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दुश्मन का दुश्मन दोस्त...इसी कहावत पर काम कर रहे ईरान और तालिबान? संबंध सिर्फ ट्रेड तक सीमित नहीं

Tulsi Rao
28 Aug 2021 6:35 PM GMT
दुश्मन का दुश्मन दोस्त...इसी कहावत पर काम कर रहे ईरान और तालिबान? संबंध सिर्फ ट्रेड तक सीमित नहीं
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अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद ईरान बहुत परेशान नहीं दिख रहा है। ईरान, अफगानिस्तान से 921 किलोमीटर का बॉर्डर साझा करता है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद ईरान बहुत परेशान नहीं दिख रहा है। ईरान, अफगानिस्तान से 921 किलोमीटर का बॉर्डर साझा करता है। 30 लाख से अधिक अफगान शरणार्थी मौजूदा वक्त में ईरान में रहते हैं और यह सालों से तनाव का एक कारण रहा है।

ईरान अब इस आपदा को अवसर में बदलने की कोशिश कर रहा है। ईरान व्यापार, सुरक्षा, ऊर्जा और परिवहन समझौते को मजबूत करने को लेकर तालिबान के साथ काम कर रहा है। मौजूदा वक्त में ईरान और अफगानिस्तान के बीच सालाना ट्रेड करीब 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर का है। बता दें कि ईरान, अफगानिस्तान का सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है। अफगानिस्तान का 40 फीसद से अधिक तेल ईरान से पहुंचता है।
संबंध सिर्फ ट्रेड तक सीमित नहीं
कई प्रभावशाली अफगान ने ईरान में पढ़ाई की है। ईरान के हायर एजुकेशन में 40 हज़ार से अधिक छात्र पढ़ाई कर रहे हैं। ईरान में स्थित दो प्रमुख शिया धर्मस्थल पर सालाना 10 लाख से अधिक अफगान पहुंचते हैं।
ये तो हो गई बेहतर संबंध की बातें। दोनों देशों के बीच विवाद भी गहरा रहा है। 1998 में कट्टरपंथी विद्रोहियों द्वारा मजार-ए-शरीफ शहर स्थित ईरानी वाणिज्य दूतावास को घेरकर नौ राजनयिक और एक पत्रकार को मार डाला था। इसके बाद ईरान ने अपने सेना को अलर्ट कर दिया था और बॉर्डर इलाके पर 70 हज़ार से अधिक सैनिकों को तैनात कर दिया था। यूनाइटेड नेशंस के दबाव के बाद तालिबान द्वारा मारे गए राजनयिकों के शवों को वापस लाने और बंदी बनाए गए 50 ईरानियों को रिहा करने के बाद ही युद्ध टल सका था।
अब मौजूदा वक्त की बात
ईरान और तालिबान दोनों ही अमेरिका को अपना दुश्मन मानते हैं। तेहरान के लिए अमेरिका का अफगानिस्तान से जाना एक अमेरिकी विरोधी मोर्चा का बेहतर मौका हो सकता है। एक्सपर्ट्स बताते हैं कि ईरान और तालिबान 'दुश्मन का दुश्मन मेरा दोस्त है' वाले राह पर चल रहे हैं। ईरानी सरकार ने हाल ही में तालिबान के साथ संबंध सामान्य करने के अपने इरादे स्पष्ट किए हैं।
एनालिस्ट्स का मानना है कि ईरान तालिबान सरकार को जल्द मान्यता देने नहीं जा रहा है। ईरान रूस और चीन जैसे देशों को देखकर की मान्यता के बारे में कोई फैसला लेगा। ईरान अफगानिस्तान के अल्पसंख्यक समुदाय की सुरक्षा को लेकर चिंतित है। हमेशा की तरह ईरान तालिबान से संपर्क बनाए रखने के साथ ही अन्य विकल्प बनाए रखेगी।


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