पृथ्वी के घूमने की गति हुई तेज, जानें आपकी-हमारी जिंदगी पर क्या फर्क पड़ेगा
रहस्यमय खबर: आखिर पृथ्वी के घूमने की गति घटने या बढ़ने का मतलब क्या है? वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के घूमने की गति में कितनी कमी दर्ज की है? क्या पहले भी पृथ्वी के घूमने की गति में कमी देखी गई है? अगर हां तो कब और कितनी? इन सबके बीच एक अहम सवाल यह भी है कि आखिर पृथ्वी के घूमने की गति तेज या धीमे होने से आम लोगों की जिंदगी पर क्या असर पड़ेगा? अगर आपको लग रहा है कि आपका समय बिना पता चले ही फुर्र से उड़ जा रहा है तो अब तकनीकी तौर पर आप सही हैं। दरअसल, हाल ही में वैज्ञानिकों को पता चला है कि पृथ्वी की घूर्णन गति यानी घूमने की गति तेज हुई है। कुछ शोधकर्ता इसे बेहद कौतूहल से देख रहे हैं, वहीं कुछ वैज्ञानिकों ने इसे लेकर जरूरी जानकारी भी जारी की है ऐसे में सवाल यह है कि आखिर पृथ्वी के घूमने की गति घटने या बढ़ने का मतलब क्या है? वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के घूमने की गति में कितनी कमी दर्ज की है? क्या पहले भी पृथ्वी के घूमने की गति में कमी देखी गई है? अगर हां तो कब और कितनी? इन सबके बीच एक अहम सवाल यह भी है कि आखिर पृथ्वी के घूमने की गति तेज या धीमे होने से आम लोगों की जिंदगी पर क्या असर पड़ेगा? आइये जानते हैं...
पृथ्वी के घूमने की गति घटने या बढ़ने का मतलब क्या है सौर मंडल में पृथ्वी सूर्य के चक्कर लगाने के साथ अपनी धुरी (एक्सिस) पर भी घूमती है। अपनी धुरी पर घूमते हुए पृथ्वी का एक चक्कर 24 घंटे में पूरा हो जाता है। हालांकि, इसी साल 29 जून को पृथ्वी पर एक दिन 24 घंटे से कम का हो गया। यानी पृथ्वी के घूमने की गति अचानक तेज हुई है।पृथ्वी के घूमने की गति का क्या असर? पृथ्वी की घूर्णन गति तेज होने की वजह से 29 जून को पूरे दिन में 1.59 मिलीसेकंड की कमी दर्ज की गई। कहने को तो 24 घंटे के मुकाबले यह कमी ना के बराबर है, लेकिन मानव जीवन में इसका असर काफी ज्यादा है। दरअसल, पृथ्वी के एक पूरे चक्कर से सूर्योदय और सूर्यास्त की पूरी अवधि प्रभावित होती है। एक लंबे समय के लिए यह बड़े बदलाव इंसानों के साथ आसपास के पर्यावरण को प्रभावित करने वाले साबित हो सकते हैं। क्या पहले कभी भी पृथ्वी के घूमने की गति में बदलाव देखा गया? 1. जब धीमी हुई पृथ्वी के घूमने की गति पृथ्वी की घूर्णन गति का बढ़ना अपने आप में एक चौंकाने वाली बात है, क्योंकि पृथ्वी के शुरुआती वर्षों में इसके घूमने की स्पीड लगातार घट रही थी। 3.5 अरब साल पहले जब पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत हुई तब एक दिन करीब 12 घंटे का होता था।
