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'दुश्मन का दुश्मन दोस्त', अब चीन पाकिस्तान को दिखाएगा आइना, मिला फंडिंग का मौका

Neha Dani
28 Nov 2021 9:23 AM GMT
दुश्मन का दुश्मन दोस्त, अब चीन पाकिस्तान को दिखाएगा आइना, मिला फंडिंग का मौका
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जिसके चलते चीन अब पाकिस्तान में पैसा लगाने से डर रहा है.

Pakistan China Relationship: आपने ये कहावत सुनी होगी- 'दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है.' यही बात पाकिस्तान और चीन के रिश्ते पर एकदम फिट बैठती है. बीते कुछ वर्षों में ये दोनों देश इस तरह एक दूसरे के करीब आए, जैसे 'सदाबहार दोस्त' हों. लेकिन इस दोस्ती पर हमेशा ही विशेषज्ञों ने संदेह व्यक्त किया है. जिससे पता चलता है इस दोस्ती पर मिठास की परत तो है लेकिन भीतर केवल चालाकी, संसाधनों की लूट, खोखले वादे और चीनी कूटनीति छिपी हुई है. पाकिस्तान कम्युनिस्ट पार्टी (Communist Party) के नेतृत्व वाली पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक था.

देश के सैन्य तानाशाह याह्या खान (Yahya Khan) ने चीन और अमेरिका के बीच औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. तभी से चीन और पाकिस्तान दोनों संवेदनशील भू-राजनीतिक मामलों जैसे कश्मीर मुद्दे और पाक स्थित अंतरराष्ट्रीय आतंकवादियों पर यूएनएससी के प्रस्ताव को अवरुद्ध करने पर एक-दूसरे का समर्थन करते रहे हैं. ठीक इसी तरह, पाकिस्तान तिब्बत और ताइवान पर चीन के क्षेत्रीय दावों का समर्थन करता है. पाकिस्तान बाकी मुस्लिम देशों से चीन को जोड़ने के लिए एक कड़ी का काम करता है लेकिन इस बीच शिंजियांग के मुसलमानों को भुला दिया जाता है.
चीन के लिए पाकिस्तान क्यों जरूरी?
पाकिस्तान इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) में चीन विरोधी भावना का विरोध करता है, जिसमें 57 सदस्य देश शामिल हैं. बदले में चीन देश को बड़ी आर्थिक मदद और रक्षा सुविधाएं प्रदान करता है. चीन ने अपनी हिस्सेदारी 13 फीसदी से बढ़ाकर 63 फीसदी कर ली है और अब चीन ने पाकिस्तान के सबसे बड़े हथियार आपूर्तिकर्ता के रूप में अमेरिका को पीछे छोड़ दिया है. मतलब पाकिस्तान में हथियार अमेरिका से ज्यादा अब चीन से आते हैं. पाकिस्तान और अमेरिका के रिश्ते तब से ज्यादा बिगड़ गए, जब 9/11 हमले का मास्टरमाइंड ओसामा बिन लादेन (Osama bin Laden) पाकिस्तान के ऐब्टाबाद में पाया गया.
चीन को कब मिला फंडिंग का मौका
ओसामा के मारे जाने के बाद अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली सहायता रोक दी और यहीं से चीन को फंडिंग करने का मौका मिल गया. इतनी करीबी होने के बाद भी पाकिस्तान और चीन ने आज तक एक भी औपरचारिक गठबंधन संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं. कर्ज में डूबे पाकिस्तान पर चीन को भरोसा नहीं रहा (China Pakistan India). यही वजह है कि पाकिस्तान में शुरू होने वाली कई योजनाओं पर अब तक हस्ताक्षर नहीं हुए हैं. चीन अपने हाथ पीछे खींच रहा है. उसे डर है कि उसका लगाया पैसा उसे वापस ही नहीं मिलेगा.
उइगर मुस्लिम भी हैं दरार की वजह
