine नियमों का उल्लंघन तो नहीं कर रहे हैं. इस प्रक्रिया को पूरा करने के बाद हम एयरपोर्ट पर Covid Centre पर पहुंचे, जहां हमें 2-2 Antigen Rapid Test की किट दी गई और RT-PCR टेस्ट करने की 1-1 किट.



इस प्रक्रिया के बाद हमने अपना इमीग्रेशन पूरा किया और एयरपोर्ट के बाहर निकले. ताइपे एयरपोर्ट के बाहर निकलते वक्त एक लाइन बनी हुई थी, जिसमें लगकर हमें अपना RT-PCR का सैंपल देना पड़ा. इस जगह पर हमें एक फॉर्म भी भरना पड़ा, जिसमें अपनी पूरी जानकारी लिखनी पड़ी. इस सैंपल के बाद हमारे कंधों पर Quarantine का स्टिकर चिपका दिया गया. हम जब एयरपोर्ट के बाहर टैक्सी स्टैंड पर पहुंचे तो विदेशी नागरिकों के लिए अलग टैक्सी स्टैंड बना हुआ था, जो कि Quarantine होने वाले लोगों के लिए ही था. एयरपोर्ट के अधिकारियों ने हमें पीली टैक्सी में बिठाया और ये टैक्सी सीधे Quarantine होटल पर ही जाकर रूकी. ताइपे के Royal Season होटल में मैं और मेरे कैमरामैन एस जयदीप 22 अगस्त की सुबह तक यानि कुल 4 रात और 3 दिन Quarantine में रहे. इस दौरान हम अपने कमरे से बाहर नहीं निकल सकते थे. रोज सुबह और शाम हम दोनों को अपना Body Temperature होटल को भेजना होता था. होटल इसके लिए Line App का सहारा लेता था. 4 दिनों तक मैं अपने कमरे की खिड़की के पास खड़े होकर LIVE रिपोर्टिंग करता रहा और यहीं से ताइवान की जानकारियां आप सभी तक साझा करता रहा.

22 अगस्त की सुबह हमारे लिए बहुत उत्सुकता भरी थी क्योंकि इस दिन हम Quarantine से बाहर निकले और ताइवान-चीन विवाद पर हमें पहली ग्राउंड रिपोर्ट करने का मौका मिला. ताइवान में एक सबसे बड़ी चुनौती भाषा की है, यहां पर अधिकतर लोग चायनीज बोलते हैं और अंग्रेज़ी में बात करना उनके लिए बेहद मुश्किल होता है. संयोग से होटल ने हमारे लिए जो टैक्सी बुक की थी, उस चालक को English आती थी. इनका नाम Mr. Lionel Lee था, जो कि ताइवान की सरकार से मान्यता प्राप्त टूर गाइड भी थे.

22 अगस्त की सुबह जब हम होटल से बाहर निकले तो देखा कि ताइवान के लोगों पर चीन की धमकियों का कोई असर नहीं है. ताइवान में जनजीवन पूरी तरह से सामान्य दिख रहा था. ताइवान के लोग अपने काम में व्यस्त थे और ऐसा लग रहा था कि उन्हें चीन की ड्रिल या धमकियों से कोई फर्क नहीं पड़ता है. मुझे लगा कि शायद यह ताइवान के लोगों का आत्मविश्वास हो, क्योंकि वो पिछले 70 सालों से चीन की धमकियों को सुनते आ रहे हैं. इसी बीच मैंने अपने ड्राइवर Lee से पूछा कि आप चीन-ताइवान विवाद पर क्या सोचते हैं ? Lee ने कहा कि चीन को तो हम कई सालों से देखते रहे हैं और अब तो मेरे बाल सफेद भी हो चुके हैं. चीन सिर्फ डराना चाहता है और चीन के सामने जो डर जाता तो उसे चीन दबाना चाहता है, लेकिन अब ताइवान ना तो चीन से डर रहा है और ना ही चीन से दब रहा है. इसलिए चीन ज्यादा परेशान है और ताइवान के लोग मस्त होकर अपना काम कर रहे हैं. चालक Lee से बात करते करते हम ताइवान के राष्ट्रपति भवन के बाहर पहुंचे.