हालांकि, 2.5 अरब साल पहले जब पेड़-पौधों में प्रकाश संश्लेषण (फोटोसिंथेसिस) शुरू हुआ तब पृथ्वी के घूमने की गति और धीमी हुई और एक दिन करीब 18 घंटे का होने लगा। 1.7 अरब साल पहले यूकारयोटिक सेल्स की खोज के वक्त पृथ्वी की घूर्णन गति और धीमी हुई और एक दिन 21 घंटे लंबा हो गया। बीती सदियों में पृथ्वी की रोटेशन स्पीड इतनी कम हो चुकी है कि यह ग्रह 24 घंटे में एक चक्कर पूरा करने लगा है। हर साल पृथ्वी पर एक दिन सेकंड के 74,000वें हिस्से तक लंबा हुआ है। इससे उजाले और रात का वक्त औसतन 12-12 घंटे तक लंबा हुआ है। इसका असर इंसानी जीवन के साथ-साथ जानवरों, पेड़-पौधों और समग्र रूप से पूरी प्रकृति पर पड़ा है। 2. बीते दशकों में तेज हो रही ग्रह की घूर्णन गति
हालांकि, बीते कुछ दशकों की बात की जाए तो पृथ्वी के घूमने की गति में बड़े बदलाव देखे गए हैं और यह धीरे-धीरे तेज हो रही है। 2020 में वैज्ञानिकों ने बीते 50 वर्षों के 28 सबसे छोटे दिन दर्ज किए। इनमें सबसे छोटा दिन 19 जुलाई 2020 को दर्ज किया गया। यह दिन 24 घंटे यानी 86 हजार 400 सेकंड से 1.47 मिलीसेकंड छोटा था। वहीं, पिछले साल 26 जुलाई को भी एक दिन 1.5 मिलीसेकंड छोटा रहा था। 29 जून का दिन इस लिहाज से और छोटा रिकॉर्ड हुआ। पृथ्वी के घूमने की गति पर फर्क पड़ क्यों रहा है? यह पूरी तरह साफ नहीं है कि पृथ्वी के इतिहास में घूर्णन गति में जो बदलाव दर्ज हुए हैं, उनकी वजह क्या रही है। हालांकि, इसके लिए कुछ प्रभावों को जिम्मेदार माना जाता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, अल-नीनो के दौरान चलने वाली तेज हवाएं पृथ्वी के घूमने की दिशा के उल्टी चलती हैं और इसलिए वे ग्रह की घूर्णन गति को धीमा कर सकती हैं। वहीं, भूकंपों से भी पृथ्वी के कोर पर असर पड़ता है और यह पृथ्वी की घूर्णन गति को प्रभावित करता है। हालांकि, बीते दशकों में दिनों के छोटे होने की जो वजह सामने आई है, उसके मुताबिक पृथ्वी पूरी तरह गोल नहीं है, बल्कि भूमध्य रेखाओं पर यह उभरी है और ध्रुवों पर यह दबी है। यानी पृथ्वी का आकार पूरी तरह गोल न होने की वजह से इसकी धुरी में भी बदलाव होते हैं और यही वजह है कि पिछले दशकों में ग्रह की घूर्णन गति में भी फर्क देखे गए हैं।
पृथ्वी के घूमने की गति तेज या धीमे होने से लोगों की जिंदगी पर क्या असर पड़ेगा वैसे तो पृथ्वी की घूर्णन गति कम या ज्यादा होने से दिन की अवधि में थोड़ा ही फर्क पड़ेगा और आम लोगों की जिंदगी में यह इतना बड़ा अंतर नहीं होगा कि इसे पहचाना जा सके। हालांकि, कई वर्षों तक अगर दिन की अवधि में फर्क आता रहा तो यह लंबे समय में पृथ्वी में कई बड़े बदलाव कर सकता है। 1. अगर पृथ्वी की गति पहले से तेज होती है तो इसका असर ग्रह पर सही समय मापने वाली परमाणु घड़ियों (अटॉमिक क्लॉक्स) पर पड़ेगा। दुनियाभर की जीपीएस से जुड़ी सैटेलाइट्स में यही घड़ियां इस्तेमाल होती हैं और अगर दिन की अवधि में कोई भी बदलाव आता है तो इनमें कोई बदलाव करना मुश्किल होगा। इसका असर यह होगा कि अगर पृथ्वी ज्यादा तेजी से घूमती है तो किसी जगह मौजूद एक व्यक्ति की लोकेशन सैटेलाइट से कुछ सेकंड्स देरी से ट्रांसमिट होगी। आधे मिलीसेकंड का हेर-फेर भी भूमध्य रेखा पर 10 इंच या 26 सेंटीमीटर तक का फर्क दिखा सकता है।