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इजरायल में साढ़े तीन साल में पांचवी बार होने जा रहे चुनाव, इलेक्शन प्रॉसेस वजह तो नही

Neha Dani
1 July 2022 3:25 AM GMT
इजरायल में साढ़े तीन साल में पांचवी बार होने जा रहे चुनाव, इलेक्शन प्रॉसेस वजह तो नही
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जो पूरे चार साल के कार्यकाल से कुछ ही कम है।

इजरायल में एक साल पहले बनी नफ्ताली बेनेट की सरकार गिर चुकी है। प्रधानमंत्री बेनेट की सलाह पर राष्ट्रपति इसहाक हर्जोग ने इजरायली संसद यानी नेसेट को भंग कर दिया है। जिसके बाद यह यहूदी राष्ट्र 2022 के अंत में साढ़े तीन साल में पांचवी बार चुनाव का सामना करने जा रहा है। इजरायल में दशकों से किसी भी एक पार्टी को बहुमत नहीं मिला है। इस कारण है कि मजबूरी में हर बार गठबंधन की सरकार बनती है, लेकिन कई बार वह अपने कार्यकाल को पूरा किए बिना ही गिर जाती है। ऐसे में सवाल उठता है कि इजरायल की चुनाव प्रणाली में क्या गलत है, जिससे इजरायल की राजनीति की अस्थिरता पैदा हो रही है। इजरायल की संसद को नेसेट कहा जाता है। नेसेट प्राचीन हिब्रू शब्द है जो यहूदी परंपरा के अनुसार 120 ऋषियों और पैगंबरों की एक विधानसभा थी। नेसेट के सदस्य का कार्यकाल चार साल का होता है। इसी के जरिए इजरायल के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति का चुनाव होता है। नेसेट में ही इजरायल का कानून बनता है। इसमें कुल 120 सदस्य होते हैं। यहां मतदान करने की न्यूनतम उम्र 18 साल है।

