जब पहली बार कोरोना महामारी की घोषणा की गई थी तब स्पेनवासियों को तीन महीनों से अधिक समय तक घरों में रहने का आदेश दिया गया था। कई सप्ताह तक उन्हें व्यायाम के लिए बाहर नहीं निकलने दिया गया। बच्चों के खेल के मैदानों में जाने पर रोक थी और अर्थव्यवस्था एक तरह से थम सी गई थी। अधिकारियों का कहना है कि इन कठोर उपायों से ही स्वास्थ्य तंत्र को चरमराने से बचाया जा सका और लोगों की जिंदगी बची।
अब करीब दो साल बाद स्पेन कोरोना के प्रति भिन्न दृष्टिकोण अपनाने की तैयारी कर रहा है। इस महामारी के चलते स्पेन की अर्थव्यवस्था तबाह हो गई लेकिन अब वह यूरोप में सर्वाधिक टीकाकरण दरों वाले देशों में एक है। ऐसे में सरकार संक्रमण की अगली लहर को आपात स्थिति की भांति नहीं बल्कि बनी रहने वाली एक बीमारी के रूप में निपटने की तैयारी में जुटी है। ऐसे ही कदमों पर पड़ोसी देशों पुतर्गाल एवं ब्रिटेन में भी विचार किया जा रहा है।
अब इन देशों में संकट से नियंत्रण के तौर-तरीकों की ओर बढ़ने का विचार सामने आया है, अब वे इस वायरस को उसी रूप में लेने के बारे में सोच रहे हैं जिस रूप में देश फ्लू या खसरे को लेते हैं। इसका तात्पर्य है कि वे अब मानने लगे हैं कि संक्रमण रहेगा लेकिन अधिक जोखिम वाले लोगों पर विशेष ध्यान दिया जाए।
स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज चाहते हैं कि यूरोपीय संघ भी ऐसे ही बदलावों पर गौर करे कि ओमिक्रोन स्वरूप की लहर से पता चल गया है कि यह बीमारी अब कम घातक होने लगी है। उन्होंने कहा कि दरअसल हम कह रहे हैं कि अगले कुछ महीनों और सालों में, हमें बिना किसी संकोच के और विज्ञान जो कहता है, उसके हिसाब से, विचार करना होगा कि कैसे इस महामारी का अलग मानपंड से प्रबंधन करना है।
उन्होंने कहा कि ओमिक्रोन लहर के बीत जाने से पहले ऐसे बदलाव नहीं होने चाहिए लेकिन अधिकारियों को अब महामारी के बाद की दुनिया को आकार प्रदान करने की दिशा में काम करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि परिदृश्य का अनुमान लगाकर हम अपना होमवर्क कर रहे हैं।