यूरोपीय संघ (ईयू) के नीति प्रमुख जोसेप बोरेल फोंटेलेस ने शनिवार को हिंद-प्रशांत क्षेत्र के महत्व का उल्लेख करते हुए कहा कि ईयू ने इस क्षेत्र के लिए विशेष तौर पर एक रणनीति बनाई है। उन्होंने कहा कि हमारा मानना है कि मानव जाति का इतिहास इसी क्षेत्र में लिखा जाएगा। फोंटेलेस ने यह टिप्पणी जर्मनी में हिंद-प्रशांत के महत्व पर परिचर्चा के दौरान की।
पिछले साल ईयू ने हिंद-प्रशांत रणनीति अपनाई थी। इस नीति का लक्ष्य क्षेत्र में अपनी गतिविधियों को बढ़ाना था। इस नीति के माध्यम से यूरोपीय संघ क्षेत्रीय स्थिरता को प्रभावित करने वाली उभरती गतिशीलता का जवाब देने के लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने भागीदारों के साथ जुड़ाव को गहरा करना चाहता है।
'कई सदियों से इतिहास में शामिल रहा हिंद-प्रशांत क्षेत्र'
'पृथ्वी और जल: यूरेशिया और हिंद-प्रशांत की अंतर्विरोधी राजनीति' विषय पर बात करते हुए फोंटेलेस ने कहा, 'जब हम हिंद-प्रशांत के उभरने की बात करते हैं तो ईयू का मानना है कि यह उद्भव कोई नया नहीं है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र कई सदियों से इतिहास में रहा है।'
इस बात का उल्लेख करते हुए कि हम एक कथित त्वरित अर्थव्यवस्था में रह रहे हैं, फोंटेलेस ने कहा कि यह जरूरी है कि इस क्षेत्र में पथ प्रदर्शन (नेविगेशन) के मार्गों को मुक्त रखा जाए। इसीलिए हमने यह हिंद-प्रशांत रणनीति तैयार की है क्योंकि हम इस बात से पूरी तरह से सहमत हैं कि इस सदी में मानव जाति का इतिहास हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ही लिखा जाए।
'हिंद-प्रशांत में बीते समय में भी मौजूद था यूरोपीय संघ'
इस सवाल पर कि यूरोप और हिंद-प्रशांत में विवादित मांगों से निपटने के लिए ईयू कैसी तैयारियां कर रहा है, फोंटेलेस ने याद दिलाया कि किस तरह यूरोपी शक्तियां बीते समय में भी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में मौजूद थीं। उन्होंने कहा, 'हम दुनिया के इस हिस्से में कई साल पहले मौजूद थे। हम वापस आना चाहते हैं क्योंकि हम जानते हैं कि हमारा भविष्य इस पर निर्भर है।'
फोंटेलेस ने कहा कि हम इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि हमारा भविष्य बड़े स्तर पर हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ भागीदारी पर निर्भर करता है। इसमें केवल चीन ही नहीं बल्कि बाकी सभी देश शामिल हैं। हम इस क्षेत्र में भागीदारी का निर्माण उसी तरह करना चाहते हैं जिस तरह हमने यूरोपीय संघ का निर्माण किया था।