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लाहौर स्थित ITU के पूर्व वाइस-चांसलर डॉक्‍टर उमर सैफ देश की खराब शिक्षा व्‍यवस्‍था को लेकर चिंता जताई

Neha Dani
12 July 2022 3:44 AM GMT
लाहौर स्थित ITU के पूर्व वाइस-चांसलर डॉक्‍टर उमर सैफ देश की खराब शिक्षा व्‍यवस्‍था को लेकर चिंता जताई
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साथ ही जो फंड पहले से मिल रहे थे उनमें भी कटौती कर दी गई है।

लाहौर: पाकिस्‍तान जो पहले से ही अपनी खराब माली हालत से जूझ रहा है, वो अब एक बार फिर खबरों में हैं। इस बार न तो उसकी खराब अर्थव्‍यवस्‍था की बात हो रही और न ही आतंकवाद की बल्कि उस टेक्‍नोलॉजी इंस्‍टीट्यूट की बात हो रही है जिसे भारत के आईआईटी की तर्ज पर खोला जाना था। पाकिस्‍तान के शिक्षाविद और लाहौर स्थित इनफॉर्मेशन टेक्‍नोलॉजी यूनिवर्सिटी (ITU) के पूर्व वाइस-चांसलर डॉक्‍टर उमर सैफ इन दिनों काफी दुखी हैं। उन्‍होंने देश की खराब शिक्षा व्‍यवस्‍था को लेकर चिंता जताई है। साथ ही ये भी बताया है कि यूनिवर्सिटी के लिए जो जमीन थी, अब वो कैसे बकरा मंडी में बदल गई है। डॉक्‍टर उमर ने इस बाबत एक ट्वीट किया है और कुछ तस्‍वीरों के साथ उन्‍होंने अपनी तकलीफ को बयां किया है। डॉक्‍टर उमर इस समय देश में संयुक्‍त राष्‍ट्रसंघ डेवलपमेंट प्रोग्राम के सलाहकार के तौर पर काम कर रहे हैं।



6 साल पुराना आर्टिकल
उन्‍होंने पाकिस्‍तान के अखबार द एक्‍सप्रेस ट्रिब्‍यून में एक आर्टिकल लिखा है। डॉक्‍टर उमर लिखते हैं, 'इस जगह को आईटीयू के मेन कैंपस के लिए तय किया गया था जो पाकिस्‍तान की अपना एक MIT होता। मगर अब ये जगह पार्किंग प्‍लेस और बकरा मंडी के तौर पर बनकर रह गया है। इसके साथ ही देश की शिक्षा व्‍यवस्‍था का सपना भी चकनाचूर हो गया है।' उन्‍होंने बताया है कि साल 2013 में पाकिस्‍तान के लिए ये सपना देखा गया था।
Pakistan-ITUडॉक्‍टर सैफ ने ये आर्टिकल साल 2016 में लिखा था लेकिन उन्‍होंने इसका लिंक पिछले दिनों फिर से शेयर किया है। उनका ये आर्टिकल और इसकी तस्‍वीरें तेजी से वायरल हो रही हैं। उन्‍होंने बताया है कि उनका मकसद देश में एक ऐसा रिसर्च इंस्‍टीट्यूट खोलना था जहां पर अमेरिका के प्रतिष्ठित मैसाच्‍यूसेट्स इंस्‍टीट्यूट ऑफ टेक्‍नोलॉजी (MIT) की तरह सुविधाएं हों। उन्‍होंने अपने इस सपने को 'पाकिस्‍तान के लिए एमआईटी' का टाइटल दिया था।

खराब शिक्षा व्‍यवस्‍था
डॉक्‍टर उमर सैफ खुद, एमआईटी में लेक्‍चरार रह चुके हैं। उन्‍होंने बताया कि इस सपने को पूरा करने के लिए उन्‍होंने सारा जोर लगा दिया। लेकिन ऑफिसर्स और सरकारों की नजरअंदाजगी की वजह से सारी कोशिशें बेकार हो गईं। उन्‍होंने बताया कि देश की एक भी यूनिवर्सिटी दुनिया की टॉप 700 यूनिवर्सिटीज में भी शामिल नहीं हैं। उनके कई प्रस्‍तावों को राजनेताओं, ब्‍यूरोक्रेट्स और यूनिवर्सिटी के प्रशासन की तरफ से खारिज कर दिया गया।

वो जहां कहीं भी जाते उन्‍हें जवाब मिलता, 'पाकिस्‍तान को और ज्‍यादा पीएचडी की जरूरत नहीं है।' कभी कोई उन्‍हें जवाब देता, 'एमआईटी हमारी जूती, पाकिस्‍तान खुद महान है। आपको पाकिस्‍तान की शिक्षा व्‍यवस्‍था के बारे में कुछ नहीं मालूम है।' कई बार इन रिपोर्ट्स को कहा गया है कि देश में जो भी हायर एजुकेशन यूनिवर्सिटीज हैं, उन पर भी बंद होने का खतरा बरकरार है। सरकार की तरफ से इन यूनिवर्सिटीज को कोई फंड नहीं दिया गया है। साथ ही जो फंड पहले से मिल रहे थे उनमें भी कटौती कर दी गई है।
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