विश्व
पहली बार इस मुस्लिम देश में बन रहा भव्य मंदिर, भारत से गए है पत्थर, इतनी करोड़ है लागत
jantaserishta.com
28 March 2021 12:08 PM GMT
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संयुक्त अरब अमीरात के पहले पारम्परिक हिंदू मंदिर की बुनियाद का काम (फाउंडेशन वर्क) अगले महीने के अंत तक पूरा हो जाएगा. बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था (BAPS) की ओर से अबू धाबी में 45 करोड़ दिरहम (करीब 888 करोड़ रुपये) की लागत से इस मंदिर का निर्माण किया जा रहा है. अबू धाबी के अबू मुरेईखाह पर 27 एकड़ में इस मंदिर का क्षेत्र फैला है.
प्रोजेक्ट इंजीनियर के मुताबिक बुनियाद के निर्माण का काम फाइनल स्टेज में है जो ग्राउंड लेवल से 4.5 मीटर ऊपर है. इस फाउंडेशन में दो सुरंग हैं. इन सुरंगों के लिए पत्थर भारत से आए हैं. इन पत्थरों को बिछाने का काम अगले हफ्ते से शुरू हो जाएगा. फाउंडेशन का काम अप्रैल के अंत तक खत्म होने के बाद मई के महीने से तराशे हुए पत्थर असेम्बल करने का काम शुरू हो जाएगा.
मंदिर के लिए अधिकतर पत्थर तराशने का काम भारत में राजस्थान और गुजरात के संगतराशों ने किया है. हाथों से तराशे गए इन पत्थरों में भारत की समृद्ध संस्कृति और इतिहास की झलक दिखने के साथ अरब प्रतीक भी होंगे. इसमें रामायण, महाभारत समेत हिन्दू पुराणों के प्रसंगों से जुड़े चित्र होंगे. मंदिर का निर्माण प्राचीन हिंदू शिल्प शास्त्र के मुताबिक किया जा रहा है.
मंदिर में 7 शिखर होंगे. ये यूएई के 7 अमीरात का भी प्रतीक होंगे. मंदिर के लिए गुलाबी पत्थर राजस्थान से और मार्बल इटली से मंगाया गया है. मंदिर के 2023 में पूरी तरह बन कर तैयार हो जाने की उम्मीद है. BAPS हिन्दू मंदिर के धार्मिक नेता ब्रह्मविहारी स्वामी कई स्थानीय अधिकारियों के साथ मंदिर निर्माण के लिए समन्वय कर रहे हैं. मंदिर में विजिटर्स सेंटर, पूजा हाल, लाइब्रेरी, क्लासरूम, कम्युनिटी सेंटर, एम्फीथिएटर, प्ले एरिया, बागीचे, पानी के झरने, फूड कोर्ट, बुक्स और गिफ्ट्स शॉप समेत तमाम सुविधाएं होंगी.
जनवरी में संत समागम की ओर से एक वीडियो जारी किया गया था जिसमें दिखाया गया था कि किस तरह अबू धाबी के हिन्दू मंदिर के लिए भारत में पत्थरों, खम्भों को तराशने का काम किया जा रहा है. मंदिर के 2023 में पूरी तरह बन कर तैयार हो जाने की उम्मीद है. BAPS हिन्दू मंदिर के धार्मिक नेता ब्रह्मविहारी स्वामी कई स्थानीय अधिकारियों के साथ मंदिर निर्माण के लिए समन्वय कर रहे हैं.
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