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चिंता और समस्या का सबब बना तिब्बत में तेजी से पिघलते ग्लेशियर, एशिया की 150 करोड़ आबादी के लिए है पानी का स्रोत

Renuka Sahu
8 Jun 2022 12:53 AM GMT
Glaciers melting rapidly in Tibet become a cause of concern and problem, the source of water for 150 million population of Asia
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फाइल फोटो 

पानी के अंतिम स्रोत के तौर पर तिब्बत पर निर्भर लोगों के लिए तेजी से पिघलते ग्लेशियर चिंता और समस्या का सबब बन गए हैं।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पानी के अंतिम स्रोत के तौर पर तिब्बत पर निर्भर लोगों के लिए तेजी से पिघलते ग्लेशियर चिंता और समस्या का सबब बन गए हैं। एशिया महाद्वीप में 150 करोड़ से ज्यादा आबादी पानी के लिए इसी पर निर्भर है। एशिया की ब्रह्मपुत्र, गंगा, मीकोंक और यांग्तज जैसे बड़ी नदियां यहीं से निकलती हैं। तेजी से बढ़ती पर्यावरण संबंधी समस्या के कारण क्षेत्र को बड़ी क्षति की आशंका है।

एकीकृत पर्वतीय विकास के लिए अंतरराष्ट्रीय केंद्र (आईसीआईएमओडी) की तिब्बत प्रेस में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, अनुमान है कि कार्बन उत्सर्जन की निगरानी और इस पर नियंत्रण के तेज प्रयास नहीं किए गए तो ग्लेशियर का एक तिहाई पिघल जाएगा। इससे पर्यावरण की समस्या खड़ी हो जाएगी। इसके बाद हालात और बिगड़ते जाएंगे।
तिब्बत में रहने वाले लोग अपने अधिकारों और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ रहे हैं। तिब्बती अपना पर्यावरण बचाना चाहते हैं, लेकिन चीन के कब्जे के कारण यह संभव नहीं हो पा रहा है। तिब्बत में बड़े पैमाने पर शिकार खेला जाता है। चीनी सरकार पूरे इलाके में अवैध शिकार को प्रोत्साहित करती है।
अंधाधुंध कटाई के कारण घटा वन क्षेत्र
चीन सरकार की ओर से वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण आच्छादित क्षेत्र कम हो रहा है। इसके कारण कई इलाकों में बाढ़ जैसी समस्या भी है। कई प्राकृतिक संसाधनों का केंद्र होने के कारण तिब्बत को अत्यधिक खनन की समस्या का भी सामना करना पड़ रहा है। कारोबार बढ़ाने के नाम पर चल रही इन गतिविधियों के कारण भूमि और इसकी गुणवत्ता तो प्रभावित हुई ही है, प्राकृतिक संसाधन भी कम हो रहे हैं। उद्योगों का दूषित उत्सर्जन सीधे नदियों में छोड़ा जा रहा, जिसके कारण पर्यावरण की समस्या और बढ़ गई है।
दुनिया की छत में भी वायु और जल प्रदूषण
रेडियो फ्री एशिया में 2020 में छपी खबर में ग्यालत्सेन नामक व्यक्ति ने कहा, दुनिया की छत के रूप में तिब्बत में पर्यावरण की पूजा होती है। यहां की हवा और पानी में शायद ही कोई समस्या हो। चीन के अत्यधिक दोहन के कारण यहां की वायु और जल में भी प्रदूषण जैसी समस्या आने लगी है। जानवरों की कई प्रजातियां तो विलुप्त हो गई हैं। तिब्बती अपनी खानाबदोश जीवनशैली के लिए मशहूर रहे हैं। चीन के जबरन पुनर्वास के कारण खानाबदोशों की की संख्या भी कम हुई है। नई जीवनशैली में ढलने और जीवन-यापन के संसाधन जुटाने में उन्हें भारी समस्या का सामना करना पड़ रहा है।
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