सांसद नहीं पार्टियों को वोट करते हैं मतदाता
दरअसल, इजरायल में चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के जरिए होता है। इसका मतलब है कि मतदाता को बैलेट पेपर पर प्रत्याशियों की जगह पार्टी को मतदान करना होता है। पार्टियों को मिले मत प्रतिशत के अनुपात में उन्हें संसद की सीटें आवंटित कर दी जाती हैं। यह प्रक्रिया 28 दिनों के अंदर पूरी कर ली जाती है। अगर किसी पार्टी को 10 फीसदी वोट मिलता है तो उसे संसद की कुल 120 सीटों का 10 फीसदी यानी 12 सीटें दी जाती हैं। अब संबंधित पार्टी इन सीटों पर अपने सांसदों को नियुक्त करती है। ये सांसद जनता की पसंद न होकर पार्टी की पसंद होते हैं। ऐसे में इजरायली सांसद लोगों के प्रति ज्यादा उत्तदायी न होकर अपनी निष्ठा पार्टी के प्रति ज्यादा प्रकट करते हैं।
बहुमत के लिए 61 सीटें जीतना जरूरी
इजरायली संसद में बहुमत के लिए 61 सीटों की जरूरत होती है। लेकिन, वर्तमान चुनाव प्रणाली के कारण किसी भी एक पार्टी को इतनी सीटें पाना बहुत मुश्किल है। इस कारण पार्टियों को चुनाव से पहले और चुनाव के बाद गठबंधन करने की जरूरत पड़ती है। जब वर्तमान इजरायली गठबंधन सरकार के नेताओं, नफ्ताली बेनेट और यायर लैपिड ने घोषणा की कि वे इजरायल के 36 वें नेसेट को भंग करने और चुनाव में जाने के लिए आगे बढ़ेंगे, तो किसी को आश्चर्य नहीं हुआ। इस सरकार में अलग-अलग विचारधारा रखने वाली 8 पार्टियां शामिल थीं। हालांकि, अब इस गठबंधन में शामिल कई पार्टियों ने ऐलान किया है कि वे भविष्य में अकेले चुनाव लड़ेंगे।
पार्टी को न्यूनतम 3.5 फीसदी वोट पाना है जरूरी
किसी भी पार्टी को नेसेट (संसद) में पहुंचने के लिए कुल मतदान में से न्यूनतम 3.25 फीसदी वोट पाना जरूरी है। यदि किसी पार्टी का वोट प्रतिशत 3.25 से कम होता है तो उसे संसद में सीट नहीं दी जाती है। चुनाव से पहले इजरायल की हर पार्टी अपने उम्मीदवारों के प्रिफरेंस के आधार पर एक सूची जारी करती है। इसी के आधार पर चुनाव में जीत के बाद सांसद को चुना जाता है। अगर किसी सांसद की कार्यकाल के दौरान मौत हो जाती है तो इस सूची में शामिल बाद के नेताओं को मौका दिया जाता है।
गठबंधन की शर्तों के अनुसार, पहले 18 महीने नेतन्याहू प्रधानमंत्री और बेनी गांट्ज रक्षा मंत्री बनेंगे। इसके बाद गांट्ज प्रधानमंत्री बनेंगे और नेतन्याहू रक्षा मंत्री। इसमें यह भी शर्त है कि नेतन्याहू कार्यकाल खत्म करने के बाद ब्लू एंड व्हाइट पार्टी के साथ गठबंधन तोड़कर चुनाव नहीं करा सकते हैं। ना ही दोनों नेता किसी और दल का साथ लेकर सत्ता में बने रह सकते हैं। इसके अलावा बेंजामिन नेतन्याहू पर चल रहे भ्रष्टाचार के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही गांट्ज कोई एक्शन ले सकते हैं।
इजरायल में बीबी नाम से प्रसिद्ध बेंजामिन नेतन्याहू का जन्म 1949 में तेल अबीव में हुआ था। नेतन्याहू के पिता बेंजियन इतिहासकार थे। 1963 में नई नौकरी लगने के कारण उनका पूरा परिवार इजरायल से अमेरिका शिफ्ट हो गया। इजरायल में सैन्य सेवा अनिवार्य है। ऐसी स्थिति में बेंजामिन नेतन्याहू 1967 में अमेरिका से इजरायल आकर सेना की नौकरी ज्वाइन कर ली।
इजरायली सेना में पांच साल के करियर के दौरान उन्होंने एलीट कमांडो ग्रुप सायरेट मटकल में कैप्टेन के रूप में काम किया। उन्होंने 1968 में लेबनान की राजधानी बेरूत में हुए एक खुफिया सैन्य कार्रवाई में भी हिस्सा लिया। इसके अलावा नेतन्याहू ने 1973 में हुए अरब-इजरायल वॉर में भी हिस्सा लिया।
नेतन्याहू ने अपने राजनैतिक करियर की शुरुआत 1988 में लिकुड पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़कर की। इस चुनाव में उन्हें जीत हासिल हुई और वह इजरायली संसद नेसेट के सदस्य बने। उनकी राजनीतिक महत्वकांक्षा को देखते हुए सरकार में उन्हें उप विदेश मंत्री का पद दिया गया। इसके बाद वे लिकुड पार्टी के अध्यक्ष भी चुने गए।
1996 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इजित्स राबिन की हत्या के बाद हुए चुनाव में नेतन्याहू पहली बार इजरायल के प्रधानमंत्री बने। नेतन्याहू देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री थे जिनका जन्म इजरायल के आजादी के बाद हुआ था। वह उस समय देश के सबसे युवा प्रधानमंत्री भी थे। ओस्लो समझौते के कारण 1999 में लिकुड पार्टी चुनाव हार गई और नेतन्याहू को अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा और एहुद बराक प्रधानमंत्री बने।
2001 में एरियन शेरोन की सरकार बनने के बाद नेतन्याहू की फिर वापसी हुई और वह राजनीति में दोबारा सक्रिय हो गए। 2005 में एरियल शेरोन को लकवा मारने के कारण वे फिर से पार्टी के अध्यक्ष बन गए। 2009 में हुए चुनाव में वे दोबारा इजरायल के प्रधानमंत्री बने। इसके बाद उन्होंने 2013 और 2015 में भी प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। अब वह रविवार को लगातार चौथी बार इजरायल की सत्ता संभालने जा रहे हैं। हालांकि, प्रधानमंत्री के रूप में यह उनका पांचवा कार्यकाल होगा।
इजरायल में पिछले चार चुनाव का लेखा-जोखा समझें
अप्रैल 2019 के संसदीय चुनावों के बाद, अधिकांश नेसेट सदस्यों के दक्षिणपंथी होने के बावजूद इजरायल की सबसे बड़ी लिकुड पार्टी के प्रमुख बेंजामिन नेतन्याहू सरकार बनाने में असमर्थ थे और उन्होंने नेसेट को भंग करने का ऐलान कर दिया। छह महीने बाद एक और चुनाव में भी सरकार नहीं बनी और नेसेट अपने आप भंग हो गई। फिर, मार्च 2020 में, नेतन्याहू और ब्लू एंड व्हाइट पार्टी के प्रमुख बेनी गैंट्ज़ के बीच गठबंधन सरकार बनी, लेकिन उसी साल दिसंबर में इसका पतन हो गया। उसके बाद मार्च 2021 में फिर चुनाव हुए और नेतन्याहू की पार्टी लिकुड और उसके सहयोगी दल बहुमत नहीं पा सके। इस कारण विपक्षी नेता नफ्ताली बेनेट ने यायर लैपिड और बाकी की 8 विपक्षी पार्टियों के साथ सरकार बनाई।
इजरायल में लगातार चुनाव, पर देश अस्थिर नहीं
यरुशलम के हिब्रू विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर एमेरिटस अवराम डिस्किन ने कहा कि यह कहना आम बात है कि इजरायल एक स्थिर देश नहीं है क्योंकि यहां बहुत सारे चुनाव होते रहते हैं, लेकिन यह सच नहीं है। पिछले चार चुनाव होने तक, 75 वर्षों में 20 चुनाव हुए थे। यह हर साढ़े तीन साल में औसतन एक है, जो पूरे चार साल के कार्यकाल से कुछ ही कम है।

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