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भूगर्भीय शोध: पृथ्वी पर करोड़ों सालों के बाद बनेगा एक अति विशाल महाद्वीप

Gulabi
7 Sep 2021 1:49 PM GMT
भूगर्भीय शोध: पृथ्वी पर करोड़ों सालों के बाद बनेगा एक अति विशाल महाद्वीप
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भूगर्भीय शोध

पृथ्वी (Earth) की सतह पर भले ही बहुत से बदलाव तेजी से हो रहे हों लेकिन उसके अंदर के बदलाव धीमी लेकिन सतत गति से होते हैं. इसमें हमारे महाद्वीपों (Continents) की संरचना तक शामिल है. हमारे वैज्ञिनिकों ने दशकों के अध्ययन से पृथ्वी के विकास के बारे में काफी कुछ पता लगा लिया है. और अब वे इस की भविष्य का भी अनुमान लगाने लगे हैं. हालिया अध्ययन के मुताबिक पृथ्वी में हो रहे जलवायु बदलाव (Climate Change) आने वाले 20 से 30 करोड़ सालों में बिखरे महाद्वीपों को एक कर दो बड़े महाद्वीपों में बदल सकते हैं

पृथ्वी (Earth)का विकास 4.56 अरब साल पहले शुरू हुआ था और तब से अब तक उसके आकार और जलवायु स्थितियों में लगातार बदलाव देखने को मिल रहा है. पृथ्वी के विकास में उसकी टेक्टोनिक प्लेटों (Tectonic plates) की गतिविधियों का बहुत बड़ा योगदान है जिससे बड़े महाद्वीप आकार लेते रहे हैं. इन्हीं गतिविधियों की वजह से नई पर्वत और पठार भी बनते हैं. भूगर्भशास्त्रियों ने नए शोध में हाल ही में हुई टेक्टोनिक गतिविधियों में बदलावों के आधार पर एक पैन्जिया प्रोक्सिमा (Pangaea Proxima) नाम की घटना के होने का पूर्वानुमान लगाया है.
पृथ्वी (Earth) की टेक्टोनिक प्लेटों (Tectonic Plates) पर होने वाले जलवायु प्रभावों, घूर्णन की गति आदि के अध्ययन के आधार पर वैज्ञानिकों ने दो संभावित स्थितियों का आंकलन किया है. इसमें से एक स्थिति में निचले अक्षांशों में एक अतिमहाद्वीप (Supercontinent) का निर्माण होगा. विषुवत्त रेखा के पास विशाल भूभाग जमा हो जाएगा जिसे ऑरिका कहा जाएग, जबकि दूसरे महाद्वीप उत्तरी गोलार्द्ध में खिसक कर उत्तरी ध्रुव में एक दूसरा अतिमहाद्वीप बनाएंगे जिसे अमेशिया का जाएगा.
इस स्थिति में एक और खास बात होगी कि अंटार्कटिका (Antarctica) उपमहाद्वीप की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आएगा. वैज्ञानिकों ने इसकी वजह भी बताई है. उनका कहना है कि इस क्षेत्र के औसत सतही तापमान दूसरे इलाकों से बहुत अलग हैं. फिर भी अध्ययन का कहना है कि ऑरिका के निर्माण का पृथ्वी (Earth) की भूआकृतियों पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ेगा. अध्ययन में बताया गया कि दोनों स्थितियों में औसत सतही तापमान (Mean Surface Temperature) में भी कई डिग्री सेल्सियस का अंतर है. इसके साथ ही दोनों हालात में संपूर्ण सतही क्षेत्रफल भी अलग है जिसमें उनमें साल भर तरल पानी की मौजूदगी संभव होगी.
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने सौर चमक, पृथ्वी (Earth) के घूर्णन की गति, टेक्टोनिक प्लेट, का उपयोग किया इससे शोधकर्तां ने पाया कि दोनों स्थितियों में जलवायु (Climate) के लिहाज बहुत ज्यादा अंतर है. इसका संबंध शोधकर्ताओं ने बड़े स्तर के जलवायु बदलावों से जोड़ा. इसके अलावा अध्ययन में यह भी बताया गया है कि उस समय बर्फ की बड़ी चादरें (Ice Sheets) भी बनेंगे जिससे सूर्य से आने वाली किरणें ज्यादा मात्रा में प्रतिबिम्बित होंगी.

पैन्जिया (Pangaea) का निर्माण 31 करोड़ साल पहले हुआ था और 18 करोड़ साल पहले उसमें विखंडन होना शुरू हुआ था. अब अगला अतिमहाद्वीप (Supercontient) 20 से 25 करोड़ साल बाद बनना शुरू होगा. इसका साफ मतलब है कि अभी इस अतिमहाद्वीप के वर्तमान चक्र में वह उस आधे समय पर है जहां बिखराव का दौर चल रहा है. इस समय दुनिया में अंटार्कटिका (Antarctica) सहित कुल 7 महाद्वीप हैं.
विकास का सिद्धांत कहता (theory of evolution) है कि पृथ्वी (Earth) अभी जैसी है वैसी पहले नहीं थी और भविष्य में भी वैसी नहीं रहेगी जैसी आज है. वैज्ञानिकों के मुताबिक सौरमंडल का इकलौता आवासीय ग्रह अपने अतिमहाद्वीप (Supercontinent) के निर्माण के आधे रास्ते पर है. यह अतिमहाद्वीप आज से 25 करोड़ साल पहले बने पैन्जिया भूभाग के जैसा होगा जो पेलियोजोइक काल के अंत में और मीसोजोइक काल की शुरुआत में था. यह 17.5 करोड़ साल पहले टूटना शुरू हुआ था.
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