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विज्ञापनों पर भी फेसबुक की होगी पैनी नजर
इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म फेसबुक की मूल कंपनी मेटा 19 जनवरी से स्वास्थ्य, नस्ल या जातीयता, राजनीतिक संबद्धता, धर्म या यौन मामलों से संबंधित संवेदनशील एड टारगेटिंग आप्शन (किसी को लक्ष्य बनाकर विज्ञापन देने का विकल्प) को खत्म कर देगा। वर्तमान में विज्ञापनदाता उन लोगों को टारगेट कर सकते हैं जिन्होंने इन विषयों से संबंधित मुद्दों, हस्तियों या संगठनों में रुचि दिखाई है।
इस बारे में जानकारी कंपनी के फेसबुक, इंस्टाग्राम या अन्य प्लेटफार्मो पर यूजर्स की गतिविधियों को ट्रैक करने से मिलती है। उदाहरण के तौर पर अगर कोई समलैंगिक विवाह में रुचि दिखाता है तो उसे समलैंगिक विवाह का समर्थन करने वाले संगठनों के विज्ञापन दिखाए जा सकते हैं। लेकिन इन श्रेणियों का दुरुपयोग भी किया जा सकता है, लिहाजा नियामकों व लोगों का मेटा (पूर्व में फेसबुक) पर अपने प्लेटफार्म को इस दुरुपयोग और भ्रामक जानकारियों से मुक्त करने का दबाव रहा है।
गौरतलब है कि मेटा प्लेटफार्म्स इंक ने मंगलवार को एक ब्लाग पोस्ट में कहा कि यह फैसला आसान नहीं था और हम जानते हैं कि यह बदलाव कुछ कारोबारों और संगठनों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। हाल में सोशल मीडिया की दिग्गज कंपनी फेसबुक ने अपनी कंपनी के नए नाम का ऐलान किया था। अब यह मेटा (Meta) के नए नाम से जाना जाएगा। 17 साल बाद नाम में बदलाव के इस फैसले के बारे में फेसबुक ने ट्वीट कर जानकारी दी थी। वर्ष 2004 में शुरुआत करने वाली सोशल मीडिया कंपनी फेसबुक ने बताया कि सोशल मीडिया का नया अध्याय मेटावर्स (metaverse) सोशल कनेक्शन की नई राह होगी। यह सामूहिक प्रोजेक्ट है जो पूरी दुनिया के लोगों द्वारा बनाया जाएगा। साथ ही सबके लिए खुला रहेगा।
बता दें कि 'मेटावर्स' शब्द का प्रयोग तीन दशक पहले डायस्टोपियन उपन्यास में किया गया था। फिलहाल यह शब्द सिलिकान वैली में चर्चा का विषय बना हुआ है। इस शब्द का इस्तेमाल डिजिटल दुनिया में वर्चुअल और इंटरेक्टिव स्पेस को समझाने के लिए किया जाता है। मेटावर्स दरअसल एक वर्चुअल दुनिया है, जहां एक आदमी शारीरिक तौर पर मौजूद नहीं होते हुए भी मौजूद रह सकता है। इसके लिए वर्चुअल रियल्टी का इस्तेमाल किया जाता है।
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