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चीन ने कोरोना की कहानी कैसे दबाई, सामने आ गया सच

Neha Dani
21 Dec 2020 11:09 AM GMT
चीन ने कोरोना की कहानी कैसे दबाई, सामने आ गया सच
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कोविड-19 वायरस के हालात की जांच के लिए अगले महीने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की टीम चीन जाएगी।

कोविड-19 वायरस के हालात की जांच के लिए अगले महीने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की टीम चीन जाएगी। जिस समय इस टीम के चीन दौरे की पुष्टि हुई, उसी समय अमेरिकी वेबसाइट प्रोपब्लिका.कॉम और अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने ये खुलासा किया है कि चीन में वायरस के सामने आने के बाद उसकी गंभीरता को जाहिर ना होने देने की नियोजित कोशिश वहां की सरकार ने की थी।

हालांकि इस खुलासे में कोई नई जानकारी नहीं है, लेकिन इन दोनों समाचार माध्यमों ने दावा किया है कि इस संबंध में पहली बार आधिकारिक दस्तावेज दुनिया के सामने आए हैं। उनके मुताबिक ये दस्तावेज उन चर्चाओं की पुष्टि करते हैं, जो पिछले एक साल पश्चिमी मीडिया पर छाये रहे हैं।

मसलन, यह कि जब एक नए प्रकार के वायरल अटैक की चेतावनी वुहान के डॉ. ली विनलियांग ने दी, तो उन्हें पुलिस ने धमकाया। उन पर अफवाह फैलाने के आरोप लगाए गए। ली खुद कोविड-19 के संक्रमण से मर गए। इसके बावजूद चीन के सेंसर अधिकारियों ने सच को दबाने की कोशिशें और तेज कर दीं।
एक तरफ सरकारी अधिकारियों ने असुविधाजनक सूचनाओं को प्रकाशित होने से रोकने के निर्देश जारी किए, वहीं ऐसी सूचनाएं देने वाले लोगों के खिलाफ सोशल मीडिया पर मुहिम छेड़ दी गई। वेबसाइट प्रोपब्लिका और न्यूयॉर्क टाइम्स ने दावा किया है कि इस संबंध में जो निर्देश जारी किए, उसकी कॉपियां अब उनके पास हैं।

दोनों समाचार माध्यमों ने जिन दस्तावेजों के लीक होने का दावा किया है, उनमें 3,200 से ज्यादा निर्देश, 1,800 से ज्यादा मेमो और चीन के इंटरनेट रेगुलेटर- साइबरस्पेस एडमिनेस्ट्रेशन ऑफ चाइना की अन्य फाइलें शामिल हैं। इनमें चीनी कंपनी उरुन बिग डाटा सर्विसेज के कंप्यूटर कोड और इंटरनेट फाइलें भी शामिल हैं। यही कंपनी चीन की स्थानीय सरकारों के लिए वो सॉफ्टवेयर बनाती है, जिसके जरिए इंटरनेट पर हो रही चर्चा और उसमें भाग ले रहे लोगों की निगरानी की जाती है।

दोनों समाचार माध्यमों ने कहा है कि उन्हें ये दस्तावेज हैकरों के एक समूह ने दिए हैं। इस समूह का नाम सीसीपी अनमास्क्ड (कम्युनिस्ट पार्टी और चाइना बेनकाब) है। इसके अलावा इन दोनों माध्यमों को कुछ दस्तावेज चाइना डिजिटल टाइम्स नाम की वेबसाइट से हासिल हुए हैं। ये वेबसाइट चीन में इंटरनेट को नियंत्रण करने की कोशिशों पर नजर रखती है।
चाइना डिजिटल टाइम्स के संस्थापक और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में रिसर्च वैज्ञानिक शियाओ छियांग ने प्रोपब्लिका से कहा कि चीन ने सेंसरशिप के सिस्टम को एक राजनीतिक हथियार बना रखा है। यह सिस्टम सुसंगठित और समन्वित है। इसे सरकारी संसाधनों से चलाया जाता है। इसका मकसद सिर्फ इंटरनेट से किसी चीज को डिलीट करना नहीं है। बल्कि यह व्यापक रूप से लक्ष्य केंद्रित नैरेटिव तैयार का एक शक्तिशाली उपकरण है। शियाओ ने कहा कि यह एक विशाल तंत्र है और ऐसा तंत्र किसी और देश के पास नहीं है।

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2014 में साइबरस्पेस एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ चाइना डिपार्टमेंट की स्थापना की थी। आरोप है कि इस विभाग का मकसद इंटरनेट सेंसरशिप और प्रचार अभियानों के प्रबंधन को केंद्रीकृत रूप देना है। साथ ही यही विभाग डिजिटल नीति के दूसरे पहलुओं को नियंत्रित करता है। ये विभाग सीधे चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की सेंट्रल कमेटी को रिपोर्ट करता है। जानकारों के मुताबिक इसी से इसकी अहमियत जाहिर हो जाती है।

सामने आए दस्तावेजों के मुताबिक इस विभाग के जरिए चीन में कोरोनावायरस संबंधी नियंत्रण की कोशिशें इस साल जनवरी के पहले हफ्ते में शुरू हुईं। तब सभी समाचार वेबसाइटों को निर्देश जारी किया गया कि वे केवल वही सूचनाएं प्रकाशित करें, जो सरकार जारी करेगी। साथ ही कोविड-19 की तुलना सार्स महामारी से ना की जाए। जबकि डब्ल्यूएचओ ने शुरुआत में ही कह दिया था कि इन दोनों संक्रमणों में काफी समानता है।
अब जबकि ये दस्तावेज सामने आ गए हैं, पश्चिमी मीडिया में चीन के खिलाफ प्रचार और तेज होने की संभावना है। साथ ही इससे डब्ल्यूएचओ की टीम का काम मुश्किल हो सकता है, क्योंकि अब उसे इन दस्तावेजों की प्रामाणिकता और इनसे सामने आई कहानियों की सच्चाई की भी जांच करनी पड़ सकती है।


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