x
महासागर थे कहीं ज्यादा नमकीन
पृथ्वी (Earth) के निर्माण के इतिहास पर वैज्ञानिक गहराई से शोध करते रहे हैं. इसके लिए वे वर्तमान में पृथ्वी की सतह और भूगर्भीय प्रक्रियाओं के साथ ही ऐतिहासिक शोधों और दूसरे ग्रहों का भी अध्ययन करते हैं. अब तक हुए अध्ययनों में से कुछ की मददसे वैज्ञानिकों ने हमारे ग्रह के शुरुआती महासागरों (Oceans) की लवणता (Salinity) का भी अनुमान लगाने का प्रयास किया है. लेकिन नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि उस समय के महासागरों का पानी आज के मुकाबले ज्यादा खारा था.
कई रहस्यों की चाबी
महासागरों की लवणता ग्रह विज्ञानियों के लिए विशेष अध्ययन का विषय है. इससे वे पृथ्वी पर वायुमंडल, जलवायु और जीवन के विकास के बारे में काफी कुछ मालूमात हासिल कर सकते हैं. येल यूनिवर्सिटी के अर्थ एंड प्लैनेटरी साइंसेस के प्रोफेसर जुन कोरेनागा और स्तानतक छात्र मेंग गुओ का यह शोध प्रोसिडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस जर्नल में प्रकाशित हुआ है.
क्या था नमक का स्तर
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने सुझाया है कि पृथ्वी के पहले 50 करोड़ सालों के अस्तित्व में उसके महासागरों के पानी में नमक का स्तर 7,5 प्रतिशत था. वहीं आज के महासागरों की बात की जाए तो उनमें करीब 2.5 प्रतिशत नमक है. इससे पहले जो लवणता के लिए आंकलन किए गए हैं वे सभी अप्रत्यक्ष आंकड़ों के आधार पर थे, वह वर्तमान स्तर से दसगुना स्तर तक थे.
एक मजबूत नींव मिली है
कोरेनागा का कहना है क यह शुरुआती महासागरों को रसायन विज्ञान को जाने की शुरुआत भर हैं क्योंकि इनके बारे में काफी कुछ अभी तक पता ही नहीं है, फिर भी कोरेनागा का मानना है कि है कि अब वैज्ञानिकों को एक मजबूत नींव मिल गई है जिसके बाद अब आगे का काम किया जा सकता है.
हैलोजन की भूमिका
कोरेनागा और गुओ ने अपने शोध की शुरुआत एक बड़े और आधारभूत प्रश्न से की थी. वे जानना चाहते थे कि पृथ्वी पर मौजूद नमक को बनाने के लिए धातुओं से कितनी मात्रा के हैलोजन यानी प्लोरीन, क्लोरीन, ब्रोमीन और आयोडीन जैसे तत्वों ने प्रतिक्रिया की होगी. इन तत्वों की ग्रह के निर्माण और विकास की प्रक्रियाओं में अहम भूमिका होती है.
कई चीजों का निर्धारण
हैलोजन की मौजूदगी और मात्रा पृथ्वी के वायुमंडल, महासागर, और पथरीले मैंटल की अंतरक्रिया को प्रभावित करती है. समुद्र के पानी में उनकी मौजादगी विशेषतौर पर महत्व रखती है. क्योंकि महासागरों से ही पृथ्वी पर जीवन का निर्माण संभव हो सका था. गुओ का कहना है कि समुद्र के पानी का रसायनविज्ञान ना केवल महासागरों की अम्लीयता को प्रभावित करता ह, बल्कि महासागरों और वायुमंडल के बीच कार्बन डाइऑक्साइड के विभाजन को भी निर्धारित करता है.
हैलोजन की प्रचुरता का अनुमान
हैलोजन की वैश्विक स्तर की प्रचुरता के अब तक के अनुमान इस मान्यता पर आधारित था कि पृथ्वी की भूपर्पटी और मैंटल के बीच कुछ तत्वों के अनुपात हमेशा ही स्थिर रहता है. इन अनुमानों से पता चलता है कि अधिकांश हेलोजन सतह के पास ही रहते आए हैं. इस अध्ययन में कोरेनागा और गुओ ने पाया है कि यह सच नहीं है.
साइबेरिया में बना है गर्मी के रिकॉर्ड, जलवायु के लिए है चेतावनी
शोधकर्ताओं ने हेलोजन की मात्रा का अनुमान लागने के लिए नए एलगोरिदमिक उपकरण का उपयोग किया और पृथ्वी पर सतह से आंतरिक परतों तक उनके चक्र का पता लगाया. उन्होंने पाया कि क्लोराइड और अन्य हेलोजन 50 करोड़ साल पहले ग्रह के आंतरिक परतों से बाहर की ओर फेंके गए थे जिससे तब सतह पर हेलोजन ज्यादा हो गए. इसके बाद अबतक अधिकांश वापस मैंटल की परत में चले गए हैं.
Next Story