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ज्यादा मांस खाने से इम्यून सेल्स बढ़ जाते और मल्टीपल स्क्लेरोसिस का खतरा, माइक्रोबायोम में होती है गड़बड़ी

Neha Dani
1 Feb 2022 9:51 AM GMT
ज्यादा मांस खाने से इम्यून सेल्स बढ़ जाते और मल्टीपल स्क्लेरोसिस का खतरा, माइक्रोबायोम में होती है गड़बड़ी
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इसके 49 वालंटियरों का चयन किया गया। इनमें 25 एमएस रोगी थे और 24 स्वस्थ (कंट्रोल ग्रुप) थे।

मांसाहारी भोजन के कई सारे अच्छे-बुरे प्रभाव बताए जाते रहे हैं। कई अध्ययनों में मांसाहार खासकर रेड मीट को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी माना गया है। इसी क्रम में शोधकर्ताओं की एक टीम ने अपने अध्ययन में पाया है कि ज्यादा मांस खाने से पेट में पाए जाने वाले कुछ खास किस्म के लाभकारी बैक्टीरिया (माइक्रोबायोम) में कमी होती है और इम्यून सेल्स बढ़ जाते हैं, जिससे मल्टीपल स्क्लेरोसिस का खतरा बढ़ जाता है। यह अध्ययन ईबायोमेडिसिन जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

मल्टीपल स्क्लेरोसिस (एमएस) एक आटो इम्यून रोग है, जिससे दुनियाभर में करीब 30 लाख लोग पीड़ित हैं। अमेरिका में तो इस रोग के इलाज पर सालाना 28 अरब डालर का खर्च होता है। एक तथ्य यह सामने आया है कि यह बीमारी विशिष्ट क्षेत्रों में खासकर उत्तरी मध्य अक्षांश वाले इलाके में ज्यादा पाई गई है। इससे यह भी पता चलता है कि खान-पान से जुड़ी बीमारियों के जोखिम में भौगोलिक क्षेत्र का भी संबंध होता है।
लेकिन अभी तक खान-पान, इम्यून रेस्पांस तथा एमएस के बीच सटीक संबंधों को स्थापित करना कठिन रहा है। एमएस एक ऐसा आटोइम्यून रोग है, जिसमें तंत्रिकाओं इर्दगिर्द इन्सुलेशन पर हमला होता है। जब इन्सुलेशन को ज्यादा क्षति पहुंचती है तो तंत्रिकाओं से मिसफायर शुरू हो जाता है और उसके कामकाज में बिगाड़ आ जाता है। लेकिन तंत्रिका तंत्र में इन्सुलेशन पर हमले की शुरुआत को लेकर या उसके उत्प्रेरक को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है।
हालांकि ज्यादातर प्रमाण इस बात की ओर इशारा करते हैं कि इसमें बैक्टीरिया की भूमिका हो सकती है। पेट में रहने वाले बैक्टीरिया हमारे इम्यून सिस्टम को प्रभावित कर सकते हैं। इसके लिए यह जानना जरूरी है कि हम ऐसा क्या खाते हैं, जो हमारे पेट के बैक्टीरिया को प्रभावित करते हैं। इसी बात का पता लगाने के लिए यूकान हेल्थ स्कूल के डाक्टर यानजियो तथा वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के डाक्टर लारा पिक्कियो ने माइक्रोबायोम, इम्यून सिस्टम, खानपान तथा ब्लड मेटाबोलाइट्स का अध्ययन किया। इसके 49 वालंटियरों का चयन किया गया। इनमें 25 एमएस रोगी थे और 24 स्वस्थ (कंट्रोल ग्रुप) थे।


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