ताइवान के उपराष्ट्रपति लाइ चिंग टे ने ट्वीट करके बताया कि चीन ने हमारे ताइवान नैशनल डे की पूर्व संध्या पर एक बार फिर से हमें भड़काने के लिए अपने युद्धक विमान भेजे। लेकिन यह हमारे जश्न को नहीं रोक सकेगा। यह हमें क्षेत्र में शांति और स्थिरता की रक्षा करने से रोक नहीं सकेगा। इससे पहले ताइवान के रक्षा मंत्री ने कहा था कि चीन के लगातार लड़ाकू विमानों के भेजने से हमारी सेना पर दबाव काफी बढ़ गया है।
चीन अमेरिका और ताइवान के बीच बढ़ते सहयोग से चिढ़ा
रक्षा मंत्री ने कहा कि उनके देश को गंभीर संकट का सामना करना पड़ रहा है। उधर, विशेषज्ञों का कहना है कि चीन ताइवान की सेना को थकाने के लिए लगातार अपने फाइटर जेट को ताइवान स्ट्रेट के पास भेज रहा है। चीन इन दिनों अमेरिका और ताइवान के बीच बढ़ते सहयोग से चिढ़ा हुआ है। चीन के इसी संकट को देखते हुए ताइवान की राष्ट्रपति त्साई इंग वेन ने प्रण किया है कि वह देश की सुरक्षा को मजबूत करेंगी और क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए काम करेंगी।
चीन ने यह कार्रवाई ऐसे समय पर की है जब अमेरिका के स्वास्थ्य मंत्री एलेक्स एजार के ताइपे की यात्रा पर हैं। चीन ने इस दौरे को लेकर राजनयिक माध्यम से सख्त विरोध दर्ज कराया है। यही नहीं विरोध स्वरूप चीनी लड़ाकू विमानों ने शक्ति प्रदर्शन करते हुए ताइवान के हवाई क्षेत्र में घुसपैठ की। इस स्व शासित द्वीप (ताईवान) पर करीब चार दशक में किसी उच्च पदस्थ अमेरिकी पदाधिकारी का यह प्रथम दौरा है। एजार ने ताईवान की राष्ट्रपति साई इंग-वेन से मुलाकात के साथ अपना तीन दिवसीय दौरा शुरू किया। अमेरिका के 1979 में राजनयिक मान्यता ताइपै से हटा कर पेइचिंग कर दिये जाने के बाद से ताइवान की यात्रा करने वाले एजार सर्वोच्च रैंक के कैबिनेट सदस्य हैं।
चीन ताइवान को अपनी मुख्य भूमि का हिस्सा मानता है और ताइवानी नेताओं से किसी उच्च स्तरीय विदेशी प्रतिनिधि की मुलाकात का मुखर विरोध करता रहा है। एजार का यह दौरा ऐसे समय में हो रहा है, जब अमेरिका और चीन के बीच संबंध अपने सबसे खराब दौर से गुजर रहे हैं। उनके दौरे को पेइचिंग के लिए एक बड़ा कूटनीतिक झटका माना जा रहा है, जो यह कहता रहा है कि 'एक चीन नीति' उन सभी देशों के साथ उसकी विदेश नीति का मूल तत्व है, जो उसके साथ राजनयिक संबंध रखते हैं। चीन से ताइवान की आजादी की दृढ़ समर्थक ताइवानी राष्ट्रपति त्साई इंग वेन ने कहा है कि एजार का ऐतिहासिक दौरा ताईवान-अमेरिका संबंधों के लिये एक 'नयी शुरूआत' है और उन्हें उम्मीद है कि वाशिंगटन और ताइपे के बीच सहयोग में और कामयाबी मिलेगी।
उधर, चीन ने उम्मीद के मुताबिक तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि यह दौरा 'एक चीन नीति' के प्रति अमेरिका की प्रतिबद्धता का विश्वासघात है। एजार का दौरा 2018 के ताइवान यात्रा अधिनियम से प्रशस्त हुआ है जो वॉशिंगटन को दशकों बाद अपना उच्चतर स्तर का अधिकारी भेजने के लिये प्रोत्साहित करता है। ताइवान न्यूज की खबर के मुताबिक त्साई-एजार की बैठक से पहले चीनी लड़ाकू विमानों ने सोमवार को ताइवान जलडमरूमध्य के हवाई क्षेत्र में घुसपैठ की। ताईवान वायुसेना कमान मुख्यालय ने कहा कि चीनी वायुसेना के शेनयांग जे-11 और चेंगदु जे-10 लड़ाकू विमानों ने ताइवान जलडमरूमध्य में सुबह नौ बजे संक्षिप्त अवधि के लिये 'मेडियन लाइन' (दोनों पक्षों के बीच अनाधिकारिक हवाई क्षेत्र सीमा) को पार किया।
मुख्यालय ने कहा कि चीनी लड़ाकू विमानों के मौखिक चेतावनी को नजरअंदाज करने के बाद ताइवानी लड़ाकू विमानों ने शीघ्र ही उन्हें रोका और उन्हें ताइवान के हवाई क्षेत्र से बाहर निकाला। पेइचिंग में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने मीडिया ब्रीफिंग में कहा कि 'अमेरिका और ताईवान के बीच आधिकारिक संबंध का चीन सख्त विरोध करता है। ' उन्होंने कहा, 'हमने अमेरिका के समक्ष सख्त विरोध दर्ज कराया है। मैं एक बार फिर इस बात पर जोर देना चाहूंगा कि ताइवान का प्रश्न चीन, अमेरिका संबंधों में सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है। ' प्रवक्ता ने कहा, 'एक चीन का सिद्धांत चीन-अमेरिका संबंधों का आधार है। अमेरिका ने जो किया, वह ताईवान से जुड़े मुद्दों पर उसकी प्रतिबद्धता का गंभीर उल्लंघन है। '
इससे पहले चीनी सेना ने अमेरिका के विदेश उप मंत्री किथ क्राच के आने पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई थी और ताइवान जलडमरुमध्य के ऊपर 18 लड़ाकू विमानों को भेजा था और असमान्य तरीके से इतने बड़े पैमाने पर शक्ति प्रदर्शन किया था। ताइवान के रक्षा मंत्रालय के मुताबिक चीन ने दो बमवर्षक विमान सहित 19 लड़ाकू विमानों को भेजा था।
ताइवान को अभेद्य 'किला' बनाने में जुटा अमेरिका
चीनी सेना के हमले के मंडराते खतरे के बीच अमेरिका अब ताइवान को अभेद्य 'किला' बनाने में जुट गया है। अमेरिका ताइवान को 7 बेहद घातक हथियार दे रहा है जिसमें क्रूज मिसाइल और ड्रोन विमान शामिल हैं। यही नहीं अमेरिका के डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने चीन पर अपना दबाव और ज्यादा बढ़ा दिया है। इससे पहले अमेरिका ने यह नीति बनाई थी कि वह ताइवान को ऐसे हथियार नहीं देगा जिससे चीन नाराज हो जाए। हालांकि हॉन्ग कॉन्ग संकट के बाद अब अमेरिका ने अपनी नीति को बदल दिया है।