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बीजिंग, (आईएएनएस)। 2007 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2 अक्टूबर को यानी महात्मा मोहनदास करमचन्द गांधी के जन्मदिन को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में नामित करने का प्रस्ताव पारित किया। इस दिवस का उद्देश्य सभी देशों से किसी भी प्रकार की हिंसा का विरोध करने का आग्रह करना है।
महात्मा गांधी ने जि़न्दगी भर भारत को स्वतंत्रता की ओर अग्रसर किया और दुनिया भर में नागरिक अधिकारों और सामाजिक परिवर्तन के लिए अहिंसक आंदोलनों को प्रेरित किया। उत्पीड़न और कठिनाइयों का सामना करते हुए भी वे हमेशा अपने अहिंसक विश्वास के साथ खड़े रहे थे।
इस महान व्यक्ति ने जिस शांतिपूर्ण संघर्ष में भाग लिया, उसने दुनिया भर का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने अहिंसा को दैनिक जीवन और राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में एकीकृत किया, अनगिनत लोगों को एक बेहतर, अधिक पूर्ण और अधिक आदर्श जीवन की तलाश करने के लिए प्रेरित किया। महात्मा गांधी की प्रतिष्ठा जाति, धर्म और राष्ट्र की सीमाओं को पार कर 21वीं सदी में देवदूत की आवाज बन गयी।
दुनिया गांधी को याद करती है, क्योंकि वे न केवल अहिंसा और सर्वोच्च मानवतावाद के अभ्यास का सक्रिय रूप से पालन करते थे, बल्कि एक ग्रह साझा करने की हमारी आशा और आकांक्षा का भी प्रतिनिधित्व करते थे।
महात्मा गांधी के अहिंसक कार्य इस सिद्धांत पर आधारित थे कि न्याय केवल साधनों से प्राप्त होता है अर्थात शांतिपूर्ण समाज को प्राप्त करने के लिए हिंसा का उपयोग अनुचित है। वे मानते थे कि भारत को उपनिवेशवाद से छुटकारा पाने, स्वतंत्रता के लिए संघर्ष में हिंसा या नफरत का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
अहिंसा को अकसर शांतिवाद के समानार्थक शब्द के रूप में देखा जाता है, लेकिन 20वीं शताब्दी के मध्य से इस शब्द को सामाजिक परिवर्तन के लिए कई आंदोलनों द्वारा अपनाया गया है। अहिंसक सिद्धांत का एक मुख्य विश्वास है कि शासकों की शक्ति लोगों की सहमति से प्राप्त होती है, इसलिए अहिंसा लोगों की सहमति और सहयोग को वापस लेकर उस शक्ति को नष्ट करने का प्रयास करती है। अहिंसक कार्यों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है: विरोध और राजी करना, असहयोग, और अहिंसक हस्तक्षेप, जैसे अवरुद्ध करना और कब्जा करना (बैठना)।
संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव बान कीमून ने जोर देकर कहा था कि अब पहले से कहीं ज्यादा, गांधी के अहिंसा के विचार को फैलाने की जरूरत है। आज दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में असहिष्णुता बढ़ रही है, विभिन्न संस्कृतियों के बीच संबंध अधिक से अधिक तनावपूर्ण होते जा रहे हैं, हिंसा की जागरूकता बढ़ रही है, और संयम की शक्ति कम हो रही है। ऐसे वातावरण में, सच्ची सहिष्णुता और अहिंसा का प्रचार करना ठीक समय पर है। अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस दुनिया के ध्यान और स्मरण के योग्य है।
(साभार---चाइना मीडिया ग्रुप ,पेइचिंग)

Rani Sahu
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