विश्व
पाकिस्तान के सिंध में हिंदू युवक का जबरन धर्मांतरण कराया, अब लड़के भी नहीं हैं सुरक्षित
Rounak Dey
11 Oct 2022 11:27 AM GMT

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लेकिन सोशल मीडिया के जरिए उनका दर्द दुनिया के सामने आया है।
सिंध: पाकिस्तान में जबरन धर्मांतरण कोई नई बात नहीं है। अभी तक पाकिस्तान में अल्पसंख्यक लड़कियों के जबरन धर्मांतरण के मामले सामने आते रहे हैं। लेकिन अब पुरुषों का भी जबरन धर्मांतरण हो रहा है। पाकिस्तान के सिंध में रविवार को एक हिंदू युवक का जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 'जमीयत उलमा-ए-सिंध के महासचिव मौलाना राशिद महमूद सूमरो ने 9 अक्टूबर को अजय कुमार नाम के शख्स को जामिया इस्लामिया मस्जिद, लरकाना सिंध में जबरन इस्लाम में परिवर्तित करा दिया था।' धर्मांतरण की तस्वीरों में दिख रहा है कि पीड़ित खुश नहीं है।
पाकिस्तान में जबरन धर्मांतरण का कहर अल्पसंख्यक महिलाओं पर दिखता रहा है। अगस्त 2021 में बहावलपुर के यज़मान शहर से मोहम्मद वसीम नाम के शख्स ने एक ईसाई लड़की अनीता का जबरन धर्मांतरण कराया था। उसने एक कागज पर लड़की के अंगूठे के निशान लिए और जबरन शादी कर ली। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पीड़िता को उसने एक कमरे में बंद रखा और बार-बार उसके साथ बलात्कार किया। इंटरनेशनल फोरम फॉर राइट एंड सिक्योरिटी (IFFRAS) ने बताया कि जैसे-जैसे पाकिस्तान तेजी से रूढ़ीवादी होता जा रहा है, वैसे ही हिंदुओं, ईसाइयों और अन्य धार्मिक अलपसंख्यकों की स्थिति खराब होती जा रही है। इनमें महिलाएं सबसे ज्यादा पीड़ित हैं।
परिवार को मिली धमकी
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस साल सितंबर में एक साल की यातना से बच कर अनीता अपने अपहरणकर्ता के घर से भाग गई और बहावलपुर में फैमिली कोर्ट में एक याचिका दायर कर झूठी शादी को रद्द करने की मांग की। पीड़िता के पिता ने कहा कि वह बहुत गरीब हैं और अपहरणकर्ता बहुत ही प्रभावशाली है। उन्होंने कहा कि अपहरणकर्ता ने उनके परिवार को खत्म करने की धमकी दी है।
अत्याचार की शिकार हैं अल्पसंख्यक महिलाएं
पाकिस्तान में हिंदू और ईसाई धर्म के लोगों की स्थिति सामान्य तौर पर खराब है, लेकिन इस वर्ग की महिलाएं सबसे ज्यादा शिकार हैं। IFFRAS की रिपोर्ट के मुताबिक धार्मिक अल्पसंख्यक महिलाओं और लड़कियों का अपहरण, जबरन धर्म परिवर्तन, जबरन शादी और बलात्कार किया जाता है। अगर उनका परिवार कानूनी तौर पर इन अत्याचारों से लड़ने की कोशिश करता है तो प्रशासन उन्हें कोई मदद नहीं देता। मानवाधिकार समूहों का कहना है कि वर्षों तक पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों की दुर्दशा का डॉक्यूमेंटेशन किया गया है, लेकिन सोशल मीडिया के जरिए उनका दर्द दुनिया के सामने आया है।
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