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हिंदी पत्रकारिता दिवस 2023: 197 साल पहले शुरू हुआ था हिंदी का पहला अखबार
Tara Tandi
30 May 2023 7:01 AM GMT

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हिंदी पत्रकारिता में 30 मई के दिन का विशेष महत्व है. इसी दिन आधुनिक भारत में हिंदी पत्रकारिता की नींव पड़ी थी. 30 मई 1926 को उदन्त मार्तण्ड नाम से पहला हिंदी भाषा का अखबार का प्रकाशित हुआ था. तब से 30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस अखबार के पहले प्रकाशक और संपादक पंडित जुगल किशोर शुक्ल थे. आज हिंदी पत्रकारिता के 197 साल पूरे हो गए हैं. बंगाल में उस समय अंग्रेजी, फारसी और बांग्ला में दूसरे अखबार प्रकाशित हो रहे थे लेकिन हिंदी में किसी अखबार का प्रकाशन नहीं हो रहा था. ऐसे समय में पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने कलकत्ता से उदन्त मार्तण्ड का प्रकाशन शुरू किया. साप्ताहिक अखबार के तौर पर इसका प्रकाशन शुरू हुआ.
आज के ही दिन 30 मई, 1826 को हिंदी भाषा के प्रथम अखबार उदन्त मार्तंड का प्रकाशन शुरू हुआ था. इसकी शुरुआत एक साप्ताहिक पत्र के रूप में की गयी थी. सप्ताह में यह मंगलवार के दिन छपता था. वैसे तो भाषा के लिहाज से देखें तो यह दिन पत्रकारिता के क्षेत्र में हिंदी भाषा की पहली उपस्थिति दर्ज करने का दिवस था. लेकिन अगर अपने समझ को विस्तृत आयाम दें, तो यह दिन अंग्रेजी शासन काल में हिंदी को क्रांति के संचार की भाषा बनाने की पहली और ऐतिहासिक पहल की शुरुआत का दिन था. उदन्त मार्तंड में खड़ी बोली और ब्रज भाषा का ज्यादा इस्तेमाल किया जाता था. इस अखबार का प्रकाशन तत्कालीन कलकत्ता शहर से किया जाता था. पंडित जुगल किशोर शुक्ल स्वयं ही इसके प्रकाशक और संपादक थे. मूल रूप से कानपुर के रहने वाले जुगल किशोर शुक्ल वकील भी थे.
यह ब्रिटिश काल का वह समय था जब तत्कालीन हिन्दुस्तान में दूर दूर तक मात्र अंग्रेजी, फ़ारसी, उर्दू एवं बांग्ला भाषा में केवल अखबार छपते थे, हिंदी भाषा का पहली बार किसी ने पत्रकारिता से परिचय कराया तो वह थे देश की राजधानी “कलकत्ता” में “कानपुर” के रहने वाले वकील पण्डित जुगल किशोर शुक्ल जी. जिन्होंनें साहस भरे क्रांतिकारी कदम उठाते हुए अंग्रेजों की नाक के नीचे हिन्दी पत्रकारिता के इतिहास की नींव रखी. हिंदी भाषा के अखबार उदन्त मार्तण्ड के पहले अंक की 500 प्रतियां छापी गयी थीं, वैसे प्रारंभ में इस अखबार को ज्यादा पाठक नहीं मिले थे. ऐसा कलकत्ता में हिंदी अखबार के पाठक न के बराबर होने के कारण था. इसलिए इसे डाक से अन्य राज्यों जहाँ हिंदी के ज्यादा पाठक थे, वहां भेजना होता था.
हिंदी भाषा के अखबार उदन्त मार्तण्ड के पहले अंक की 500 प्रतियां छापी गयी थीं, वैसे प्रारंभ में इस अखबार को ज्यादा पाठक नहीं मिले थे. ऐसा कलकत्ता में हिंदी अखबार के पाठक न के बराबर होने के कारण था. इसलिए इसे डाक से अन्य राज्यों जहाँ हिंदी के ज्यादा पाठक थे, वहां भेजना होता था. अखबार के डाक से भेजने के कारण खर्च भी काफी आ जा रहे थे, इसके समाधान के लिए उस समय के ब्रिटिश से डाक के लागत को कम करने का भी अनुरोध किया गया. लेकिन उस समय की औपनिवेशिक सत्ता ब्रिटिशों ने इस अनुरोध को स्वीकार नहीं किया. जिसके कारण बाद में यह अखबार आर्थिक तंगी का शिकार हो गया और दिसंबर 1827 तक इसकी छपाई को बंद करना पड़ा.
इस अखाबर की वजह से हिंदी भाषा की पहचान पत्रकारिता के भाषा के रूप में बनीं, साथ ही यह अखबार तत्कालीन औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ प्रखर आवाज बनकर सामने आयी. पत्रकारिता की शुरुआत इस अखबार के प्रकाशन के 46 वर्ष पूर्व ही हो चुकी थी, जब 1780 में जेम्स अगस्टस हिकी ने कलकत्ता जनरल एडवाइजर नाम से एक अंग्रेजी अखबार का प्रकाशन शुरू किया. यह भारत का पहला अखबार था, जिसके 4 दशक बाद 30 मई के दिन हिंदी भाषा का पहला अखबार उदन्त मार्तंड अस्तित्व में आया. इसी वजह से इस दिन को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है.
