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आकाशगंगाओं के बीच होता है 'छिपा हुआ ब्रिज', वैज्ञानिकों ने बताई ये बात

Gulabi
26 May 2021 11:18 AM GMT
आकाशगंगाओं के बीच होता है छिपा हुआ ब्रिज, वैज्ञानिकों ने बताई ये बात
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ब्रह्मांड को जोड़ने और बनाने में 80 फीसदी डार्क मैटर का उपयोग हुआ है

ब्रह्मांड को जोड़ने और बनाने में 80 फीसदी डार्क मैटर का उपयोग हुआ है. ये ऐसा रहस्यमयी पदार्थ है जिसकी स्टडी वैज्ञानिक पिछले कई दशकों से कर रहे हैं. इसी का नक्शा बनाते समय कुछ वैज्ञानिकों को ऐसी जानकारी मिली जो वाकई अचंभित कर देने वाली है.

पेंसिलवेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी (Pennsylvania State University) के वैज्ञानिकों ने बताया कि आकाशगंगाओं के बीच जो रहस्यमयी और छिपे हुए ब्रिज देखने को मिले हैं, वो फिलामेंट्री हैं. यानी ये किसी मकड़ी के जाले जैसे दिखते हैं. इस ब्रिज और डार्क मैटर की वजह से ही ब्रह्मांडीय जाल (Cosmic Web) बना है. इसका मतलब ये है कि हमारी आकाशगंगा और किसी दूसरी आकाशगंगा के बीच भी ऐसा एक ब्रिज हो सकता है. वैज्ञानिकों का मानना है कि यह दो आकाशगंगाओं के बीच बनने वाली गुरुत्वाकर्षण शक्ति की वजह से ब्रिज बनता है. यानी अगर आप इस ब्रिज पर आए तो आप एक गैलेक्सी से दूसरी गैलेक्सी में खींचे या वापस भेजे जा सकते हैं.पेंसिलवेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी
पेन स्टेट यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर और इस स्टडी के लेखकों में से एक डॉन्गहुई जियोंग ने बताया कि सुदूर स्थित डार्क मैटर और ऐसे ब्रिज की स्टडी आसान होती है, जबकि नजदीक वालों में जटिलता इतनी ज्यादा होती है कि उसका अध्ययन करना मुश्किल हो जाता है. डॉन्गहुई ने बताया कि स्थानी ब्रह्मांड में डार्क मैटर की गणना सीधे नहीं हो सकती. इसके लिए अलग-अलग ग्रहों समेत अंतरिक्षीय वस्तुओं पर पड़ने वाली गुरुत्वाकर्षण शक्ति का अध्ययन करना होता है. फिर उसे जोड़कर देखा जाता है कि डार्क मैटर कितना है.

डॉन्गहुई ने बताया कि जैसे-जैसे ब्रह्मांड बढ़ता गया, वैसे-वैसे इसकी जटिलता भी बढ़ती चली गई. पहले कॉस्मिक वेब या ब्रह्मांडीय जाल का नक्शा बनाने की प्रक्रिया मॉडलिंग के जरिए होती थी. जिससे हमें यूनिवर्स का एक सिमुलेशन मिलता था. लेकिन इस बार हमने नया तरीका अख्तियार किया है. हमनें मशीन लर्निंग के जरिए नया मॉडल बनाया जो ब्रह्मांड में आकाशगंगाओं के विभाजन और उनकी गति के आधार पर डार्क मैटर की खोज करता है
डॉन्गहुई जियोंग ने बताया कि हमने मॉडल को ट्रेनिंग दी कि वह आकाशगंगाओं के बड़े समूहों का सिमुलेशन बनाए. इसे हमनें इलुस्ट्रिस-TNG नाम दिया. इसमें आकाशगंगाएं, गैस, डार्क मैटर और अन्य सभी दृश्य वस्तुएं शामिल हैं. हमने मॉडल को इस तरह से बनाया कि वो हमारी आकाशगंगा मिल्की वे और उसके जैसी आकाशगंगाओं के विभाजन और गति को नाप सके. इसके बाद इस मॉडल ने जो मैप बनाकर दिखाया वो हैरान करने वाला था.
वैज्ञानिकों ने देखा कि आकाशगंगाओं और अन्य अंतरिक्षीय वस्तुओं के बीच एक छिपा हुआ ब्रिज बन रहा है. जो कि उन दोनों वस्तुओं की गुरुत्वाकर्षण शक्ति का एक गठजोड़ है. इसकी मजबूती दूरी और आकाशगंगाओं की गति पर निर्भर करती है. इस मॉडल के जरिए डॉन्गहुई और उनकी टीम ने 17 हजार आकाशगंगाओं की स्टडी की. इससे जो नक्शा बना वो शानदार था. इसमें उन लोगों को कई छिपे हुए डार्कमैटर ब्रिज दिखाई दिए.
डॉन्गहुई ने बताया कि ये बात पहले भी सामने आ चुकी है कि मिल्की-वे और एंड्रोमेडा आकाशगंगाएं एकदूसरे की ओर धीरे-धीरे आ रही हैं. लेकिन सवाल ये है कि क्या ये करोड़ों साल बाद आपस में टकरा जाएंगी. ये बात अब तक स्पष्ट नहीं हुई है. अगर हम डार्क मैटर वाले छिपे ब्रिज का अध्ययन करे तो हमें इस सवाल का जवाब मिल सकता है.
डॉन्गहुई ने बताया कि डार्क मैटर पूरे ब्रह्मांड में साम्राज्य करता है. यही यूनिवर्स को चलाता है. यही हमारी किस्मत भी तय करता है. हम अब कंप्यूटर से करोड़ों साल बाद का मैप बनाने के लिए कहेंगे. ताकि यह पता चल सके कि भविष्य में कितनी आकाशगंगाएं आपस में मिलेंगी. इनके मिलने से क्या नुकसान या फायदा होगा.
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