राष्ट्रपति भवन के बाहर सुरक्षा काफी कड़ी थी. इसी राष्ट्रपति भवन में ही ताइवान की राष्ट्रपति साईं इंग वेन और नैंसी पेलोसी की मुलाकात हुई थी. साईं इंग वेन विदेशी डेलीगेशन से इसी राष्ट्रपति भवन में मुलाकात करती हैं. इस जगह पर हमारी मुलाकात भारतीय छात्र सौरभ डांगर से हुई, जो कि यहां पर पढ़ाई कर रहे हैं. यहां से रिपोर्ट करने के बाद हम 'चियांग काई शेक मेमोरियल' पहुंचे. चियांग काई शेक KMP के सर्वमान्य नेता थे, जो कि CPP से हार के बाद ताइवान आ गए थे और तब से ही ताइवान पर इनका नियंत्रण रहा. जब भी कोई विदेशी डेलीगेशन ताइपे पहुंचता है तो वो इस चियांग काई शेक मेमोरियल जरूर आता है. यहां पर हमारी मुलाकात एक आम ताइवानी महिला से हुई, जो अपने पति और बच्चे के साथ मेमोरियल घूमने आई थी. मैं महिला का नाम तो सही से नहीं याद कर पा रहा हूं लेकिन उनकी बातचीत का एक एक हिस्सा मेरे दिलो दिमाग में अभी भी बैठा हुआ है. ताइवानी महिला ने कहा कि, "हम आम नागरिक हैं, हमें सिर्फ शांति चाहिए. चीन को युद्ध जैसे हालात नहीं पैदा करना चाहिए. हम अपना जीवन अच्छे से जीना चाहते हैं. युद्ध से किसी को क्या मिलता है ? रूस-यूक्रेन युद्ध में भी आम नागरिक ही सबसे ज्यादा पीड़ित हैं. हम अपने बच्चों का भविष्य बनाना चाहते हैं और ताइवान को आगे बढ़ाना चाहते हैं. हम लोकतंत्र के पक्षधर हैं." ताइवानी महिला ने हमें बताया कि, "हमें भारत से बहुत उम्मीदें हैं क्योंकि भारत का लोकतंत्र हमारे लिए एक मिसाल है. हम सिर्फ और सिर्फ शांति चाहते हैं." इनकी बातों को सुनकर मैं आगे बढ़ा और मैंने देखा कि ताइवान के नागरिक वास्तव में अपने आप में इतना व्यस्त हैं कि उन्हें चीन-ताइवान टेंशन की कोई परवाह नहीं है.

भारतीय छात्र सौरभ के साथ हम मयूर इंडियन किचन पहुंचे, जो कि ताइपे में एक भारतीय किचन की चेन है. यहां पर हमारी मुलाकात कई भारतीयों से हुई. मयूर श्रीवास्तव जो कि MIK के मालिक हैं. उन्होंने बताया कि भारतीयों को यहां कोई परेशानी नहीं है. लेकिन चीन जिस तरह से ड्रिल कर रहा है उसे देखकर डर जरूर लगता है. वहीं ताइवान में ही पीएचडी कर रहे मोहम्मद मिस्बाह ने कहा कि रूस-यूक्रेन के बीच भी ऐसी ही तनातनी थी और अचानक से युद्ध की शुरूआत हो गई. मिस्बाह ने आशंका व्यक्त की कि कहीं ताइवान और चीन के बीच भी युद्ध ना शुरू हो जाए. मिस्बाह ने कहा कि ताइवान चारों तरफ से समंदर से घिरा है अगर चीन और ताइवान के बीच युद्ध होता है तो यहाँ से भारतीयों को रेस्कयू करना आसान नहीं होगा. इसलिए भारत सरकार को पहले से ही कोई प्लान बी बनाकर रखना चाहिए, क्योंकि ताइवान में हज़ारों की संख्या में भारतीय रहते हैं. इस बातचीत के बाद हम रेस्टोरेंट से बाहर निकले और हमने देखा कि हर घर तिरंगा का एक पोस्टर इस रेस्टोरेन्ट के बाहर भी लगा है.

सोर्स: ज़ी न्यूज़

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