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ऊर्जा के कम घनत्व के कारण मोटापे से बचने और संबंधित कार्डियोमेटाबोलिक रोगों के जोखिम कम करने में मदद मिलेगी
दूध या दुग्ध उत्पादों में फैट की मात्रा उसकी गुणवत्ता का एक पैमाना माना जाता है। लेकिन एडिथ कोवान यूनिवर्सिटी (ईसीयू) के शोधकर्ताओं ने पाया है कि जब बात छोटे बच्चों की हो तो पूरे वसा वाला दूध भी उतना ही अच्छा है, जितना कि कम वसा वाला दूध। यह शोध निष्कर्ष अमेरिकन जर्नल आफ क्लिनिकल न्यूटिशन में प्रकाशित हुआ है।
ईसीयू में एसोसिएट प्रोफेसर थेरेस ओसुल्लीवान के नेतृत्व में शोधकर्ताओं की एक टीम ने बच्चों पर फुल फैट डेयरी उत्पादों को दिए जाने पर उसके असर को लेकर अध्ययन किया है। इस क्रम में चार से छह वर्ष तक के 49 स्वस्थ बच्चों को औचक ही चुन लिया गया। उन्हें तीन महीने तक रोजाना नियमित आहार में या तो फुल फैट या लो-फैट डेयरी उत्पाद दिए गए। ये डेयरी उत्पाद उन्हें हर पखवाड़े नि:शुल्क दिए ताकि उसकी उपलब्धता बराबर सुनिश्चित की जा सके। इनमें से किसी ग्रुप को नहीं मालूम था कि उन्हें पूरे या कम फैट वाले डेयरी उत्पाद दिए जा रहे हैं। इतना ही नहीं, बचा हुआ उत्पाद वापस भी लिया गया, ताकि यह पता चल सके कि बच्चों ने कितना खाया।
इस तरह डेयरी उत्पादों के उपभोग के आधार पर शोधकर्ताओं ने पहली बार बच्चों में मोटापा, शरीर की संरचना (बाडी कंपोजिशन), ब्लड प्रेशर तथा ब्लड बायोमाकर्स का विस्तृत विश्लेषण किया है। इसमें पाया गया कि बच्चों ने चाहे पूरा या कम फैट का डेयरी उत्पाद लिया हो, लेकिन दोनों ही ग्रुपों ने बराबर मात्रा में कैलोरी ली। हालांकि जिन बच्चों ने कम फैट वाला डेयरी उत्पाद लिया, उन्होंने स्वाभाविक तौर पर दूसरे खाद्य या पेय पदार्थो से कैलोरी के अंतर की भरपाई की।
प्रोफेसर ओसुल्लीवान ने बताया कि यह निष्कर्ष बताता है कि दोनों ही ग्रुपों के बच्चों में मोटापा या कार्डियोवस्कुलर स्वास्थ्य के मामले में कोई फर्क नहीं था। उन्होंने बताया, पहले यह माना जाता रहा है कि छोटे बच्चों को कम फैट वाले डेयरी उत्पादों से लाभ होगा, क्योंकि उनके सैचरेटिड फैट के कम स्तर और ऊर्जा के कम घनत्व के कारण मोटापे से बचने और संबंधित कार्डियोमेटाबोलिक रोगों के जोखिम कम करने में मदद मिलेगी
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