इनकी बिगड़ती दोस्ती का एक कारण चीन से भागकर पाकिस्तान आने वाले उइगर मुस्लिम (Uyghur Muslims China) भी हैं. जिन्हें चीन ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ईटीआईएम) का समर्थक मानता है. जो चीन से शिंजियांग क्षेत्र को अलग करना चाहता है. हालांकि दोनों ही देश भारत के विरुद्ध काम जरूरत करते हैं. इससे पता चलता है कि चीन और पाकिस्तान की दोस्ती स्वार्थ पर टिकी हुई है. चीन ने अमेरिका का प्रभाव कम करने के लिए पाकिस्तान को अपना ग्राहक बना लिया है. वह उसे सैन्य सहायता, कर्ज और राजनयिक संरक्षण प्रदान करता है. चीन तेजी से विकास कर रहे भारत के खिलाफ पाकिस्तान को एक कवच मानता है. वह पाकिस्तान के रास्ते भारत को अपने अधीन करना चाहता है.
जब चीन ने पाकिस्तान को आइना दिखाया
क्षेत्रीय विवादों के कारण भारत और चीन ने 1962 में एक दूसरे के खिलाफ युद्ध किया था (India China War). वहीं पाकिस्तान चीन का इस्तेमाल कर भारत के किसी भी जवाब से खुद को बचाने की कोशिश करता है. हालांकि चीन ने भारत पाकिस्तान युद्ध के वक्त अपने सदाबहार दोस्त को आइना दिखा दिया था. चीन ने 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध (India Pakistan War) के समय भारत की पूर्वी सीमा पर अपनी सेना तैनात करने के रिचर्ड निक्सन (पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति) के अनुरोध को ठुकरा दिया था.
चीन-पाकिस्तान की दोस्ती टूटना तय
ऐसे में दोनों देशों का रिश्ता एक दिन टूटना तय है, जिसके पीछे कई वजह हैं. चीन अब पाकिस्तान को ज्यादा मदद नहीं दे पाएगा क्योंकि पहले से ही उसका पैसा यहां फंसा हुआ है. उसे कर्ज की रकम वापस नहीं मिल रही. चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा भी एक खोखले दावे की तरह रहा. पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और चीनी प्रधानमंत्री ली केकियांग के बीच समझौता होने के बाद 2013 में सीपीईसी पर काम शुरू हुआ (CPEC in Pakistan). चीन ने 2014 में ऊर्जा और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए सीपीईसी के तहत 46 अरब डॉलर खर्च करने की बात कही. उसने 2016 में सीपीईसी के लिए 51 अरब डॉलर के एक नए कर्ज की घोषणा भी की थी. लेकिन इससे जुड़ी पाकिस्तान की उम्मीदें अब टूट रही हैं. जिसकी वजह पाकिस्तान की आतंक समर्थित सोच भी है.
क्या पाकिस्तान के अच्छे दिन आए?
पाकिस्तान के आम नागरिक और सेना को लगा कि अब देश में अच्छे दिन आएंगे. आर्थिक सुधार को गति देने के साथ-साथ बिजली की कमी, खराब सड़क और रेल ढांचे में सुधार होगा. लेकिन असलियत में कुछ और ही हो गया. खतरनाक काराकोरम पर्वत और गिलगित-बलूचिस्तान का मौसम सीपीईसी को कमजोर बना रहा है. दक्षिणी क्षेत्र में सीपीईसी पाकिस्तान के बलूचिस्तान से होकर गुजरता है. जहां उग्रवाद चरम पर है. चीन की योजनाओं को वहां निशाना बनाया जा रहा है. यह ग्वादर बंदरगाह से जुड़ा हुआ है (Protest in Pakistan Against China). जहां लोगों ने हाल ही में चीन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया है. गिलगित और बलूचिस्तान में पर्यावरणीय क्षति और सीपीईसी परियोजना की लागत के कारण लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. जिसके चलते चीन अब पाकिस्तान में पैसा लगाने से डर रहा है.


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