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पृथ्वी के करीब आ रहे सबसे विशाल ऐस्‍टरॉइड की सामने आई पहली तस्‍वीर

Gulabi
16 March 2021 1:47 PM GMT
पृथ्वी के करीब आ रहे सबसे विशाल ऐस्‍टरॉइड की सामने आई पहली तस्‍वीर
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करीब एक किलोमीटर चौड़ा साल का सबसे विशाल ऐस्‍टरॉइड 231937 (2001 FO32) धरती के बेहद करीब आ रहा है

करीब एक किलोमीटर चौड़ा साल का सबसे विशाल ऐस्‍टरॉइड 231937 (2001 FO32) धरती के बेहद करीब आ रहा है। यह दैत्‍याकार ऐस्‍टरॉइड 21 मार्च को पृथ्‍वी की कक्षा के पास से गुजरेगा। इस बीच अंतरिक्ष के इस सबसे विशाल ऐस्‍टरॉइड की पहली तस्‍वीर दुनिया के सामने आ गई है। नासा वैज्ञानिकों के मुताबिक यह ऐस्‍टरॉइड भले ही धरती के करीब आ रहा है लेकिन इसके टकराने की आशंका न के बराबर है।


1700 मीटर चौड़ा यह ऐस्‍टरॉइड धरती से 75 लाख किलोमीटर की दूरी से गुजरेगा। यह इस साल धरती के पास आने वाले ऐस्‍टरॉइड में सबसे बड़ा है। इस ऐस्‍टरॉइड की पहली तस्‍वीर को इटली स्थित वर्चुअल टेलिस्‍कोप प्रॉजेक्‍ट ने अपने कैमरे में कैद किया है। इस ऐस्‍टरॉइड की तस्‍वीर को उस समय कैमरे में कैद किया गया जब यह विशाल चट्टान धरती से 1.95 लाख किलोमीटर की दूरी पर थी।



सबसे व‍िशाल ऐस्‍टरॉइड 2001 FO32 की पहली तस्‍वीर

ऐस्‍टरॉइड की रफ्तार 1,24,000 क‍िलोमीटर प्रतिघंटा
14 मार्च को रात में ली गई इस तस्‍वीर में तारों के बीच में यह चट्टान बेहद चमकदार वस्‍तु के रूप में नजर आ रही है। द वर्चुअल टेलिस्‍कोप प्रॉजेक्‍ट ने कहा कि यह संभावित रूप से खतरनाक चट्टान सुरक्षित तरीके से पृथ्‍वी की ओर आ रही है। हम इसके 21 मार्च को धरती के पास से गुजरने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। साथ ही हमने इसकी तस्‍वीर लेने में सफलता हासिल की है। इस ऐस्‍टरॉइड की रफ्तार 1,24,000 क‍िलोमीटर प्रतिघंटा होगी।
दरअसल मंगल तक इंसानों को पहुंचाने में नासा के सामने सबसे बड़ी समस्या रॉकेट की आ रही है। क्योंकि, वर्तमान में जितने भी रॉकेट मौजूद हैं वे मंगल तक पहुंचने में कम से कम 7 महीने का समय लेते हैं। अगर इंसानों को इतनी दूरी तक भेजा जाता है तो मंगल तक पहुंचते पहुंचते ऑक्सीजन की कमी हो सकती है। दूसरी चिंता की बात यह है कि मंगल का वातावरण इंसानों के रहने के अनुकूल नहीं है। वहां का तापमान अंटार्कटिका से भी ज्यादा ठंडा है। ऐसे बेरहम मौसम में कम ऑक्सीजन के साथ पहुंचना खतरनाक हो सकता है।
नासा के स्पेस टेक्नोलॉजी मिशन डायरेक्ट्रेट की चीफ इंजिनियर जेफ शेही ने कहा कि वर्तमान में संचालित अधिकांश रॉकेट में केमिकल इंजन लगे हुए हैं। ये आपको मंगल ग्रह तक ले जा सकते हैं, लेकिन इस लंबी यात्रा की धरती से टेकऑफ करने और वापस लौटने में कम से कम तीन साल का समय लग सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि बाहरी अंतरिक्ष में चालक दल को कम से कम समय बिताने के लिए नासा जल्द से जल्द मंगल तक पहुंचना चाहता है। इससे अंतरिक्ष विकिरण के संपर्क में कमी आएगी। जिस कारण रेडिएशन, कैंसर और नर्वस सिस्टम पर भी असर पड़ता है।


इस कारण ही नासा के वैज्ञानिक यात्रा के समय को कम करने के तरीके खोज रहे हैं। सिएटल स्थित कंपनी अल्ट्रा सेफ न्यूक्लियर टेक्नोलॉजीज (USNC-Tech) ने नासा को एक परमाणु थर्मल प्रोपल्शन (NTP) इंजन बनाने का प्रस्ताव दिया है। यह रॉकेट धरती से इंसानों को मंगल ग्रह तक केवल तीन महीने में पहुंचा सकता है। वर्तमान में मंगल पर भेजे जाने वाले मानवरहित अंतरिक्ष यान कम से कम सात महीने का समय लेते हैं। वहीं, इंसानों वाले मिशन को वर्तमान के रॉकेट से मंगल तक पहुंचने में कम से कम नौ महीने लगने की उम्मीद है।


परमाणु रॉकेट इंजन को बनाने का विचार नया नहीं है। इसकी परिकल्पना सबसे पहले 1940 में की गई थी। लेकिन, तब तकनीकी के अभाव के कारण यह योजना ठंडे बस्ते में चली गई। अब फिर अंतरिक्ष में लंबे समय तक यात्रा करने के लिए परमाणु शक्ति से चलने वारे रॉकेट को एक समाधान के रूप में देखा जा रहा है। USNC-Tech में इंजीनियरिंग के निदेशक माइकल ईड्स ने सीएनएन से कहा कि परमाणु ऊर्जा से चलने वाले रॉकेट आज के समय में इस्तेमाल किए जाने वाले रासायनिक इंजनों की तुलना में अधिक शक्तिशाली और दोगुने कुशल होंगे।


परमाणु रॉकेट इंजन की निर्माण की तकनीकी काफी जटिल है। इंजन के निर्माण के लिए मुख्य चुनौतियों में से एक यूरेनियम ईंधन है। यह यूरेनियम परमाणु थर्मल इंजन के अंदर चरम तापमान को पैदा करेगा। वहीं, USNC-Tech दावा किा है कि इस समस्या को हल करके एक ईंधन विकसित किया जा सकता है जो 2,700 डिग्री केल्विन (4,400 डिग्री फ़ारेनहाइट) तक के तापमान में काम कर सकता है। इस ईंधन में सिलिकॉन कार्बाइड होता जो टैंक के कवच में भी सुरक्षा के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इससे इंजन से रेडिएशन बाहर नहीं निकलेगा, जिससे सभी अंतरिक्षयात्री सुरक्षित रहेंगे।


वैज्ञानिकों ने कहा कि यह ऐस्‍टरॉइड सुरक्षित तरीके से गुजर जाएगा और इससे हमें कोई खतरा नहीं है। इस ऐस्‍टरॉइड से खतरा नहीं होने के बावजूद अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने इस संभावन को खारिज नहीं किया है कि भविष्‍य में ऐस्‍टरॉइड का टकराव धरती से नहीं होगा। हालांकि इसकी आशंका कई सदी बाद की है। इसी वजह से नासा ने इसे संभावित रूप से खतरनाक ऐस्‍टरॉइड की श्रेणी में रखा है।


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