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पारसी समुदाय के लोग एक दूसरे नवरोज की शुभकामनाएं देते हैं.
भारतीय समाज में जब होली मनाई जाती है, इसके ही आस-पास वसंत ऋतु में एक दिन नवरोज का उत्सव मनाया जाता है. जैसे होली भारतीय समाज में साल का आखिरी दिन है, ठीक इसी तरह पारसी समुदाय के लोग, नए साल के स्वागत के उपलक्ष्य में नवरोज मनाते हैं. इसे पारसी न्यू ईयर भी कहा जाता है. गूगल ने इसी मौके पर डूडल बनाकर पारसी न्यू ईयर की शुभकामनाएं दी हैं.
सूर्य से भी है संबंध
दरअसल, पारसी कैलेंडर और तारीख के अनुसार वसंत विषुव का दिन नवरोज का दिन कहलाता है. वसंत यानी वसंत ऋतु और विषुव के दो अर्थ हैं, एक तो विषुवत रेखा और दूसरा बीसवां दिन. ईरान यानी कि जहां से प्रचलित मान्यताओं में पारसी धर्म सामने आया वहां यह मानते हैं कि जब सूर्य की किरणें विषुवत रेखा पर चमकने लगती हैं तो नवरोज का त्योहार आता है.
कई नामों से जाना जाता है नवरोज
नवरोज एक फारसी शब्द है, जो नव और रोज से मिलकर बना है. नवरोज में नव का अर्थ होता है- नया और रोज का अर्थ होता है दिन. इसलिए नवरोज को एक नए दिन के प्रतीक के रूप में उत्सव की तरह मनाया जाता है. ईरान में नवरोज को- ऐदे नवरोज कहा जाता है. दुनिया भर में करीब 300 मिलियन से ज्यादा लोग नवरोज को उत्साह और उमंग के साथ मनाते हैं. पारसी न्यू ईयर को जमशेदी नवरोज, नवरोज, पतेती और खोरदाद साल के नाम से भी जाना जाता है. हालांकि ये त्योहार साल में दो बार मनाया जाता है. इसे 16 अगस्त और 21 मार्च को, छमाही और वार्षिक के तौर पर मनाया जाता है.
शाह जमदेश का हुआ था राजतिलक
कहा जाता है कि करीब तीन हजार साल पहले ईरान में शाह जमदेश ने सिंहासन ग्रहण किया था, उस दिन को पारसी समुदाय में नवरोज कहा गया था. आगे चलकर इस दिन को जरथुस्त्र वंशियों द्वारा नए वर्ष के पहले दिन के रूप में मनाया जाने लगा. दुनिया के प्रमुख देश जैसे ईरान, पाकिस्तान, भारत, ताजिकिस्तान, इराक, लेबनान, बहरीन में पारसी नववर्ष को नवरोज के रूप में मनाया जाता है.
अग्नि की है मान्यता
लगभग हर संप्रदाय में जिस तरह अग्नि की मान्यता है, ठीक उसी तरह पारसी समुदाय भी नवरोज के दिन अग्नि को लेकर विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं. इस दिन जरथुस्त्र की तस्वीर, मोमबत्ती, कांच, सुगंधित अगरबत्ती, शक्कर, सिक्के जैसी पवित्र चीजें एक जगह रखी जाती हैं. पारसी समुदाय में ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से परिवार में सुख-समृद्धि बढ़ती है. नवरोज के दिन परिवार के सभी लोग एकसाथ मिलकर प्रार्थना स्थलों पर जाते हैं. पवित्र अग्नि में चन्दन की लकड़ी चढ़ाने की परंपरा भी है. उपासना स्थल पर चन्दन की लकड़ी अग्नि को समर्पित करने के बाद पारसी समुदाय के लोग एक दूसरे नवरोज की शुभकामनाएं देते हैं.
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