46 साल के इंतजार के बाद आया था हिंदी अखबार
हिंदी अखबार उदन्त मार्तण्ड के प्रकाशित होने से 46 साल पहले सन 1780 में एक अंग्रेजी अखबार छपना शुरू हुआ था। 29 जनवरी 1780 में एक आयरिश नागरिक जेम्स आगस्टस हिकी कलकत्ता शहर से ही ‘कलकत्ता जनरल एडवर्टाइजर’ नाम से एक अंग्रेजी अखबार का प्रकाशन शुरू किया था। यह भारतीय उपमहाद्वीप का पहला अखबार था। इसके प्रकाशन के साढ़े चार दशक बाद उदन्त मार्तण्ड नाम से पहला हिंदी अखबार प्रकाशित हुआ था। इन बीच अन्य भारतीय भाषाओं के अखबारों का प्रकाशन शुरू हो चुका था।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद की पत्रकारिता
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद तीव्र गति से हिन्दी पत्रकारिता ने प्रगति की, भारत के समाचार पत्र पंजीयक के अनुसार भारत में सर्वाधिक समाचार पत्र हिन्दी भाषा में प्रकाशित हो रहे हैं । दूसरे स्थान पर अंग्रेजी भाषा के पत्र हैं। आजादी के बाद समाचार पत्रों की रीति एवं प्रकाशन में काफी परिवर्तन आया है। ‘‘ब्लैक एण्ड व्हाइट’’ प्रिंटिंग से मुद्रण तकनीक बहुरंगीय प्रिंटिंग में बदल गई। समाचार संकलन एवं संपादन के तरीकों में भी काफी परिवर्तन आया है। क्षेत्रीय और स्थानीय पत्रिका को समाचार पत्रों में अच्छा स्थान मिलने लगे। समाचार पत्रों के प्रकाशन में बहुसंस्करण पद्धति का प्रचलन काफी तीव्र गति से फैला। फैक्स, मॉडम तथा इंटरनेट ने पत्रकारिता के व्यवसाय को काफी गति प्रदान की। समाचार पत्र-पत्रिकाओं में संपादक की जगह प्रबंधक का हस्तक्षेप बढ़ता गया। संपादकीय सामग्री (कंटेन्ट) में भी कई तरीके के बदलाव आए।
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ऐसे हुई हिंदी के पहले अखबार की शुरुआत
पंडित जुगल किशोर शुक्ल मूल रूप से कानपुर के रहने वाले थे और वे कई भाषाओं के ज्ञाता थे. वे हिंदी के साथ-साथ संस्कृत, अंग्रेजी, फारसी और बांग्ला भाषा के भी जानकार थे. वे कानपुर की सदर दीवानी अदालत में प्रोसीडिंग रीडर के रूप में काम करते थे और वे वकील बन गए. इसके बाद उन्होंने उदन्त मार्तण्ड के प्रयास शुरू किए और अंततः उन्हें 19 फरवरी 1926 को गवर्नर जनरल से अखबार शुरू करने की अनुमति मिल गई.
आर्थिक तंगी का करना पड़ा सामना
उदन्त मार्तण्ड अखबार को 500 कॉपियों के साथ शुरू किया गया. बंगाल में हिंदी भाषा के जानकार कम होने के कारण इसे पर्याप्त पाठक नहीं मिल पाए. बंगाल से हिंदी भाषी राज्यों में अखबार को डाक से भेजने का खर्चा ज्यादा आता था. इसलिए पंडित जुगल किशोर शुक्ल से सरकार से डाक की दरों में कुछ छूट मांगी लेकिन तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने उनकी बात को नहीं माना.
79 अंक प्रकाशित होने के बाद करना पड़ा बंद
इससे अखबार चलाने में आर्थिक कठनाई आने लगी. हर मंगलवार को यह अखबार पुस्तक के प्रारूप में प्रकाशित होता था और 79 अंक प्रकाशित होने के बाद आखिरकार 4 दिसंबर 1827 को उदन्त मार्तण्ड बंद हो गया.
दो शताब्दी पूरे करने की ओर हिंदी पत्रकारिता
आपातकाल और अघोषित आपातकाल भी भारतीय प्रेस ने और हिन्दी पत्रकारिता ने देखे। तमाम बाधाओं, प्रतिबंध और प्रतिकूल परिस्थितियों के बाद भी भारतीय पत्रकारिता ने अपनी विकास यात्रा तय की। आने वाले वर्ष 2026 में हिन्दी पत्रकारिता 200 वर्षो की हो जाएगी। भारतीय लोकतंत्र के संरक्षण और संवर्धन में पत्रकारिता, प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक का महत्वपूर्ण योगदान है ।
हिंदी पत्रकारिता की झारखंड राज्य के निर्माण में भूमिका
भारत को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराने में हिंदीपत्रकारिता की अहम भूमिका थी. उसी तरह बिहार से अलग होकर 15 नवंबर 2000 को अस्तित्वमें आये झारखंड राज्य के गठन में भी हिंदी पत्रकारिता की अहम भूमिका रही. आबुआ राजकी मांग 20वीं सदी की शुरुआत से ही होने लगी थी. लेकिन, मीडिया में इस मांग को कभी जगह नहीं मिली. झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार अनुज कुमार सिन्हा बताते हैं कि वर्ष 1912 में पहलीबार मिशनरी की पत्रिका ‘घर बंधु’ में झारखंड के निर्माण की मांग करने वालों की खबरप्रकाशित हुई. उस वक्त साइमन कमीशन की टीम इस इलाके के दौरे पर थी. ‘छोटानागपुरउन्नति समाज’ अलग राज्य की मांग से संबंधित ज्ञापन सौंपा था. पहली बार इसकी खबर ‘घरबंधु’ में छपी.

Tara Tandi
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