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वामपंथी नीतियों से देश की रक्षा करने वाले नेता के रूप में खुद को पेश करके एक बड़ा जनाधार बनाया है.
दुनिया के चौथे सबसे बड़े लोकतंत्र ब्राजील में रविवार को राष्ट्रपति पद के लिए आम चुनाव हुए. इस चुनाव में दक्षिणपंथी जायर बोल्सोनारो और वामपंथी लूला डॉ. सिल्वा के बीच कड़ा मुकाबला था. सोमवार को रिजल्ट आने के बाद भी यहां कोई राष्ट्रपति नहीं बन पा रहा है. हैरानी की बात ये है कि सबसे ज्यादा 48.1 प्रतिशत वोट पाने वाले लूला डा सिल्वा भी कुर्सी तक नहीं पहुंच पा रहे हैं. दरअसल इसकी वजह ये है कि दोनों में किसी को भी 50 फीसदी से ज्यादा वोट नहीं मिले हैं. क्योंकि पहले दौर में कोई विजेता नहीं निकला है ऐसे में अब राष्ट्रपति पद की लड़ाई दूसरे दौर में पहुंचेगी. रविवार शाम को 97 फीसदी से ज्यादा मतों की गिनती हुई थी. इसमें लूला डा सिल्वा को 48.1% वोट हासिल हुए, जबकि मौजूदा राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो को 43.5% वोट मिले.
कब है दूसरे राउंड का चुनाव
अब दोनों नेताओं के बीच दूसरे राउंड की लड़ाई 30 अक्टूबर को होगी. इससे पहले रविवार को मतदान के दौरान लूला और बोल्सोनारो के समर्थक आपस में भिड़ गए. जुबानी जंग के अलावा कई जगह हिंसक घटनाएं भी हुईं. वहीं भारी मतदान के बाद भी राष्ट्रपति न मिलने से लोग निराश हैं. गुरुवार को जारी डेटाफोल्हा पोल के मुताबिक 85 फीसदी मतदाताओं ने कहा कि उन्होंने पहले ही अपना मन बना लिया है।
बहुमत के बाद भी क्यों राष्ट्रपति नहीं बन पा रहे सिल्वा
दरअसल ब्राजील में हर चार साल में चुनाव होता है. वोटर्स ने रविवार को देश के 26 राज्यों के गवर्नर और सीनेटर के लिए भी मतदान किया. इसमें लूला डा सिल्वा को 48.1% वोट हासिल हुए, लेकिन वह करीब 2 पर्सेंट वोट से रह गए. ब्राजील में 50 पर्सेंट वोट जरूरी है. हाल में कराए गए कई चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में लूला डा सिल्वा को लोगों ने अपनी पहली पसंद बताया था. सर्वेक्षणों में हिस्सा लेने वाले 50 प्रतिशत लोगों ने लूला डा सिल्वा का समर्थन किया जबकि 36 प्रतिशत लोगों ने जेयर बोलसोनारो को एक बार फिर देश की कमान सौंपने की बात कही थी.
बोल्सोनारो का हो रहा है विरोध
गौरतलब है कि राष्ट्रपति बोलसोनारो पर भड़काऊ भाषण देने के अलावा लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करने के आरोप लगाए जाते हैं. देश में कोविड-19 वैश्विक महामारी की चुनौती से निपटने के उनके प्रयासों की भी आलोचना हुई है. अमेजन वन क्षेत्र में बीते 15 वर्षों के दौरान पेड़ों की सबसे अधिक कटाई के लिए भी उन्हें ही जिम्मेदार ठहराया जाता है. हालांकि बोलसोनारो ने पारंपरिक पारिवारिक मूल्यों की रक्षा करके और वामपंथी नीतियों से देश की रक्षा करने वाले नेता के रूप में खुद को पेश करके एक बड़ा जनाधार बनाया है.
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